कहानी - रोल मॉडल

“कोई भी इंसान सर्वगुण संपन्न या अपने आपमें पूर्ण नहीं होता. उसमें कुछ-न-कुछ कमियां अवश्य होती हैं, इसलिए किसी एक इंसान को अपना ‘रोल मॉडल’ मानना नासमझी है. इसी तरह हर इंसान में कोई ख़ूबी भी अवश्य होती है. हमें चाहिए कि हम उसकी उस ख़ूबी को अपना रोल मॉडल मानकर आत्मसात करें.”
शिखा से फ़ोन पर बात करके हमेशा शुभ्रा का मन हल्का हो जाता है, इकलौती लाड़ली बेटी जो ठहरी. लेकिन आज उसका फ़ोन सुनने के बाद शुभ्रा का मन भारी हो गया था. कल शिखा के कॉलेज का वार्षिकोत्सव था. उसे वर्ष का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी चुना गया था. अपने भाषण में उसने शुभ्रा को अपना रोल मॉडल बताया था. वह बड़ी होकर शुभ्रा जैसी बनना चाहती है.

किसी भी मां के लिए यह फ़ख़्र की बात हो सकती है कि उसकी बेटी बड़ी होकर उसके जैसी बनना चाहे, लेकिन शुभ्रा के लिए बेटी का यह ख़्वाब किसी वज्रपात से कम न था. आज उसकी बेटी उसके जैसा बनना चाहती है, क्योंकि वह उसकी असलियत नहीं जानती. जिस दिन उसे अपनी मां की असलियत पता चलेगी वह उसका मुंह तक देखना पसंद नहीं करेगी. क्या वह सारी ज़िंदगी उस भयावह दिन के आने की आशंका में ही गुज़ार देगी? आशंका का यह पहाड़ वह कब तक अपने सीने पर लादे रहेगी और पल-पल घुटती-मरती रहेगी? नहीं, अब उससे और नहीं सहा जाएगा. वह आज अभी इसी व़क़्त शिखा को सब कुछ बता देगी, लेकिन कैसे…? बरसों की कहानी कुछ ही पलों में फ़ोन पर कैसे बतायी जा सकती है? वह शिखा को विस्तार से पत्र लिखेगी. हां, यही ठीक रहेगा. अब चाहे जो अंजाम हो. कांपते हाथों से शुभ्रा ने काग़ज़ क़लम उठा लिए.

बेटी शिखा,

सदा प्रसन्न रहो!

बहुत प्रयासों के बाद तुम्हें यह पत्र लिखने का साहस जुटा पाई हूं. वो भी इसलिए कि तुमने मुझे अपना रोल मॉडल चुना है. बेटी, तुम्हारे इस चयन से मैं अपनी ही नज़रों में गिर गई हूं. मैं तुम्हारे सामने आज अपना अतीत खोलकर रख रही हूं. मैं जानती हूं ऐसा करने के बाद मैं तुम्हें खो बैठूंगी, लेकिन मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं. इस झूठ का बोझ मैं अब और नहीं ढो सकती. समझ में नहीं आ रहा कि कहां से शुरू करूं? चलो, शुरुआत अपनी ज़िंदगी के उस काले अध्याय से करती हूं, जिसने मेरी ज़िंदगी को गुमनामी के अंधेरे में डाल दिया.

मैं एल.एल.बी. अंतिम वर्ष में थी. एक दिन अपनी एक सहेली के यहां से लौटने में मुझे देरी हो गई. आंधी और बारिश के कारण बहुत जल्दी ही अंधेरा घिर आया था. मैंने जल्दी घर पहुंचने के चक्कर में एक शॉर्टकट पकड़ लिया. जाने कहां से घात लगाए एक दरिंदे ने मेरा मुंह दबाकर मेरा सब कुछ लूट लिया. मैंने किसी तरह अपने को संभाला और लुटी-पिटी अवस्था में घर तक पहुंची. वृद्ध मां-बाप को सच बताकर आघात पहुंचाने का साहस न कर सकी. मैंने कह दिया कि कीचड़ में पांव फिसल गया था और ऐसी हालत हो गई. उन्होंने सहज ही विश्‍वास भी कर लिया. नहा-धोकर मैंने तन पर लगे दाग़ तो छुड़ा लिए, लेकिन मन हमेशा के लिए कलुषित हो गया. घर में मेरी शादी की चर्चा चल रही थी, पर मैं इसके लिए मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार नहीं थी.

दुख और निराशा मेरी ज़िंदगी पर इस कदर हावी हो गए कि एक दिन मैंने आत्महत्या करने की ठान ली और इसी इरादे से सरयू नदी की ओर चल पड़ी. वहां के शांत-एकांत वातावरण में एक नौजवान तस्वीर बनाने में लीन था. उसे देख मैंने अपना रास्ता बदलना चाहा. लेकिन उसने मुझे देख लिया था और मेरी मनोदशा ताड़कर बोला, “रुकिए! उधर नदी गहरी है.”

“आपसे मतलब…?” मैंने रुखाई से कहा.

“आप मरने जा रही हैं?”

‘तो?’

“क्या इसके अलावा आपके पास और कोई चारा नहीं बचा?”

“नहीं बचा तभी तो मरने जा रही हूं.”

“तो जाते-जाते अपनी समस्या मुझे बताती जाइए. शायद मैं कोई हल सुझा सकूं. आख़िर एक अंतिम प्रयास करने में हर्ज़ ही क्या है?”

मैं कुछ सोचने लगी.

“आप किसी को बताएंगे तो नहीं?”

“मैं तो नहीं बताऊंगा, लेकिन आपने आत्महत्या कर ली तो लोग उल्टे-सीधे कई कयास लगा लेंगे, मसलन- प्रेम में असफल, बलात्कार की शिकार या…”

“बस, बस…” मैं सुन नहीं पाई.

“ओह आई एम सॉरी. मैं आपको हर्ट नहीं करना चाहता था, लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि दुनिया की कोई भी समस्या इतनी गंभीर नहीं कि उसके साथ जिया न जा सके. दुनिया में आपसे भी अधिक दुखी इंसान हैं, लेकिन वे भी तो जी रहे हैं. हो सकता है कल को आपकी ज़िंदगी में कुछ ऐसा हो जाए कि आप सोचकर सुकून महसूस करें कि अच्छा हुआ जो उस दिन मैंने कोई ग़लत क़दम नहीं उठाया.”

“आप मुझे बहला रहे हैं?”

“नहीं, मैं तो आपको हक़ीक़त बता रहा हूं. हो सकता है, कल को आपकी ज़िंदगी में इससे भी बुरा कुछ घट जाए…”

“नहीं, इससे अधिक बुरा कुछ नहीं हो सकता.”

“यह तो और भी अच्छी बात है. जब इतना बुरा आपके साथ पहले ही घट चुका है तो अब तो जो भी होगा, इससे तो अच्छा ही होगा.”

मैं उसके तर्कों के सामने लाजवाब हो गई. अपनी बातों से उसने मुझे विश्‍वास में ले लिया और मैंने उसे धीरे-धीरे सब कुछ बता दिया. रजत ने मुझे संभाला, समझाया और ज़िंदगीभर एक दोस्त की तरह साथ देने का वादा किया.

मैं लौट आई और फिर से अपनी पुरानी ज़िंदगी जीने का प्रयास करने लगी. रजत और मैं अच्छे दोस्त बन चुके थे. उन्हीं दिनों मुझे पता चला कि मैं गर्भवती हूं. मैंने यह बात रजत को बताई. अब हमारे पास सिवाय गर्भपात के कोई चारा नहीं रह गया था. लेकिन डॉक्टर ने यह कहकर इंकार कर दिया कि समय ज़्यादा हो चुका है और गर्भपात से मेरी जान को ख़तरा है. हम निराश लौट आए. रजत ने सुझाया कि मैं मां-पिताजी द्वारा पसंद किए गए लड़के से जल्द-से-जल्द शादी कर लूं, लेकिन यह मेरी आत्मा को गवारा नहीं हुआ. रजत ने मुझे समझाने की कोशिश की कि दुनिया में कोई तो लड़का होगा, जो सब कुछ जानते हुए भी मुझसे शादी करना चाहेगा.

मैं उसकी इस बात पर बिफर पड़ी, “झूठी तसल्ली मत दो. ऐसी हालत में कौन करेगा मुझसे शादी..? क्या तुम कर सकते हो?”

“म…मैं? नहीं.”

“बस हो गए न सब आदर्श हवा! जानबूझकर मक्खी कोई नहीं निगलना चाहता.”

“तुम ग़लत समझ रही हो. मैं तुमसे तो क्या किसी से भी शादी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं उसे मातृत्व सुख नहीं दे पाऊंगा. एक दुर्घटना में मैं अपनी यह क्षमता गंवा चुका हूं.”

“जब मुझे तुमसे शादी करने में कोई ऐतराज़ नहीं तो तुम्हें क्यों है? हम दोनों की मजबूरी हमें शादी के बंधन में बांध सकती है.”

“मैं ऐसी शादी में विश्‍वास नहीं करता, जिसकी नींव ही मजबूरी पर टिकी हो. जहां प्यार हो, वहीं शादी होनी चाहिए.”

‘मैं तुमसे प्यार करती हूं रजत. अपनी मजबूरी के चलते तुम्हें नहीं बता पा रही थी.”

मेरे बहुत आग्रह करने पर वह मुझसे शादी के लिए तैयार हो गया. मां और पिताजी को भी हमने किसी तरह मना लिया और इस तरह हमारी शादी हो गई. नियत समय पर मैं मां भी बन गई. अपने जन्म का इतिहास जानकर तुम्हें बहुत धक्का लगा होगा. लेकिन बेटी बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं. निश्छल, मासूम और पवित्र. चाहे उसके जन्म का कोई भी इतिहास रहा हो, इसलिए अपने प्रति कभी भी घृणा या हीन-भाव मन में न लाना. तुम्हारा जन्म भले ही असामान्य परिस्थितियों में हुआ, लेकिन तुम्हारी ज़िंदगी को ख़ुशियों से भरने में मैंने और तुम्हारे पापा ने कोई कसर नहीं छोड़ी. तुम्हें दुनिया की हर ख़ुशी देने की कोशिश की.

मेरी वकालत चल निकली थी और रजत भी एक कॉलेज में कला के शिक्षक हो गए थे. तुम नौ-दस बरस की हो चली थी, लेकिन रजत अब भी तुम्हें एक छोटी बच्ची की तरह ही दुलारते थे. तुम्हें गोद में बिठा लेते, तुम्हारे गाल चूम लेते. तुम भी उनके घर में आते ही उनसे लिपट जाती. घंटों तुम दोनों अकेले में हंस-हंसकर बतियाते रहते. यह सब देख मेरे मन में संशय का सांप फन उठाने लगा था. रजत तो जानते हैं कि तुम उनका ख़ून नहीं हो. कहीं बेटी के प्यार की आड़ में वे अपनी हवस तो नहीं बुझा रहे? मर्द जात का क्या भरोसा! मैं तो कोर्ट-कचहरी-मुक़दमों में उलझी रहती हूं. ज़्यादातर समय तो रजत ही शिखा के साथ होते हैं. वह बेचारी मर्दों के खेल क्या जाने? वह अबोध तो वासना और वात्सल्य का भेद ही नहीं समझती. मेरी सशंकित निगाहें और असहज व्यवहार रजत की आंखों से छुप न सकी. उन्होंने एक दिन मुझसे इसका कारण पूछ ही लिया. झिझकते हुए मैंने उन्हें अपना डर बता दिया. रजत के लिए यह किसी वज्रपात से कम न था. उन्होंने तुरंत घर छोड़कर जाने की तैयारी आरंभ कर दी. मैंने ऐसा कदापि नहीं सोचा था.

मैंने तुम्हारे पापा को रोकने का बहुत प्रयास किया, माफ़ी भी मांगी, लेकिन वे नहीं रुके. मैंने तुम्हें यह कहकर शांत कर दिया कि वे हमें ठुकराकर कहीं चले गए हैं.

कई सालों के बाद पता चला कि दूर एक शहर में उन्होेंने अपना प्रशिक्षण केन्द्र खोल लिया है. नीचे उनका पता और फ़ोन नंबर लिख रही हूं. मुझे मालूम है पत्र मिलते ही तुम तुरंत उनसे संपर्क करोगी. मैं उनसे कई बार मिली, फ़ोन पर भी संपर्क किया. मेरे प्रति उनके दिल में कोई द्वेष नहीं है. इतना सब होने के बावजूद उन्होंने मुझसे कभी नफ़रत नहीं की. सच तो यह है कि वे इन क्षुद्र भावनाओं से बहुत ऊपर उठ चुके हैं. उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह कला के प्रति समर्पित कर दिया है. तुम्हें यदि ज़िंदगी में किसी को अपना रोल मॉडल बनाना है तो अपने पिता को बनाओ.

मैं जानती हूं यह पत्र तुम्हें मिलने पर मैं तुम्हें पूर्ण रूप से खो दूंगी, लेकिन मुझे इसका कोई मलाल नहीं है. किसी चीज़ को खोने का दुख तो उन लोगों को होता है, जिन्होंने उसे बहुत मेहनत से अर्जित किया हो. मेरा अपनी मेहनत से अर्जित तो कुछ भी नहीं है. यहां तक कि जो ज़िंदगी मैं जी रही हूं, वह भी रजत ने ही दी है. मुझसे शादी करके उन्होंने मुझे समाज में मान दिलाया, तुम्हें पिता का नाम दिया.

तुम्हें सब कुछ लिख देने के बाद मेरा मन हल्का हो गया है. मैं जानती हूं तुम इतनी परिपक्व और समझदार हो चुकी हो कि सब कुछ समझ सकती हो. मेरी ग़लतियां अक्षम्य हैं, इसलिए तुमसे क्षमा भी नहीं मांग रही हूं. मेरी ग़लतियों से सबक लेना और उन्हें तुम अपनी ज़िंदगी में न दोहराना. शायद इसी मामले में मैं तुम्हारी रोल मॉडल साबित हो सकूं.
तुम्हारी मां

पत्र ख़त्म करते ही शुभ्रा ने उसे तुरंत लिफ़ा़फे में डालकर पोस्ट कर दिया. कहीं फिर वह कमज़ोर न पड़ जाए. सात दिन व्यतीत हो चुके थे. शुभ्रा को न दिन में चैन था, न रात में.

शिखा को मेरा पत्र तो कभी का मिल चुका होगा. उसने अपने पापा से अवश्य ही संपर्क स्थापित किया होगा. बाप-बेटी का मिलन भी हो गया होगा. तो अब मैं किसका इंतज़ार कर रही हूं और क्यूं?

डिंग… डांग… डोरबेल की आवाज़ से शुभ्रा की विचार श्रृंखला टूटी. दरवाज़ा खोलते ही शिखा उससे लिपट गई.
“हाय ममा! गुड मॉर्निंग! कितना प्लेज़ेंट सरप्राइज़ दिया न मैंने आपको सवेरे-सवेरे! रूमा, अंदर आ जाओ. मीट माई मदर. यस! माय रोल मॉडल!”

रोल मॉडल! यह शिखा क्या कह रही है? क्या इसे मेरा पत्र नहीं मिला? हे भगवान, यह सब क्या हो रहा है? कितनी हिम्मत जुटाकर मैंने वह पत्र लिखा था. अब सब कुछ फिर से कैसे कह सकूंगी? असमंजस में डूबती-तैरती शुभ्रा के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे.

“रूमा! वह रहा बाथरूम. तुम फ्रेश होकर आओ. मैं तब तक ममा से बात करती हूं… कहां खो गई ममा?”

“तुम… तुम्हें मेरा…”

“मुझे आपका पत्र मिल गया था. एकबारगी तो आप पर बहुत ग़ुस्सा आया. सोच लिया था कभी आपका मुंह तक नहीं देखूंगी.”

“फिर…?” शुभ्रा व्यग्र थी सब कुछ जानने को.

“फिर मैं पापा से मिली. उन्हें आपका पत्र दिखाया. सारे गिले-शिकवे दूर हुए. मैं उनके गले लगकर ख़ूब रोई. आपके लिए ख़ूब बुरा-भला कहा. आपके पास कभी न लौटने की बात कही… उन्हें अपना ‘रोल मॉडल’ कहा… फिर पापा ने मुझे समझाया. उन्होंने कहा, ‘कोई भी इंसान सर्वगुण संपन्न या अपने आपमें पूर्ण नहीं होता. उसमें कुछ-न-कुछ कमियां अवश्य होती हैं, इसलिए किसी एक इंसान को अपना ‘रोल मॉडल’ मानना नासमझी है. इसी तरह हर इंसान में कोई ख़ूबी भी अवश्य होती है. हमें चाहिए कि हम उसकी उस ख़ूबी को अपना रोल मॉडल मानकर आत्मसात करें. तुम्हारी मम्मी ने अपना सतीत्व खो दिया था. लेकिन फिर भी हिम्मत जुटाई और दुबारा नई ज़िंदगी शुरू की, चाहे मेरी प्रेरणा से ही सही. पर उनकी यह जिजिविषा उन्हें रोल मॉडल मानकर आत्मसात करने योग्य है. उन्होंने ज़िंदगी में ग़लतियां कीं, लेकिन उन्हें क़बूल करने का साहस भी दिखाया. उनका यह आत्मबल और आत्मविश्‍वास आत्मसात करने योग्य है. संसार का हर इंसान तुम्हारा रोल मॉडल है यदि तुम उसकी एक ख़ूबी को आत्मसात करो. उन्होंने ही मुझे आपके पास लौटने की सलाह दी. उनके अनुसार, मेरी ज़रूरत आपको उनसे ज़्यादा है.

शुभ्रा सोच रही थी. रजत के बताए अनुसार वह हर इंसान में एक ख़ूूबी तो ढूंढ़ लेगी, लेकिन रजत में तो एक खामी ढूंढ़ना भी मुश्किल है.

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