कहानी: स्वदेश के परदेसी
आस्ट्रेलियाई शहर पर्थ के सीक्रेट गार्डन कैफे में बैठी अलाना अपने और्डर का इंतजार करती हुई न्यूजपेपर के पन्ने पलट रही थी, तभी उस के मोबाइल पर यीरंग का फोन आ गया.
‘‘हैलो डार्लिंग, क्या कल किंग्स पार्क में होने वाली कैंडिल विजिल में तुम भी चलोगी? मेरे पास एक मित्र से फेसबुक के जरिए निमंत्रण आया है.’’
‘‘कौन सी और किस की कैंडिल विजिल?’’
‘‘वही जो मेलबौर्न के टैक्सी ड्राइवर मनमीत सिंह की याद में निकाली जा रही है.’’
‘‘वह तो इंडियन की कैंडिल विजिल है, हमें क्या लेनादेना है उस से. कोई मतलब नहीं है उस का हम से.’’
‘‘इंडियन की कैंडिल विजिल है… क्या मतलब है तुम्हारा, क्या कहना चाहती हो तुम? क्या हम और तुम इंडियन नहीं हैं?’’
‘‘नहीं, बिलकुल नहीं.’’ अलाना लगभग चीखती हुई बोली. आसपास बैठे लोगों के हैरानी से उसे ताकने के कारण उसे याद आया कि वह एक सार्वजनिक स्थान पर बैठी हुई है.
पानी के 2 घूंट गटक कर अपनेआप पर काबू करती हुई बोली, ‘‘नहीं, मैं नहीं जाऊंगी. तुम तो ऐसे ही हो, सबकुछ जल्दी ही भूल जाते हो. याद नहीं तुम्हें कि दिल्ली में हमारे साथ क्या हुआ था? हर तरह का नर्क देख लिया था हम ने वहां. यहां आस्ट्रेलिया में आए हुए हमें तकरीबन 5 साल हो गए हैं. अभी तक सब ठीक ही चल रहा है. किसी मनमीत सिंह के साथ मेलबौर्न में क्या हुआ, हमें कोई लेनादेना नहीं. मगर दिल्ली, वहां की तो जमीन पर पहला कदम रखते ही हमारे दुर्दिन शुरू हो गए थे. दोजख बन गई थी हमारी जिंदगी. दूसरे देशों में आ कर ये लोग रेसिज्मरेसिज्म चिल्लाते हैं. खुद के गरीबान में झांक कर नहीं देखते कि खुद का असली रूप क्या है?’’
‘‘बिलकुल दुरुस्त फरमाया तुम ने, अलाना. सब से बड़े नस्लवादी तो हमारे अपने देशवासी ही हैं,’’ अब यीरंग की आवाज भी सुस्त हो चुकी थी, ‘‘खैर, कोई जबरदस्ती नहीं है, अभी तो तुम्हारे पास सोचने के लिए समय है. कल तक तय कर लेना कि तुम्हें जाना है या नहीं.’’
लाना ने कौफी के घूंट भरने शुरू किए. पर्थ में सीक्रेट गार्डन कैफे की कौफी उस की मनपसंद कौफी थी. वह जबतब यहां कौफी पीने चली आया करती थी. मगर आज यीरंग से फोन पर बात होने के बाद, 5 साल पहले दिल्ली में किए गए अपमान के घूंटों की स्मृतियां कौफी के स्वाद को कड़वा व बेस्वाद कर गईं. चिंकी, मोमो, चाऊमीन, बहादुर, हाका नूडल्स जैसे तमाम शब्द फिर से कानों में गूंजते हुए उस की वैयक्तिकता को ललकारने लगे. याद आ गया वह समय जब वह मिजोरम से दिल्ली विश्वविद्यालय, इतिहास में मास्टर्स करने, आई थी.
‘पासपोर्ट निकालो,’ एयरपोर्ट अथौरिटी के एक आदमी ने कड़क आवाज में पूछा था उस से.
‘वह क्यों सर, मैं इंडियन हूं और अपने ही देश में एक प्रांत से दूसरे प्रांत में जाने के लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती, इतना तो हम भी जानते हैं.’
‘अच्छा, शक्ल से तो इंडियन नहीं लगती हो. चलो एक छोटा सा टैस्ट कर लेते हैं. जरा यह तो बताओ कि इंडिया में कुल मिला कर कितने प्रांत हैं?’
‘सर, आप नस्लवाद फैला रहे हैं, मेरे नैननक्श मेनलैंड में रहने वालों से अलग हैं, इस का यह मतलब नहीं कि उन का अधिकार इस देश पर मुझ से अधिक हो जाता है. हमें तो गर्व होना चाहिए कि हमारे देश में हर तरह की शक्लसूरत, खानपान वाले लोग रहते हैं. इंडिया मेरी मातृभूमि है और इस पर जितना हक आप का बनता है उतना ही मेरा भी है. रही बात आप के सवाल के जवाब की, तो उस के बदले में मैं भी आप से एक सवाल करती हूं, ‘कौन सी महिला स्वतंत्रता सेनानी जेल में सब से लंबे समय तक रही थी? अगर आप सच्चे हिंदुस्तानी हैं तो आप को इस का जवाब जरूर पता होना चाहिए.’
‘एयरपोर्ट अथौरिटी में मैं हूं या तुम? यहां सवाल पूछने का हक सिर्फ मुझे है.’
‘हम लोकतंत्र में रहते हैं. हमारा संविधान हर नागरिक को सवाल पूछने व अपने विचार व्यक्त करने का हक देता है. खैर, आप की इन्फौर्मेशन के लिए उस स्वतंत्रता सेनानी महिला का नाम था- रानी गाइडिनलियु और वे मणिपुर की थीं. अब देखिए न, सर, आप अपनेआप को इंडियन कहते हैं और आप को अपने देश के इतिहास की जानकारी नहीं है. जब मिजोरम, नगालैंड, मणिपुर में रहने वाले लोगों को झांसी की रानी और भगतसिंह का इतिहास पता है तो आप को भी तो रानी गाइडिनलियु के बारे में पता होना चाहिए.’
अलाना उस औफिसर का साक्षात्कार सच से करवा चुकी थी और अब वह ‘मान गए मैडम, अब बस भी कीजिए,’ कह कर खिसियाई मुसकराहट देता हुआ अपना बचाव कर रहा था.
दिल्ली के मर्द अलाना को चरित्रहीन समझते थे और बस या टैक्सीस्टैंड पर खड़ी देख कर सीधा मतलब निकालते थे कि वह धंधे के लिए खड़ी है. ऐसे ही एक मौके पर उस की मुलाकात यीरंग से हुई थी. यीरंग 5 साल पहले इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी की पढ़ाई करने के लिए अरुणाचल प्रदेश से दिल्ली आया था और एक कंपनी में डेटा साइंटिस्ट के पद पर कार्य कर रहा था. एक दिन उस ने सड़क पर गुजरते हुए देखा कि कुछ लोग बसस्टौप पर खड़ी एक मिजो गर्ल को तंग कर रहे हैं. उस ने अपनी कार वहीं रोक दी और अलाना की मदद करने आ पहुंचा. यीरंग को देख कर वे असामाजिक तत्त्व तुरंत ही भाग गए.
उस दिन यीरंग ने अलाना को उस के फ्लैट तक सुरक्षित पहुंचा दिया और यहीं से उन की दोस्ती की शुरुआत भी हो गई. एक से दर्द, एक सी समस्याओं के दौर से गुजर रहे थे दोनों. यही दुविधाएं दोनों को जल्दी ही एकदूसरे के करीब ले आईं और पहली मुलाकात के एक साल बाद उन्होंने शादी कर ली. उन दोनों की शादी के बाद अलाना की छोटी बहन एंड्रिया भी दिल्ली में पढ़ने आ गई और उन के साथ रहने लगी.
शादी के बाद उन की जरूरतें बढ़ने और एंड्रिया के साथ आ कर रहने के कारण उन्हें बड़े घर की जरूरत महसूस हुई. बहुत से मकान देखे गए. कुछ मकान पसंद नहीं आते थे और जो उन्हें पसंद आते, उन के मकान मालिकों को ‘चिंकीस’ को अपना मकान देना गवारा नहीं था. मकान की तलाश के दौरान उन्हें रंगबिरंगे, सुखददुखद अनुभव हो रहे थे. कई अनुभव चुटकुले बनाने के काबिल थे तो कई दिल को लहूलुहान करते कांच की किरचों जैसे थे.
एक मकान मालिक अपने 2 बैडरूम के फ्लैट को दिखाते हुए कुछ इस अंदाज में कमैंट्री दे रहा था जैसे कि कोई टूरिस्ट गाइड किसी टूरिस्ट को दिल्ली का लालकिला दिखा रहा हो. वापस लौटते समय उस कमैंट्री की नकल उतारतेउतारते अलाना और एंड्रिया के पेट में हंसतेहंसते बल पड़ गए थे. एक घर का किराया एजेंट ने सिर्फ 5 हजार रुपए बताया था, मगर जब वे मकान देखने पहुंचे तो मकान मालिक एकाएक 8 हजार रुपए महीने की मांग करने लगा.
‘मगर हमारे कुछ लोकल फ्रैंड्स तो केवल 5 हजार रुपए में ही ऐसा घर ले कर इस इलाके में रह रहे हैं,’ यीरंग ने डील करने की कोशिश करते हुए कहा.
‘जरूर रह रहे होंगे. लोकल्स तो लोकल्स होते हैं, विश्वास के लायक होते हैं. तुम्हारे जैसे चिंकी लोगों को घर में रखने का मतलब है ऐक्सट्रा रिस्क लेना. अभी कल के ही अखबार में खबर पढ़ी थी हम ने. तुम्हारी तरफ की एक औरत ड्रग का धंधा करती हुई पकड़ी गई. ऊपर से पड़ोसियों को तुम्हारे गंदे खाने की दुर्गंध के साथ भी निभाना पड़ेगा. देख लो अगर 8 हजार रुपए किराया मंजूर है तो अभी एडवांस निकालो, वरना अपना रास्ता नापो. खालीपीली मेरा वक्त बरबाद तो करो मत,’ मकान मालिक अपनी मोटी तोंद पर हाथ फिराता, एक जोर की डकार मारता हुआ बोला.
यह सीधासीधा नस्लवाद था. लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था. इस मकान की लोकेशन भी सुविधाजनक थी, इसलिए सौदा मंजूर कर लिया गया. दिल्ली में नईनई आई एंड्रिया की अपनी अलग परेशानियां थीं. क्लास में सभी उसे पार्टीगर्ल और पियक्कड़ समझते थे और मना करने पर भी बारबार नाइटक्लब में पार्टी के लिए चलने को कहते. मिजोरम की खूबसूरत फिजाओं को छोड़ कर दिल्ली के प्रदूषित, गरम मौसम में उस का मन वैसे ही उचाट रहता था, ऊपर से ऐसी बातें मानसिक तनाव को और भी ईंधन दे रही थीं.
उस का दिल करता कि वह रोज आराम से बैठ कर वौयलिन बजाए मगर मेनलैंड का भयंकर कंपीटिशन उसे किताबों में सिर खपाने को मजबूर करता. मिजोरम की नैसर्गिक सुंदर वादियों में बिताए, नदियों की कलकल से संगीतमय, दिन अब दूर की याद बन कर रह गए थे. जरूरतें उसे प्रकृति की गोद के सुरम्य, कोमल एहसास से निकल कर महानगर की कठोरता से जूझने को मजबूर कर रही थीं.
‘क्यों आते हम यहां दिल्ली में, अगर सरकार ने वक्त रहते हमारे इलाके में भी शिक्षा के विकास पर ध्यान दिया होता. क्या जरूरत थी हमें. और आए भी हैं तो क्या हुआ, अपने देश में ही तो हैं. फिर सब को हम से इतना परहेज क्यों है? क्यों सब के सब यहां हमारे एल्कोहलिक और लूज कैरक्टर होने का पूर्वाग्रह पाल कर बैठे हैं?’ एंड्रिया अकसर अलाना से शिकायत करती.
‘एंड्रिया माई स्वीट, यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा बल्कि हमजैसे हरेक के साथ यही होता है. हर जगह पक्षपात है. ऐसा लगता है कि हमारे अस्तित्व की किसी के लिए कोई अहमियत ही नहीं है. फिर वह चाहे सरकार हो या मीडिया या मुख्य भूभाग के वासी, सभी खुलेआम नकारते हैं हमारे भारतीय होने को. न्यूजचैनल वाले मुख्यभूभाग के छोटे से छोटे, पिछड़े हुए गांव में पहुंच जाते हैं खबरों के लिए मगर नौर्थईस्ट इंडिया के प्रदेशों में जाने से उन्हें भी बड़ा परहेज है,’ अलाना ने कहा.
‘हम अंगरेजी अच्छे स्तर की बोलते हैं, अलग तरह के कपड़े पहनते हैं, म्यूजिक में रुचि रखते हैं और रिलैक्स्ड जिंदगी जीना चाहते हैं तो इस का मतलब यह नहीं कि हमारे चरित्र कमजोर हैं. बस, हम आधुनिकता की सीढि़यों पर मेनलैंड के लोगों से एक मंजिल ज्यादा चढ़ चुके हैं, इसलिए हमारी सोच भी प्रगतिशील है, पिछड़ी हुई नहीं. हम हिंदुस्तानियों को चाहिए कि जब पश्चिम से सूरज उगे तो हम उसे हिंदुस्तानी आसमां का सूरज मान कर प्रणाम करें. इस बात की कोई अहमियत नहीं होनी चाहिए कि हम वह सूरज दिल्ली में देख रहे हैं या मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा में,’ एंड्रिया ने अपना मत व्यक्त किया.
‘ठीक कहती हो एंड्रिया, तुम. पर ये बातें औरों की भी समझ में आएं तब न. एक बार तो हद ही हो गई थी. तुम्हारे दिल्ली आने से पहले की बात है. मैं और यीरंग चांदनी चौक घूमने गए थे. वहां कुछ मवालियों का ग्रुप यीरंग के हेयरस्टाइल का मजाक उड़ाने लगा. वे सब मोमो, मोमो कह कर चिल्लाने लगे.
यीरंग ने उन से पूछा, ‘तुम मुझे मोमो क्यों बुला रहे हो, मैं भी तुम्हारे जैसा ही इंडियन हूं?’ तो उन में से एक ने उस के सिर में धौल जमा दी और दूसरा उस की गरदन पकड़ कर बोला, ‘साला, हमारी दिल्ली में आ कर हम से जवाबदारी करता है चाऊमीन कहीं का.’ इस के साथ ही भीड़ में से कुछ और लोगों ने आ कर यीरंग के चारों तरफ घेरा बना लिया और ‘चाइनीज चिनीमिनी चिंगचिंग चू, चाइनीज चिनीमिनी चिंगचिंग चू’ सुर में सुर मिला कर सब गाने लगे.’
‘और इतना सब होने पर आप ने और जीजू ने कुछ भी विरोध नहीं किया, दीदी, मेरे खयाल से आप को पुलिस में रिपोर्ट लिखवानी चाहिए थी.’
‘यह क्या कम है कि हमारी जान बच गई. मैं ने सुन रखा है कि पुलिस भी हमारे जैसों की नहीं सुनती और हमारे मामलों को दर्ज किए बिना रफादफा करने की कोशिश करती है. एंड्रिया माई स्वीट, हम तो ‘स्वदेश के परदेसी’ हैं. देश तो है अपना, पर हम हैं सब के लिए पराए. अपने ही देश में अपनी पहचान के मुहताज हैं हम.’
‘क्या करें अब आगे बढ़ना है तो हालात से तो जूझना ही पड़ेगा,’ कुछ रोंआसी सी एंड्रिया अपनी किताबें उठाती हुई कालेज जाने के लिए निकल गई. वह इस टौपिक में फंस कर और दिमाग खराब नहीं करना चाहती थी.
अलाना अब तक अपनी डिगरी पूरी कर चुकी थी और किसी अच्छी नौकरी की तलाश करती हुई अपना घर संभाल रही थी.
उस शाम एंड्रिया समय पर घर वापस नहीं आई. पहले तो अलाना ने सोचा कि एंड्रिया अपने किसी मित्र के घर चली गई होगी पर जैसेजैसे रात गहरी होने लगी तो उस की चिंता, घबराहट से डर में बदलने लगी. एंड्रिया के सभी मित्रों को फोन किया जा चुका था. उन से पता चला कि वह आज कालेज आई ही नहीं थी. यह खबर और भी होश उड़ाने वाली थी. सारी रात अपार्टमैंट की खिड़की से बाहर झांकते हुए और यहांवहां फोन करने में बीत गई थी. लेकिन एंड्रिया का कहीं कुछ अतापता नहीं चला. हार कर यीरंग और अलाना ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाने का फैसला किया.
‘यह दिन तो आना ही था. तुम लोगों को समझना चाहिए कि तुम दिल्ली में रह रहे हो और तुम्हें यहां रहने वालों के तौरतरीके अपनाने चाहिए. तुम लोग यहां आते हो और न्यूसेंस क्रियेट करते हो. तुम इंडियन नहीं, बल्कि चायना से आए हुए घुसपैठिए लगते हो,’ पुलिस इंस्पैक्टर ने पान चबाते हुए सामने बैठे यीरंग से कहा.
‘क्या हैं यहां के तौरतरीके?’
‘जब आए थे तो दिल्ली पुलिस की व्यवहार नियमावली पत्रिका ले कर पढ़नीसमझनी चाहिए थी. इस में स्पष्ट किया गया है कि जब तुम्हारे जैसे चिंकी लोग दिल्ली में आएं तो उन्हें किस तरह का व्यवहार करना चाहिए और तुम्हारी औरतों को भारतीय परिधान पहन कर भारतीय नारियों की तरह रहना चाहिए.’
‘क्या आप सिखाएंगे हमें व्यवहार करना? हम क्या सर्कस के जानवर हैं और आप वहां के रिंग लीडर जो आप हमें अपने हिसाब से प्रशिक्षित करेंगे. हम भी दिमाग रखते हैं. थोड़ीबहुत समझ तो हमें भी है. वैसे भी, हम यहां अपनी गुमशुदा बहन की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए आए हैं, आप से आचार संहिता सीखने के लिए नहीं.’
एक घंटे की मगजमारी के बाद आखिरकार रिपोर्ट दर्ज हो ही गई. पुलिस ने अपने स्तर पर पूछताछ और जांच शुरू कर दी थी. मगर प्रक्रिया अत्यंत ही ढीलीढाली थी. जैसेजैसे वक्त बीत रहा था, वैसेवैसे एंड्रिया के जीवित मिलने की उम्मीद धूमिल पड़ती जा रही थी. उस को गायब हुए अब तक 5 दिन हो चुके थे.
और फिर एक दिन सुबहसुबह दिल्ली में अभी सूर्योदय हुआ ही था कि अलाना के मोबाइल पर थाने से फोन आ गया, ‘मैडम, यमुना नदी के एक धोबीघाट पर कल एक सूटकेस में किसी युवती की बौडी छोटेछोटे टुकड़ों में पड़ी मिली है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, उस की उम्र 16 से 20 साल के बीच की होनी चाहिए. डीएनए रिपोर्ट आना अभी बाकी है. आप से निवेदन है कि आप शिनाख्त के लिए आ जाएं. हो सकता है कि ये एंड्रिया…’
इस से आगे सबकुछ शून्य हो चुका था. अलाना को इंस्पैक्टर की आवाज किसी गहरे कुएं से आती सी प्रतीत हो रही थी. वह और यीरंग जिस हालत में बैठे थे, उसी में पुलिस थाने पहुंच गए. बौडी छोटेछोटे टुकड़ों में पड़ी मिली, लाश का चेहरा तेजाब छिड़क कर बिगाड़ दिया गया था. फिर भी बाएं हाथ पर बना बिच्छू का टैटू उस मृत मानव शरीर को एंड्रिया की लाश होने की पुष्टि साफसाफ कर रहा था.
सबकुछ प्रत्यक्ष था. फिर भी अलाना का दिल इस हृदयविदारक सच को झुठलाने की असफल कोशिश कर रहा था. वह जानती थी कि यह विक्षिप्त देह खूबसूरत एंड्रिया की ही है पर मन को सच स्वीकार नहीं था. डीएनए रिपोर्ट के आने में अभी 24 घंटे बाकी थे. लमहालमहा एकएक सदी सा प्रतीत हो रहा था. आखिर वक्त गुजरा और डीएनए रिपोर्ट भी आई, वह भी एंड्रिया की हत्या की पुष्टि के साथ.
जब तक एंड्रिया जीवित थी, अलाना को उस से कुछ खास मोह न था. दोनों बहनों का परस्पर लगाव औसत दर्जे का ही था. अलाना ने यीरंग के साथ नईनई दुनिया बसाई थी. वे दोनों एकांत चाहते थे. परंतु एंड्रिया के साथ आ कर रहने से एकांत मिलना काफी हद तक नामुमकिन हो गया था. उन जैसों से मकान मालिक वैसे ही डेढ़दो गुना किराया वसूल करते थे, ऊपर से एंड्रिया की वजह से उन्हें एक बैडरूम ज्यादा लेना पड़ा था. इसलिए उन के खर्चे बढ़े थे. इस कारण भी अलाना को छोटी बहन महज एक जिम्मेदारी लगती थी.
वह मन ही मन मिन्नतें करती थी कि जल्दी से जल्दी एंड्रिया की पढ़ाई पूरी हो और वह उस की जिम्मेदारी से मुक्त हो कर चैन की सांस ले. अलाना को भान नहीं था कि उसे एंड्रिया की जिम्मेदारी से इतनी जल्दी, इस रूप में मुक्ति मिलेगी.
ग्लानिबोध से अलाना को अपनेआप से घृणा होती. वह घंटों एंड्रिया की तसवीर के आगे बैठी रहती, तो कभी वह एंड्रिया के वौयलिन के तारों को छूती उस की कोमल उंगलियों के स्पर्श को महसूस करने की कोशिश करती. वह बाथरूम में जा कर एंड्रिया के तौलिए से अपना चेहरा ढक कर तौलिए की खुशबू में छोटी बहन के एहसास के कतरों को ढूंढ़ने का प्रयास करती.
एंड्रिया जब तक थी तब तक अलाना के लिए कुछ खास नहीं थी, पर मरने के बाद वह उस के अंदर समा कर उस का हिस्सा बन गई. दिनरात छोटी बहन को याद कर के अलाना की आंखों से अविरल अश्रुधारा बहती रहती.
एंड्रिया के मर्डर की गुत्थी का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. मिजोरम सरकार केंद्र सरकार पर निरंतर दबाव डाल रही थी. जगहजगह सामूहिक प्रदर्शन और धरने हो रहे थे. मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. अलाना को अब दिल्ली से घृणा हो चुकी थी. वह सबकुछ छोड़ कहीं दूर चली जाना चाहती थी जहां इन रंजीदा यादों का कोई भी अवशेष न हो. उसे कहीं से पता चला कि आस्ट्रेलिया में डेटा साइंटिस्ट्स के पेशे में आगे बढ़ने के अच्छे अवसर हैं. इस तथ्य को केंद्र बना कर वह यीरंग पर आस्ट्रेलिया चलने के लिए दबाव डालने लगी.
‘आस्ट्रेलिया जा कर क्या करेंगे, अलाना, अपना देश, अपना देश होता है,’ यीरंग तर्क करता.
‘किस बात का अपना देश. पहले ही बहुतकुछ खो चुके हैं हम यहां. अब और क्या खोना चाहते हो तुम…सैप्टिक होता तो बौडी पार्ट भी काट देना पड़ता है. जब मेनलैंड के वासी हमें इंडियन नहीं मानते तो हम क्यों दिल जोड़ कर बैठे हैं सब से. कुछ नहीं हैं हम यहां, सिवा स्वदेश के परदेसी होने के.’
‘लोगों की सोच बदल रही है, अलाना. धीरेधीरे और बदलेगी. अब उत्तर भारत में से प्रोफैशनल लोग मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु में जाने लगे हैं और दक्षिण भारत से दिल्ली, गुड़गांव में आने लगे हैं. 30 साल पहले यह चलन इतना नहीं था. यह मेलजोल समय के साथ और मिलनेजुलने पर ही संभव हो पाया है.
नौर्थईस्ट के लोगों का दिल्ली आना अभी नई शुरुआत है. वक्त के साथ इस संबंध में भी अनुकूलन बढ़ेगा और आपसी ताल्लुकात में सुधार आएंगे. टू रौंग्स कांट सेट वन राइट. अलाना समझने की कोशिश करो,’ यीरंग अलाना को समझाने का भरसक प्रयास करता.
‘भारतीय नागरिकता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. फिर हमें अपने ही देश में बारबार अपना पासपोर्ट क्यों दिखाना पड़ता है. क्यों हम से उम्मीद की जाती है कि हम अपने माथे पर ‘हम भारतीय ही हैं’ की पट्टी लगा कर घूमें. हम से निष्ठापूर्ण आचरण की आशा क्यों की जाती है जब हमारे इतिहास का कहीं किसी पाठ्यक्रम में जिक्र नहीं, हमारे क्षेत्र के विकास से सरकार का कोई लेनादेना नहीं. मेनलैंड में हमें छूत की बीमारी की तरह माना जाता है. कुछ नहीं मिला हमें यहां, मात्र उपेक्षा के. क्या हमारी गोरखा रेजीमैंट के जवानों का कारगिल युद्ध में योगदान किसी दूसरी रेजीमैंट्स से कम था?’ अलाना सचाई के अंगारे उगलती.
उन्हीं दिनों एंड्रिया का एक मित्र, जो एंड्रिया के गायब होने वाले दिन ही गुवाहाटी चला गया था, अचानक दिल्ली वापस आ गया. वापस आने पर उसे जैसे ही एंड्रिया के दूसरे मित्रों से उस की संदिग्ध मौत का समाचार मिला तो वह तत्काल ही अलाना से मिलने पहुंचा. उस ने अलाना को बताया कि उस दिन एंड्रिया कालेज आने से पहले रास्ते में कोचिंग वाले ट्यूटर के घर से कुछ नोट्स लेने जाने वाली थी, उन्होंने ही उसे अपने फ्लैट पर आ कर नोट्स ले जाने को कहा था.
एंड्रिया के मित्र के बयान के आधार पर पुलिस ने जब उस ट्यूटर के घर की तलाशी ली तो सारा सच सामने आ गया. बिल्ंिडग में लगे सीसीटीवी कैमरे के पुराने रिकौर्ड्स की जांच करने पर पाया गया कि उस दिन एंड्रिया सुबह करीब
9 बजे ट्यूटर के अपार्टमैंट में आई थी. मगर उस के वापस जाने का कहीं कोई रिकौर्ड नहीं था. हां, उसी दिन दोपहर करीब 1 बजे ट्यूटर और उस का एक साथी एक बड़ा सा ब्रीफकेस घसीटते हुए बाहर ले जा रहे थे. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के दबाव में उन्होंने जल्दी ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया.
घटना वाले दिन जब एंड्रिया वहां नोट्स लेने पहुंची तो ट्यूटर के यहां उस का एक साथी भी मौजूद था. दोनों ने बारीबारी से एंड्रिया के साथ जोरजबरदस्ती की और अपने मोबाइल में उस का वीडियो भी बना लिया. उन्होंने एंड्रिया को धमकाया कि वह इस बारे में किसी से कुछ न कहे. बस, आगे भी ऐसे ही उन से मिलने आती रहे. अगर वह उन की बात नहीं मानेगी तो वे उस का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देंगे. उन के लाख समझाने पर भी एंड्रिया चिल्लाचिल्ला कर कहती रही कि वह चुप नहीं बैठेगी और उन दोनों को उन के किए की सजा दिलवा कर चैन लेगी. जब वह नहीं मानी तो उन्होंने गला दबा कर उस की हत्या कर दी और लाश के टुकड़े कर के एक ब्रीफकेस में भर कर यमुना नदी में फेंक आए.
मुजरिमों की गिरफ्तारी के कुछ समय बाद ही यीरंग को आस्ट्रेलिया से एक अच्छा जौब औफर मिल गया. वह और अलाना एक नई शुरुआत करने के लिए वहां प्रवास कर गए. उन्हें आस्ट्रेलिया आए हुए अब तक करीब 5 साल हो चुके थे और मासूम एंड्रिया को दुनिया छोड़े हुए करीब 6 साल. मगर उस की मौत से मिले जख्म थे कि सूखने का नाम ही नहीं ले रहे थे. जबजब इन जख्मों में टीस उठती, दिल का दर्द शिद्दत पर पहुंच कर दिन का चैन और रातों की नींद हराम कर के रख देता.
एंड्रिया की सारी भौतिक यादें दिल्ली में ही छोड़ दी गई थीं पर क्या भावनात्मक यादों की परछाइयां पीछे छूट पाई थीं? कोई न कोई बात उत्प्रेरक बन कर यादों के बवंडर ले आती. आज मनमीत सिंह की कैंडिल विजिल की खबर उत्प्रेरक बनी थी तो कल कुछ और होगा…कुल मिला कर जीवन में अमन नहीं था. दुनिया के लिए एंड्रिया 6 साल पहले मर चुकी थी पर अलाना के लिए आज तक वह उस के दिलदिमाग में रह कर उस की सभी दुनियावी खुशियों को मार रही थी.
‘‘मैडम, एनीथिंग एल्स?’’ बैरे की आवाज पर अलाना चौंकी और यादों के भंवर से बाहर आई. उस ने घड़ी पर नजर डाली. उसे कैफे में बैठेबैठे 2 घंटे से ज्यादा हो चुके थे. शुष्क मौसम की वजह से कौफी का खाली प्याला सूख चुका था. मेनलैंड के लोगों के व्यवहार की शुष्कता ने अलाना के अंदर की इंसानियत को भी सुखा दिया था. इस शुष्कता का प्रभाव इतना ज्यादा था कि आज मनमीत सिंह की हत्या की खबर भी आंखों में नमी नहीं ला पाई. खुद के साथ हुए हादसों ने मानवता के प्रति उस के दृष्टिकोण को संकुचित कर दिया था.
अब आंखें नम होती तो थीं पर केवल व्यक्तिगत दुख से. वह नफरत बांट रही थी नफरत के बदले. क्या वह समस्या का निदान कर रही थी या फिर जानेअनजाने में खुद समस्या का हिस्सा बनती जा रही थी?
अलाना ने एक और कैपीचीनो और्डर की. शायद दिमाग को थोड़ी सी ताजगी की जरूरत थी. वह सड़ीगली यादों से छुटकारा चाहती थी. वो यादें जो कि उस के वर्तमान को कैद किए बैठी थीं भूतकाल की सलाखों के पीछे.
कैपीचीनो खत्म करते ही वह तेज कदमों से कैफे से बाहर निकल आई. एक निष्कर्ष पर पहुंच चुकी थी वह. एक ताजा हवा का झोंका उस के चेहरे को छूता हुआ गुजरा तो उस ने आकाश की ओर निहारा, जाने क्यों आकाश आज और दिनों की भांति ज्यादा स्वच्छ लग रहा था. उसे घर पहुंचने की जल्दी न थी, इसलिए उस ने स्वान नदी की तरफ से एक लंबा सा ड्राइव लिया. नदी, वायु, आकाश, पेड़पौधे, पक्षी सभी तो हमेशा से थे यहां. जाने क्यों कभी उस का ही ध्यान नहीं गया था अब तक इन खूबसूरत नजारों की ओर. उस ने सोचा, चलो कोई बात नहीं, जब आंख खुले उसी लमहे से एक नई सुबह मान कर एक नई शुरुआत कर देनी चाहिए.
शाम को यीरंग के घर वापस आते ही अलाना ने उस को अपना फैसला सुनाया, ‘‘यीरंग, मैं भी कल मनमीत सिंह की कैंडिल विजिल में चलूंगी तुम्हारे साथ. तुम ठीक ही कहते हो ‘टू रौं कांट सेट वन राइट’.’’
‘‘मुझे तुम से ऐसी ही उम्मीद थी, अलाना. गलती तो हम भी करते हैं. जो थोड़े से फ्रैंड्स मैं ने और तुम ने दिल्ली में बनाए थे, क्या दिल्ली से चले आने के बाद हम ने उन से कोई संबंध रखा? दोस्ती के पौधे के दिल के आंगन में उग आने के बाद, उस की परवरिश के लिए मेलमिलाप के जिस खादपानी की जरूरत होती है क्या वह सब हम ने दिया? नहीं न, तो फिर हम पूरा दोष दूसरे पर मढ़ कर खुद का दामन क्यों बचा लेते हैं.
‘‘जब कोई परिवर्तन लाने का प्रयास करो तो यह अभिलाषा मत रखो कि परिवर्तन तुम्हें अपने जीवनकाल में देखने को मिल जाएगा. हां, अगर सच्चे मन से परिवर्तन लाने की चेष्टा करो तो बदलाव जरूर आएगा और उस का लाभ आने वाली पीढि़यों को अवश्य होगा.’’
‘‘सही बात है, यीरंग. बहुत से वृक्ष ऐसे होते हैं जिन्हें लगाने वाले उन के फलों का आनंद कभी नहीं ले पाते. मगर फिर भी वे उन्हें लगाते हैं अपनी अगली पीढ़ी के लिए. शायद इसी तरह से कुछ इंसानी रिश्तों के फल भी देर में मिलते हैं. वक्त लगता है इन रिश्तों के अंकुरों को वृक्ष बनने में. एक न एक दिन इन वृक्षों के फल प्रेम की मिठास से जरूर पकते हैं. मगर, पहली बार किसी को तो बीज बोना ही होता है. तुम ने एक बार मुझ से कहा था कि ‘आज भी दुनिया में अच्छे लोगों की संख्या ज्यादा है, इसीलिए यह दुनिया चल भी रही है. जिस दिन यहां बुरे लोगों का प्रतिशत बढ़ेगा, यह दुनिया खत्म हो जाएगी.’ तुम सही थे, यीरंग, तुम बिलकुल सही थे.’’
और दूसरे दिन ‘स्वदेश के परदेसी’ अलाना और यीरंग आस्ट्रेलिया की भूमि पर पूर्णरूप से देसी बन कर अपने देसी भाई मनमीत सिंह की कैंडिल विजिल में शामिल होने के लिए सब से पहले पहुंच गए थे.
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