कहानी- ग़लत फैसला

“तुमने अगर एक ग़लत फैसला लिया, तो मैं उस वजह से तुम्हारा साथ नहीं छोड़ सकता. साथ निभाने का वादा किया है, उसे निभाना भी जानता हूं. पर…” आंसुओं से भीगे चेहरे पर छाए ग्लानि के भाव देख मानव ने प्यार से उसके कंधे को थपथपाया.

फैसला तो दोनों ने ही मिलकर किया था… बिना किसी बाध्यता के, ख़ुशी से… सोच-समझकर, फिर ऐसा क्यों हुआ? वह तो यह भी नहीं कह सकती कि उसके साथ धोखा हुआ था, क्योंकि धोखा देने की शुरुआत तो उसने ही की थी. तो क्या जो हुआ, वह ठीक हुआ? वह यही डिज़र्व करती थी. उसे उम्मीद नहीं थी कि नीलेश उसके साथ ऐसा करेगा. ज़िंदगीभर साथ देने का वादा करनेवाला, प्यार के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहनेवाला नीलेश शायद तब घबरा गया, जब सचमुच कुछ करके दिखाने का व़क्त आया.

कैसी विडंबना है कि इतने लंबे समय से दोस्ती का हाथ थामे रखनेवाला नीलेश उसका उन स्थितियों में साथ छोड़ गया, जब वह ख़ुद अपने ही हाथों से अपनी गृहस्थी उजाड़ चुकी थी. जब वह ख़ुद ही अपने हाथों से विश्‍वास के सारे बंधनों व प्रेम के धागों को तोड़ चुकी थी. यह सच है कि वह नीलेश से प्यार करती है बरसों से यानी अपनी शादी से पहले से. इसे लव एट फर्स्ट साइट कहा जा सकता है. उस उम्र में जब सतरंगी ख़्वाब आंखों में पल रहे होते हैं और मन में एक राजकुमार की छवि अंकित होती है… दिल किसी को देखने भर से धड़कने लगता है और होंठ सूखने लगते हैं, तभी उसने नीलेश को देखा था. उसकी आंखों की चुंबकीय जुंबिश और हंसने के साथ ही खिलते असंख्य चटकीले रंगों में वह उसी पल खो गई थी. पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश में थी वह.

अचानक या संयोग कहें, उसे प्यार हो गया था. फिर उनकी कुछ मुलाक़ातें हुईं. कभी मेट्रो में, कभी किसी ऑफिस में, कभी मार्केट में, तो कभी रास्ते में. वह भी नौकरी की तलाश में था. हालांकि वह एक जगह नौकरी कर रहा था, पर किसी बड़ी कंपनी में नौकरी करना चाहता था. वैसे वह ख़ुद का बिज़नेस करना चाहता था. बहुत ही महत्वाकांक्षी था वह. ऊंचे सपने व ऊंचाई तक पहुंचने की चाह उसे उकसाती रहती, इसीलिए वह किसी बड़ी कंपनी में किसी बड़े पद को पाने की कोशिश में लगा था. दूसरों को इम्प्रेस करने की क़ाबीलियत तो थी ही उसमें.

आपस में बातें करते, साथ व़क्त गुज़ारते दोनों को ही महसूस होने लगा कि वे एक-दूसरे के साथ ख़ुशी महसूस करते हैं. उनकी सोच, पसंद और ज़िंदगी के प्रति नज़रिया भी काफ़ी एक-सा था. बस, वह महत्वाकांक्षी नहीं थी. बहुत आसानी से संतुष्ट हो जाती थी. इसी बात पर दोनों में कभी-कभी विचारों का टकराव हो जाता था, अन्यथा दोनों को ही साथ रहना अच्छा लगता था. किसी का साथ अच्छा लगे, तो पूरी ज़िंदगी उसी के साथ गुज़ारने का ख़्याल मन में सहज ही पलने लगता है. उसके मन में यह ख़्याल नीलेश से पहले आया था.

वह उससे कुछ ज़्यादा ही प्रैक्टिकल था. वह पहले अच्छे से सेटल होकर फिर प्यार के बारे में सोचना चाहता था. “मुझे तुम अच्छी लगती हो मयूरी. बहुत अच्छी, पर प्यार करता हूं यह बात अभी पूरे विश्‍वास से नहीं कह सकता हूं. तुम्हारे साथ समय बिताना चाहता हूं. तुमसे मिलने का मन करता है, पर यह प्यार है, यह बात जब मेरा मन स्वीकार कर लेगा, तब पलभर नहीं लगाऊंगा तुम्हें कहने में.”

“कमिटमेंट करने से डरते हो?” चिढ़ते हुए बोली थी मयूरी. बिंदास तो वह शुरू से ही थी, इसलिए बोलने में हिचकती नहीं थी.

“तुम अच्छे से जानते हो नीलेश. मैं, यदि या लेकिन में यक़ीन नहीं करती हूं. हां या ना, बस यही दो चीज़ें मायने रखती हैं मेरे लिए. इसीलिए ़फैसला लेने में मुझे देर नहीं लगती. तुम तो प्यार को स्वीकारने में भी अगर-मगर कर रहे हो.”

“ऐसा नहीं है मयूरी. बस, थोड़ा व़क्त दो मुझे. कम से कम इतना कि मेरे पास इतना पैसा हो कि हम एक आलीशान ज़िंदगी जी सकें. सारी सुख-सुविधाएं हों हमारे पास. एक बड़ा-सा बंगला, कार, नौकर-चाकर…”

“यानी लंबे समय तक कमिटमेंट न करने का इरादा है तुम्हारा. नीलेश, मुझे बहुत ज़्यादा की ख़्वाहिश नहीं है. हम दोनों अभी जो कमाते हैं, वह काफ़ी है. फिर धीरे-धीरे मेहनत करके तऱक्क़ी कर लेंगे. लेकिन तुम्हारी प्लानिंग के हिसाब से चले, तो पांच-छह साल लग जाएंगे और तब तक तुम्हें क्या लगता है मेरे घरवाले मेरी शादी के लिए रुकेंगे. वे तो अभी से शोर मचा रहे हैं.”

“मुझसे प्यार करने का दावा करती हो, तो क्या मेरा इंतज़ार नहीं कर सकती?” इमोशनल ब्लैकमेल करने लगा था नीलेश.

“कर सकती हूं, पर अभी तक तुमने प्यार स्वीकारा नहीं है नीलेश. किस भरोसे पर मैं तुम्हारा इंतज़ार करूं? किस यक़ीन पर मैं अपने घरवालों को यह विश्‍वास दिलाऊं कि तुम बीच राह में मेरा साथ नहीं छोड़ोगे.” बहुत लंबी बहस चली थी तब उनके बीच… शायद तब मयूरी के अंदर के वे एहसास भी चटके थे, जो उसने नीलेश के इर्दगिर्द बुने थे. वही तो प्यार करती है नीलेश से! नीलेश ने तो कभी ऐसा नहीं माना. हो सकता है कि वह कुछ पल का साथ ही निभाना चाहता हो.

वैसे भी उसकी महत्वाकांक्षाएं उसे जब-तब डराती रहती थीं. घर में उसकी शादी की बात चलने लगी थी. वही कोई न कोई बहाना बनाकर टालती जाती यह सोचकर या यही मानकर कि नीलेश कुछ दिनों बाद अपने आप हक़ीक़त से रू-ब-रू हो जाएगा और ऊंचे सपनों की उड़ान को विराम दे उसे अपना लेगा. घरवालों से वह लड़ाई कर सकती थी, पर नीलेश को खोने को वह तैयार नहीं थी.

कई बार उसका दिल करता कि उससे कहे कि प्यार करते हो, तो इस एहसास को दबाकर मत रखो. झलकने दो इसे अपने चेहरे पर, लेकिन कह नहीं पाती थी. असल में तो होता यह है कि जब कोई व्यक्ति हमें अच्छा लगने लगता है, तब हम उसकी हर

अच्छी-बुरी बात को भी पसंद करने लगते हैं और विश्‍वास करना इसी पसंद करनेवाली भावना का अगला पड़ाव होता है. लेकिन नीलेश बहुत बार उसकी भावनाएं आहत कर चुका था. उसके मन में आए अविश्‍वास का भान शायद नीलेश को हो गया था.

“किसी से प्यार करो, पर विश्‍वास नहीं… क्या यह संभव है?” एक दिन कह ही दिया था नीलेश ने उससे. वह कांप उठी थी. उसे खोने का डर मयूरी को कंपा गया था. कहीं नीलेश रूठ न जाए. वह कैसे जी पाएगी उसके बिना? “नीलेश, मेरा रिश्ता तय किया जा रहा है. मानव बहुत ही सुलझे हुए इंसान हैं. आईएएस ऑफिसर हैं. मिली थी मैं उनसे. समझ में नहीं आ रहा कि किस आधार पर उन्हें रिजेक्ट करूं? सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी कोई डिमांड भी नहीं है. पापा एक सरकारी अफ़सर हैं. दहेज नहीं दे सकते.” नीलेश के कंधे पर सिर रखकर फफक उठी थी मयूरी. “तो हां कर दो.” नीलेश ने कठोरता से कहा था, तो वह चौंक पड़ी थी.

“मेरा मतलब है कि फैसला तुम्हें करना है. मैं तुम पर किसी तरह का दबाव नहीं डालना चाहता. मुझे तो अपने सपनों को पूरा करने में अभी समय लगेगा.”

“और मेरे सपनों का क्या होगा, जो मैंने तुम्हें लेकर देखे हैं?”

“बी प्रैक्टिकल मयूरी. मैं तो कहता हूं कि तुम मानव से शादी कर लो.” हैरान रह गई थी मयूरी. टूट ही गई थी. नीलेश उसके प्यार का इस तरह अपमान करेगा, उसने कभी सोचा नहीं था. उसके प्यार को सीने में दबा उसने मानव से शादी कर ली. इतने अच्छे व नेक दिल पति को पाकर भी वह नीलेश को भूल नहीं पाई थी. बार-बार उसे यही बात कचोटती रहती कि आख़िर नीलेश ने उसे किसी और का कैसे हो जाने दिया. मानव के साथ वह पत्नी धर्म तो निभा रही थी, पर प्यार नहीं कर पा रही थी उसे. नीलेश से धोखा खाने के बाद भी…

शादी को छह महीने हो चुके थे. एक दिन ऑफिस में अपने सामने नीलेश को खड़ा देख सकपका गई थी वह. बढ़ी हुई दाढ़ी, उलझे हुए बाल और हमेशा सलीके से तैयार होनेवाला नीलेश आज अलग ही लग रहा था. लापरवाह ढंग से कपड़े पहने हुए था. चेहरा एकदम बुझा हुआ था. पता लगा कि बेरोज़गार है आजकल.

“तुमसे दूर हो जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं. वापस लौट आओ मेरी ज़िंदगी में मयूरी.” सुनकर जहां उसे अच्छा लगा था, वहीं एकबारगी फिर से चौंक गई थी. मज़ाक कर रहा है क्या नीलेश. पहले कहा शादी कर लो और अब चाहता है वह लौट आए. “यह असंभव है.”

“कुछ भी असंभव नहीं. मैंने सब सोच लिया है. दो दिन बाद हम हमेशा के लिए यह शहर छोड़कर चले जाएंगे.” हमेशा से प्रैक्टिकल अप्रोच रखनेवाला नीलेश आज कैसी बातें कर रहा है.

“कहां जाएंगे, कहां रहेंगे? मेरी नौकरी का क्या होगा? फिर तुम बेरोज़गार हो. मैं शादीशुदा हूं. मानव से क्या कहूंगी? समाज क्या कहेगा? अब बहुत देर हो चुकी है नीलेश.”

“फिर भी परसों रेलवे स्टेशन पर मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा. तुम मुझसे प्यार करती हो, इसलिए तुम आओगी, मैं जानता हूं.”

मानव के नाम एक ख़त लिख वह चली आई थी. फिर एक बार धोखा दिया था नीलेश ने उसे. कमिटमेंट करे ऐसी फ़ितरत उसमें थी ही कहां. क्या करे वह…? किस मुंह से वापस जाए. खड़ी रही वह रेलवे स्टेशन पर. बेबस व अपने को कोसते हुए ग्लानि में डूबी हुई.

ट्रेनें आती-जाती रहीं. प्लेटफॉर्म खाली होता, भर जाता. भीड़ और शोर के बावजूद वह ख़ुद को नितांत अकेला महसूस कर रही थी.            तभी सामने से मानव को आते देखा, तो अपनी आंखों पर विश्‍वास नहीं हुआ.

“घर वापस चलो.” अधिकार से हाथ थामते हुए मानव बोले. नज़रें झुक गई थीं मयूरी की. शरीर कांप रहा था. कैसे जा सकती है वह घर वापस…

“तुमने अगर एक ग़लत फैसला लिया, तो मैं उस वजह से तुम्हारा साथ नहीं छोड़ सकता. साथ निभाने का वादा किया है, उसे निभाना भी जानता हूं. पर…” आंसुओं से भीगे चेहरे पर छाए ग्लानि के भाव देख मानव ने प्यार से उसके कंधे को थपथपाया.

“नीलेश एक छलावा था मयूरी. असल में जब उसने तुम्हें धोखा दिया था, तभी से तुम्हारे अंदर उसके लिए अंकुरित प्यार के पौधे कुम्हला गए थे. बस, उसके द्वारा ठुकराए जाने की पीड़ा लिए जीए जा रही हो और वही पीड़ा तुम्हें आज यहां खींच लाई. कुछ नहीं सोचा सिवाय इसके कि उसने तुम्हारे प्यार को क़बूल कर लिया. लेकिन वह कायर तुम्हारे प्यार के क़ाबिल है ही नहीं.”

“मैं तुम्हारे क़ाबिल भी तो नहीं. तुम्हारे जैसे अच्छे इंसान को मैंने भी तो धोखा दिया है.”

“इसे धोखा नहीं, भूल कहते हैं. और आप जिसे प्यार करते हैं, उसकी भूलें माफ़ भी तो कर देते हैं. चलो घर चलते हैं.” मानव ने मज़बूती से मयूरी का हाथ थाम लिया. मयूरी ने उस स्पर्श में विश्‍वास की मज़बूती को महसूस किया.

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