कहानी: ताज बोले तो

आज महत्त्वाकांक्षी दंपतियों के लिए भी प्यार केवल शारीरिक आकर्षण व स्वार्थपूर्ति का जरिया बन कर रह गया है. पढि़ए, एक हृदयस्पर्शी कहानी.
खूबसूरत ताज प्रतीक है शाहजहां और मुमताज की सच्ची मोहब्बत का. लेकिन समय के साथ प्यारमोहब्बत के माने बदल गए हैं.

एक दवा कंपनी में समीर रीजनल मैनेजर था. वैसे तो वह देहरादून में रहता था मगर कंपनी के काम से उसे अकसर बिजनौर, मुरादाबाद और बरेली जाना पड़ता था. उस की कंपनी का मुख्यालय दिल्ली में था अत: जबतब वहां का भी उसे चक्कर लगाना पड़ता था. घर पर तो समीर महीने में मुश्किल से 10 दिन ही रुक पाता था.

देहरादून में समीर की पत्नी सौम्या अकेली रहती थी. वह शांत, सुशील, सुंदर एवं सुशिक्षित महिला थी. उस की शादी को 2 साल हो गए थे पर उन के घर का आंगन अभी किलकारियों से सूना था. इन दिनों सौम्या पीएच.डी. कर रही थी. उस का विषय था, ‘इतिहास की पे्रम कथाएं.’

सौम्या का ज्यादा समय पढ़ने- लिखने में ही गुजरता था. वैसे समीर देहरादून में होता तो पोथीपुस्तकें कुछ दिनों के लिए बंद हो जातीं. उस के टूर पर जाते ही वह इतिहास के बिखरे पन्नों को जोड़ने बैठ जाती थी.

सौम्या के गाइड डी.ए.वी. कालिज के सीनियर प्रोफेसर डा. माथुर थे. पर अपनी व्यस्तता के चलते उन्होंने

डा. विनय को सौम्या का सहगाइड बना दिया था. डा. विनय को मध्यकालीन इतिहास में महारत हासिल थी. वह बोलते भी बहुत मधुर थे. जब वह पढ़ाते तो इतिहास साकार हो उठता था. सौम्या

डा. विनय से बहुत प्रभावित थी.

अपनी पीएच.डी. जल्द से जल्द पूरा करने के लिए सौम्या बुधवार और रविवार को डा. विनय के घर गाइडेंस के लिए जाने लगी. कभीकभार वह फोन पर भी उन से सलाहमशवरा कर लेती थी.

डा. विनय अपने घर में अकेले रहते थे, इसलिए सौम्या जब भी उन के घर जाती तो घर के कामकाज में थोड़ाबहुत उन का हाथ बंटा देती थी.  समय के साथ दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे.

सौम्या डा. विनय को गाइड कम दोस्त ज्यादा मानती थी. उम्र में भी 2-3 बरस का ही अंतर था. एक दिन सौम्या ने समीर को भी डा. विनय से मिलवाया था. दोनों काफी देर तक बातचीत करते रहे. विनय पहली बार सौम्या के घर आए थे. सौम्या ने अपने हाथों से बना गाजर का हलवा और गरमागरम पकौडि़यां उन्हें खिलाईं. समीर, विनय के बोलचाल के ढंग से जीवन के प्रति उस के दृष्टिकोण से बहुत प्रभावित हुआ था और मुसकराते हुए बोला था, ‘डाक्टर साहब, अपने इस मुरीद को भी जल्दी से डाक्टर बनवा दीजिए, फिर इन के लिए कोई कालिज ढूंढ़ते हैं.’

‘जी हां, थोड़ा इंतजार कीजिए,’

डा. विनय बोले, ‘अभी 1 साल लग जाएगा. वैसे सौम्या बहुत मेहनती और लगनशील है. अपना शोध कार्य 30 महीने में पूरा कर दिखाएगी, मुझे पूरा भरोसा है.’

डा. विनय का विवाह बरेली की जया वर्मा के साथ हुआ था. जया एम.बी.ए. कर के मार्केटिंग मैनेजर बन गई थी. उस की लाइफ बड़ी बिजी थी. डा. विनय छुट्टियों में उस के पास आ जाते थे. जया कामकाज में व्यस्त रहती थी. उस के लिए पैसा और कामयाबी ही जीवन के उद्देश्य थे. यह इत्तफाक ही था कि जया, समीर वाली कंपनी की बरेली शाखा में कार्यरत थी.

समीर अकसर बरेली आफिस आता- जाता रहता था. कंपनी की मार्केटिंग बढ़ाने के लिए वह जया से मिलता, उस के साथ पास के कसबों में जाता और नई शाखाएं खोलने की तैयारी करता.

जया अपने अधिकारी समीर के साथ घुलमिल गई थी. जब भी समीर बरेली में होता तो जया ही उस की देखभाल करती थी. होटल में कमरा बुक करा दिया जाता और आफिस की गाड़ी दे दी जाती.

जया का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था. तीखे नयननक्श, गोल गुलाबी गाल, सपाट माथा, दूधिया रंग लिए चेहरे पर कानों तक लहराते बाल. सचमुच देखने में परी सी लगती थी वह. उस पर खुद को सजानेसंवारने में भी कोई कोरकसर नहीं छोड़ती थी.

समीर तो उस की एक झलक पाते ही दीवाना हो गया. वह जया को पाना चाहता था, मगर सदा के लिए नहीं. वह तो उस खूबसूरत खिलौने की तलाश में था जिस से जब चाहा खेल लिया और फिर सजा कर अलमारी में रख दिया.

जया अपनी मनभावन अदाओं, मनमौजी बातों और मदमाते यौवन से समीर को मदमस्त बना रही थी. बदले में वह उसे महंगेमहंगे तोहफों से निहाल कर रहा था. जया समझती, बौस उस पर बड़ा मेहरबान है. प्रेम दोनों ओर पल रहा था, मगर विशुद्ध व्यावसायिक, समीर को खिलौने की चाहत थी और जया को कामयाबी की, इसलिए अपनेपन का स्वांग दोनों खूब करते थे.

दोस्ती परवान चढ़ने लगी. समीर, जया को एरिया मैनेजर बनाने के स्वप्न दिखा रहा था. जया की गोलगोल आंखों में सुनहरा भविष्य घूम रहा था. वह समीर को हर कीमत पर खुश रखना चाहती थी. दोनों एकदूसरे के वर्तमान से इतने खुश और संतुष्ट थे कि उन्होंने कभी भी अतीत को कुरेदने की गलती नहीं की.

एक दिन समीर होटल में बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था. जया ने चहकते हुए कहा, ‘‘सर, आप तो हमेशा टूर पर होते हैं, हमें भी कभी बरेली से बाहर ले चलिए न.’’

समीर ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘क्यों नहीं, बोलो कहां चलोगी? मनाली, मसूरी या आगरा.’’

जया ने अपने गुलाबी अधरों पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘परसों पूर्णिमा है, क्यों न आगरा चला जाए? पे्रम की अनूठी मिसाल, पत्थर में रोमांस, दूधिया चांदनी में नहाया ताज, मुमताज को पुकारता सा लगता है. सर, आप पहले कभी ताज देखने आगरा गए हैं?’’

समीर बनावटी चिढ़न के साथ बोला, ‘‘जया, मैं तुम से नाराज हो जाऊंगा. क्या सर, सर लगा रखी है. यह आफिस नहीं है. तुम मुझे समीर बुला सकती हो.’’

जया ने नजरें झुकाते हुए कहा, ‘‘ठीक है.’’

‘‘जया, आगरा तो मैं कई बार गया हूं मगर इतनी फुरसत कहां जो चांदनी रात में ताज का दीदार कर सकूं. बस, आगरा पहुंचा, लोगों से मिला, बिजनेस का हाल पूछा और चलता बना. मैं तो ठहरा रमता जोगी, बहता पानी,’’ समीर रोमांटिक हो रहा था. उस ने जया की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘ताज भी तुम्हें देख कर ताजा हो जाएगा.’’

जया शरम से लाल हो गई. मुसकराते हुए बोली, ‘‘तारीफ करना तो कोई आप से सीखे.’’

‘‘थैंक्यू, जा कर अपनी तैयारी करो, कल रात को निकल पड़ते हैं. मैं अभी 2 टिकट बुक करा देता हूं,’’ समीर ने मुसकराते हुए कहा.

जया कृतज्ञ भाव से बोली, ‘‘थैंक्यू, समीर, कल मिलते हैं और आगरा चलते हैं.’’

उधर सौम्या को अपने बहुत करीब पा कर डा. विनय जया को भूल से गए थे. दोनों रात में कभीकभी फोन पर बातें कर लेते थे. सौम्या ने भी डा. विनय की तन्हाई को दूर कर दिया था. घर से दूर एक अच्छा दोस्त किसे खुशी नहीं देता. विनय फैशन के इस दौर में अतीत की अप्सरा को अपने सुघड़ हाथों से तराश रहा था. इतिहास की प्रेम कथाओं में डूबी सौम्या उन्हें कभी वैशाली की नगरवधू आम्रपाली लगती, कभी हाथ में वरमाला लिए संयोगिता बन जाती और कभी गुलाब सी खिलखिलाती नूरजहां, तो कभी हुस्न की मलिका मुमताज नजर आती थी.

सौम्या अपने शोध को प्रामाणिक बनाने के लिए लाइबे्ररियों की सीढि़यां चढ़तीउतरती, ऐतिहासिक प्रणय स्थलों की खाक छानती और दिन भर पढ़तीलिखती. उस की इस शोध यात्रा में एक शख्स हमेशा साये के समान उस के साथ रहता, वह कोई और नहीं, डा. विनय थे.

एक दिन डा. विनय ने सौम्या से पूछा, ‘‘भारत का सर्वश्रेष्ठ पे्रमस्मारक कौन सा है?’’

सौम्या ने तपाक से उत्तर दिया, ‘‘ताजमहल.’’

‘‘क्या कभी चांदनी रात में ताज के दीदार किए हैं?’’

‘‘नहीं, सर.’’

‘‘पूर्णिमा की रात में ताज का खास महत्त्व है,’’ डा. विनय बोले.

‘‘वह क्यों? उस रात उसे देखने से क्या मिलता है?’’

‘‘आंखों को सुख, मन को शांति और हृदय को अपूर्व आनंद. चांदनी रात में ताज की खूबसूरती सिर चढ़ कर बोलती है. ऐसा लगता है कि शाहजहां और मुमताज अपनीअपनी कब्रों से निकल कर एकटक एकदूसरे को निहार रहे हों.’’

‘‘आप सच कह रहे हैं?’’

‘‘इस में झूठ बोल कर क्या मिलेगा.’’

‘‘फिर तो मैं पूनम की रात में ताज अवश्य देखने जाऊंगी. आप मेरे साथ चलेंगे न?’’ सौम्या ने आग्रह से कहा तो डा. विनय चाह कर भी मना नहीं कर पाए.

समीर और जया सुबह ही आगरा पहुंच गए थे. दोनों एक होटल में ठहर गए. सफर की थकान दूर करने के लिए कड़क काफी का सहारा लिया. कुछ देर बाद बे्रकफास्ट किया और फिर अपनेअपने बिस्तर पर पसर गए. जया के मन में समीर को ले कर कोई घबराहट नहीं थी. उसे समीर पर पूरा भरोसा था.

समीर भी खाने को ठंडा कर के खाना चाहता था. उसे कोई उतावलापन नहीं था. वह तो जया के समर्पण की प्रतीक्षा कर रहा था. उसे भरोसा था कि जया कटी पतंग सी उस की बांहों में गिरेगी और वह जैसे चाहेगा, उस के साथ खेलेगा. वक्त ने भी उसे क्या खूब मौका दिया था. पूर्णिमा की रात, चांदनी में चमकता ताज और उस पर हंसतीखिलखिलाती कामिनी का साथ. समीर को इस से अधिक और क्या चाहिए?

जया की आंख खुली तो उस की नजर घड़ी पर पड़ी. शाम के 5 बज चुके थे. उस ने समीर को जगाया, तो समीर ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘‘अभी क्या जल्दी है, आज तो चांद भी देर से निकलेगा.’’

‘‘अब उठो भी,’’ जया बोली, ‘‘तैयार होना है, कुछ खानापीना है और फिर ताज भी तो चलना है.’’

‘‘अरे, उठता हूं बाबा, जाओ, पहले तुम तो तरोताजा हो लो, बस, 5 मिनट में उठता हूं. थोड़ी देर और सोने दो.’’

जया ने अकेले बालकनी में खड़े हो कर चाय पी और फिर नहाने चली गई.

जया ने नारंगी रंग की साड़ी पहनी. हलका मेकअप किया, और फिर आईने में खुद को तिरछी नजरों से निहारा तो आईने के किसी कोने में उसे विनय घूरता नजर आया. पल भर के लिए वह ठिठक गई. यह उस के मन का भ्रम था. अगले पल चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुसकान लाते हुए बुदबुदाने लगी, ‘अरे, डा. साहब…आप दून घाटी में इतिहास पढ़ाओ, हम तो खुद अपना इतिहास लिख रहे हैं. वैसे भी तुम कब मेरी पसंद रहे हो. घरपरिवार की मानमर्यादा का खयाल रखते हुए मैं ने हां कर दी थी.’

समीर ने आज सफेद रंग का सूट नेवी ब्लू टाई के साथ पहना. काले चमचमाते जूते. सिर के काले घने घुंघराले बाल उसे हैंडसम बना रहे थे. गठीला बदन, सुंदर, सुदर्शन गोल चेहरा और चेहरे पर मृदुल मुसकान किसी भी औरत का दिल जीतने के लिए काफी थे. समीर ने पहली बार जया को साड़ी में देखा तो बरबस उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘ओह, नाइस, वेरी ब्यूटीफुल.’’

जया ने अपनी तारीफ सुन कर धीरे से हाथ मिलाया तो उस ने जया के हाथ को चूम लिया.

जया ने धीरे से अपना हाथ हटा लिया, तो समीर दिल की बात जबान पर लाते हुए बोला, ‘‘जया, कयामत लग रही हो.’’

‘‘और आप हैंडसम.’’

‘‘कहीं तूफान न आ जाए.’’

‘‘मुझे उस की परवा कब है?’’

समीर ने जया को अपनी बांहों में भर लिया. जया के शरीर में बिजली सी दौड़ गई. उस ने  समीर के गाल पर किस करते हुए बडे़ प्यार से कहा, ‘‘पहले ताज को देख लो, मुमताज को फिर गले लगाना. चलो, देर हो रही है.’’

सौम्या और डा. विनय भी दोपहर बाद आगरा पहुंच गए थे. उन्होंने एक गेस्ट हाउस में कमरा बुक कराया था. शाम ढलने के साथ ही उन दोनों ने भी ताज देखने की तैयारियां शुरू कर दी थीं. सौम्या के लिए यह उत्सुकता और कौतूहल का विषय था और विनय के लिए इतिहास से वर्तमान में आने का सुनहरा अवसर. दोनों को लगता था कि ताज के सम्मुख बैठ कर कुछ दिल के अध्याय खोलेंगे. दोनों जब गेस्ट हाउस से निकले तो ऐसा लगा कि आज के शाहजहां और मुमताज मध्यकालीन प्रणय स्मारक पर प्रेम की नई इबारत लिखने जा रहे हों. ठीक 9 बजे डा. विनय, सौम्या को अपने साथ लिए ताज परिसर में पहुंच गए.

अपनी सोलह कलाओं के साथ चांद आकाश में निकला तो चांदनी ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. चांदनी में नहाया ताज सचमुच बेजोड़ था. लोग ठगे से इस अनुपम दृश्य का आनंद ले रहे थे.

डा. विनय सौम्या को ताज के सामने वाली बेंच पर ले गए और बोले, ‘‘सौम्या, यहां बैठ कर ताज की सुंदरता का अवलोकन करो.’’

‘‘वाह, कितना अपूर्व, कितना स्वच्छ, कितना निर्मल, कितना कोमल, इस के जैसा कोई नहीं. प्रेम की अद्भुत मिसाल,’’ सौम्या के मुख से निकल पड़ा.

‘‘इस का इतिहास नहीं जानोगी?’’ डा. विनय बोले.

‘‘सर, वह मैं ने पढ़ रखा है.’’

‘‘एक तथ्य मैं बता देता हूं. जब शाहजहां को उस के बेटे औरंगजेब ने कैदखाने में डाल दिया, तब वह घंटों तक इस इमारत को देख कर रोता रहता था.’’

‘‘शाहजहां इतना प्यार करते थे मुमताज को?’’ सौम्या आश्चर्य से बोली.

‘‘हां, शाहजहां का प्यार इतिहास में अमर है.’’

इस तरह दोनों अपनी इतिहास चर्चा में इतने मग्न थे कि उन्हें पता ही न चला कि कब उन के बगल वाली बेंच पर एक खूबसूरत जोड़ा आ बैठा है, जो अपनी प्रेमकथा का इतिहास स्वयं लिख रहा है. दोनों एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले खुल कर प्रेम का इजहार कर रहे थे.

अचानक सौम्या की नजर पीछे पड़ी तो उस ने समीर को पहचान लिया. एक अनजान औरत को समीर के साथ देख कर उस का चेहरा तमतमा उठा. मुट्ठियां भिंचने लगीं. वह पैर पटकते हुए बगल वाली बेंच के सामने जा खड़ी हुई. समीर अपनी प्रेमलीला में इतना मस्त था कि उसे सौम्या के आने की आहट का भी पता नहीं चला.

सौम्या ने झुंझलाते हुए पूछा, ‘‘कौन है यह औरत? और यह सब क्या है, समीर? तो यहां है, तुम्हारी बरेली. झूठ, मुझे धोखा दे कर रंगरेलियां मना रहे हो.’’

समीर को झटका सा लगा. वह सकपका गया. जया से पल्ला झाड़ते हुए बोला, ‘‘सौम्या, तुम यहां, वह भी अकेली, मुझे बताया तक नहीं.’’

‘‘तो तुम ने क्या मुझे बताया कि तुम आगरा में पराई औरत के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे हो.’’

जया की स्थिति काटो तो खून नहीं वाली हो गई थी. सौम्या ने बड़बड़ाना जारी रखा, ‘‘मैं अकेली नहीं आई हूं, मेरे साथ मेरे गाइड डा. विनय आए हैं.’’

विनय का नाम सुनते ही जया के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह अपना मुंह छिपा कर वहां से भागना चाहती थी. तभी शोरगुल सुन कर विनय भी वहां पहुंच गए. बनीठनी जया को समीर के साथ देख कर विनय खुद को ठगा सा महसूस करने लगे. उन्होंने तो सपने में भी यह नहीं सोचा था कि जया इस हद तक गिर जाएगी.

आज डा. विनय का एक नए इतिहास से परिचय हो रहा था, जिस में न प्रेम था न त्याग और न समर्पण. यदि था तो केवल फरेब, शरीर का आकर्षण, वासना की भूख और महत्त्वाकांक्षा की अंधी गली.

समीर दूसरे के घर चोरी करने चला था, लेकिन उस के अपने घर भी डाका पड़ने वाला था. हमाम में सभी नंगे थे. चारों एकदूसरे को भूखे भेडि़यों की नजर से देख रहे थे. समीर विनय को घूर रहा था तो जया, सौम्या को. इतिहास ने उन्हें चौराहे पर ला खड़ा किया.

चांद वही था, ताज वही था और चांदनी भी वही थी मगर चेहरों से हंसीखुशी की रंगत गायब थी. माहौल एकदम बदल गया था. शृंगार रस का स्थान अब रौद्र एवं करुण रस ने ले लिया था. बेंचों पर बैठे दोनों जोड़े भी बदल गए थे. पल भर पहले की मुसकान, उत्साह, उमंग और हर्ष अब आरोपप्रत्यारोप, मानमनुहार और पश्चाताप में बदल चुके थे, चारों को अपने किए पर ग्लानि थी. पतिपत्नी के बीच भरोसे का बंधन खिसक रहा था.

प्रेम तो पावन और निर्मल होता है, प्रेम का प्रतीक ताज यही बयां कर रहा था. मंदमंद मुसकरा रहा था और शायद यही कह रहा था, ‘ताज बोले तो…’

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