कहानी: जल्दी आना, मैं राह देखूंगी!
हम आर्मी के लोगों की जिंदगी बहुत कठिन होती है. घर-परिवार सबसे दूर सीमा पर चौबीस घंटे की मुस्तैदी. महीनों बीत जाते हैं घरवालों से मिले. छुट्टी भी जल्दी मंजूर नहीं होती है.
हम आर्मी के लोगों की जिंदगी बहुत कठिन होती है. घर-परिवार सबसे दूर सीमा पर चौबीस घंटे की मुस्तैदी. महीनों बीत जाते हैं घरवालों से मिले. छुट्टी भी जल्दी मंजूर नहीं होती है. मगर इस बार तो मेरा घर जाना वाकई बहुत जरूरी था. छोटे भाई की शादी थी. कई महीने पहले मैंने हफ्ते भर की छुट्टी के लिए आवेदन भेजा था. बड़ी मुश्किल से छुट्टी मंजूर हुई थी. अगर इतना जरूरी न होता तो मैं न लेता मगर घर में बड़े के नाम पर सिर्फ मैं और मां ही थी. सारी तैयारियां होनी थीं. रंजीत इंजीनियर है. बंगलुरु की एक मल्टीनेशनल कम्पनी में लगा है. पद भी अच्छा है पैसे भी. उसे भी फुर्सत कम ही मिलती है. ऑफिस की जिम्मेदारियां बहुत हैं कंधे पर. रंजीत को भी अपनी शादी के लिए मुश्किल से ही छुट्टी मिली थी. हम दोनों भाई अभी तक कुंवारे थे मगर अब दोनों में से एक की तो बहुत जरूरी थी. पापा की मृत्यु के बाद अब घर में मां की देखभाल के लिए कोई भी नहीं था. उनकी भी उम्र हो रही थी. बीमार पड़ जातीं तो कोई डॉक्टर के पास ले जाने वाला भी पास न होता था. मैं सीमा पर और भाई बंगलुरु में. खैर, उसकी शादी एक सुंदर और सीधी सादी घरेलू लड़की से तय हो गयी थी, जो मां के साथ ग्वालियर में ही रहने को तैयार हो गयी थी.
शादी वाले दिन सारे रिश्तेदार घर में जमा थे. शाम होते-होते रंजीत को घोड़ी पर बिठाने सहित बारात की सारी तैयारियां चरम पर पहुंच गयीं. सारे के सारे लोग सजने-धजने में जुटे थे. मां की खुशी तो वर्णन से बाहर थी. पूरा घर रोशनी में नहाया हुआ था. घोड़ीवाला दरवाजे पर शाम से ही पहुंच गया था. बैंड वाले भी अपना तामझाम लेकर जमा थे. बीच-बीच में संगीत की सुरलहरियां गूंज उठती थीं. शाम घिर आयी थी. मां ने मुझे आवाज लगा कर कहा कि मैं जाकर छोटे को उसके कमरे से ले आऊं, बारात उठने में देर हो रही है. दो घंटे तो रास्ते में ही नाचते-गाते ही निकल जाएंगे.
मैं भागा-भागा ऊपर के कमरे में गया, जहां छोटा भाई रंजीत तैयार होने गया था. पूरा कमरा खाली पड़ा था. बाहर बालकनी, बाथरूम सब देख लिए. कहीं नहीं. नीचे आकर नीचे के कमरों में भी झांक आया. तमाम आवाजें लगायीं, मोबाइल मिलाया, मगर कोई जवाब नहीं. मोबाइल स्विच ऑफ़ था. मैं वापस उसके कमरे में गया तो उसके शादी के जोड़े के ऊपर एक पत्र मिला.
लिखा था – ‘भइया, मैं किसी घरेलू साधारण सी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था. मैंने मां को बहुत समझाया था कि मैं शादी नहीं करूंगा, मगर वह जिद्द पकड़ कर बैठी थी. उसकी जिद्द पर मैं यहां आ गया कि आप दोनों से मिल कर सारी बातें समझा दूंगा, मगर यहां तो मां सारी तैयारियां करके बैठी थी. रिश्तेदारों को भी बुला लिया था. भइया, मुझे यह बात पहले बता देनी चाहिए थी, मगर मैं मां को और आपको मिल कर ही बताना चाहता था. पिछले महीने बंगलुरु में अपनी कंपनी में ही कार्यरत एक इंजीनियर लड़की से मैंने कोर्ट मैरिज कर ली है. मैं उससे बहुत प्यार करता हूं. उसे छोड़ नहीं सकता. भइया, मां को समझा देना. मैं उनसे नजरें नहीं मिला पाऊंगा. उनका दिल टूट जाएगा. मैं वापस जा रहा हूं. संभाल लेना. – रंजीत
यह पढ़ते ही मेरे तो पैरों तले जमीन खिसक गयी. भाग कर नीचे आया. चाचाजी को बताया. उन्होंने किसी तरह संभाल-संभाल कर पूरी बात मां को बतायी. खुशी वाले घर में अचानक श्मशान की खामोशी पसर गयी. क्या करें? किसी को कुछ सुझायी नहीं दे रहा था. इतने में चाचाजी मेरे पास आए. बोले, ‘बेटा, घर की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. मैं लड़कीवालों से बात कर लूंगा, तू सेहरा बांध ले…’
मैं अवाक्. ये कैसी मुसीबत में फंसा गया छोटा. मैं तो खुद किसी मिलिट्री मैन की लड़की से शादी का ख्बाव देख रहा था. मगर अब क्या किया जाए? बारात चलने को उतावली थी, बस दूल्हे का इंतजार था. घराती-बराती सब आ जुटे थे. मेरा तो दिमाग ही सुन्न पड़ गया. घरवालों के दबाव के आगे मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था. कब सेहरा बांध कर घोड़ी पर सवार हुआ, पता ही नहीं चला. कब फेरे पड़े, कब विदायी हुई, कब मैं दुल्हन को लेकर अपने घर आ गया, कुछ होश न रहा.
सुहागसेज पर लंबे घूंघट में सिसकती सीमा को देखकर ही मेरे होश वापस आये थे. उसके चेहरे से घूंघट हटा कर मैंने पहली बार उसका चेहरा देखा तो उस भोले चेहरे पर एक ही सवाल था – मेरी क्या गलती थी?
सच ही तो था. उसने छोटे भाई रंजीत की फोटो देखने के बाद न जाने कितने सपने बुने होंगे, कितनी जुड़ गयी होगी वह उसके व्यक्तित्व से. एक स्मार्ट और अच्छा वेतन पाने वाले इंजीनियर की जगह उसे एक सख्त और कम तनख्वाह पाने वाले जवान से ब्याह दिया गया था, जिसके जीवन का भी कोई भरोसा नहीं था. उसके तो सारे सपने ही बिखर गये थे. वह रात हम दोनों के बीच खामोशी से गुजर गयी. दूसरी रात कुछ बातचीत शुरू हुई. सीमा बहुत ही कोमल और मधुर स्वभाव की थी. ग्रेजुएट थी और घर-परिवार में रच-बस कर रहने वाली घरेलू लड़की थी. कई तरह के पकवान बनाने में माहिर और बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करने वाली लड़की थी. उसके साथ हफ्ता कैसे छूमंतर हो गया पता ही नहीं चला. ससुराल में दूसरे ही दिन से उसने पूरी रसोई संभाल ली थी. मां तो उस पर न्योछावर हुई जाती थी.
हफ्ते भर की छुट्टियां खत्म होने पर जब मैं वापस सीमा पर जाने के लिए तैयार हुआ तो उसने आकर धीरे से कान में कहा था, ‘जल्दी वापस आना. मैं राह देखूंगी.’
उसकी वह बात मेरे कानों में आज तक गूंज रही है. छुट्टी की एप्लीकेशन दे दी है. पता नहीं कब मंजूर होगी. क्योंकि जल्दी तो मुझे भी है.
कोई टिप्पणी नहीं: