कहानी - अंधेरा छंट गया

शाम का सुरमई अंधेरा फैलने लगा था. खामोशी की आगोश में पार्क सिमटने लगा था. कुछ प्रेमी जोड़ों की मीठी खिलखिलाहटें सन्नाटे को चीरती हुई नीला और आकाश को विचलित कर देती थीं. हमेशा की तरह फूलों की झाडि़यों से बनी पर्णकुटी में एकदूजे का हाथ थामे, उदासी की प्रतिमूर्ति बने, सहमे से बैठे, आंसुओं से भरी मगर मुहब्बत से लबरेज नजरों से एकदूसरे को निहार रहे थे. दोनों के बीच मौन पसरा हुआ था पर वातावरण में सायंसायं की आवाज मुखरित थी.

‘‘कुछ तो कहो आकाश, 2 दिन ही रह गए हैं मेरी मंगनी होने में. उस के बाद मैं बाबूजी के अजीज मित्र के बेटे रितेश की मंगेतर हो जाऊंगी जो शायद मेरे जीतेजी संभव नहीं है,’’ नीला के हृदय से निकले इन शब्दों ने आकाश के हृदय को चीर कर रख दिया.

‘‘शायद यही हमारी नियति है, वरना इन 6 महीनों में क्या मुझे एक छोटीमोटी नौकरी भी नहीं मिलती. पिताजी के गुजर जाने के बाद किसी तरह ट्यूशन आदि कर के अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की और नौकरी की तलाश में लग गया. नौकरी तो नहीं मिली लेकिन बड़े भाई की दया पर जीने के लिए मजबूर हो कर भाभी की आंखों की किरकिरी बन गया हूं. ऐसे में तुम्हीं कहो न, मैं क्या करूं? केवल प्यार के सहारे तो जीवन नहीं चलता है. बेरोजगारी के माहौल में झुलस जाएंगे. फूलों की सेज पर पली राजकुमारी को अपने साथ ठोकर खाने के लिए मैं कोई ऐसावैसा कदम भी नहीं उठाना चाहता. मेरी मानो तो तुम रितेश से शादी कर लो,’’  आकाश के स्वर रुकरुक कर निकले थे.

‘‘नहीं आकाश, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? मेरा जीवन तुम में बस गया है और जीवन के बिना क्या कोई जीवित रह पाया है. मेरी समझ से कल हम इस शहर को छोड़ कर दिल्ली चले जाएंगे. वहां मेरी बचपन की सहेली नीता रहती है, जो हमारे रहने की व्यवस्था करेगी. मैं ने उस से बात कर ली है. उस के पति एक महीने के लिए अमेरिका गए हैं. उन के आने तक हम वहीं रहेंगे. फिर उसी बीच हम कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेंगे. मैं ने कुछ रुपए भी जोड़ रखे हैं. पहले हम यहां से निकलें तो.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि हम यहां से कायरों की तरह भाग जाएं? मेरा मन यह रास्ता कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’

नीला रोती हुई बोली, ‘‘अगर तुम्हें नौकरी मिल भी जाती है, तो भी मेरे घर वाले तुम्हारे साथ मेरा रिश्ता करने के लिए तैयार नहीं होंगे. जिस जाति के लोग नौकर बन कर आज तक हमारी सेवा कर रहे हैं, मजाल है कि वे कभी हमारी बराबरी में बैठने का साहस कर के हम से ऊंचे स्वर में बात करें. उसी जाति के लड़के को वे इस जन्म में तो क्या, अगले सौ जन्मों में भी अपना दामाद स्वीकार नहीं करेंगे. ब्राह्मण की लड़की कुर्मी जाति के लड़के से प्यार कर के शादी करने का दुस्साहस करे, तुम क्या समझते हो, वे स्वीकार करेंगे? मुझे जीतेजी काटकूट कर गाड़ देंगे. मैं ने नीता की मदद से सारा इंतजाम कर लिया है. कल रात को हम दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे. अब तुम मुझे स्टेशन पर ही मिलोगे. पार्लर जाने के बहाने मैं घर से निकल कर सीधे वहीं चली आऊंगी.’’ और आकाश के साथ नीला पार्क से निकल गई.

सच में प्रेम का आगमन जीवन का अर्थ तो बदलता ही है, नातेरिश्तों के तमाम बंधनों से मुक्त भी कर देता है.

दूसरे दिन अपने आकाश के साथ, नीला ने मां के नाम संदेश छोड़ते हुए बचपन की दहलीज छोड़ दी.

संदेश यों था, ‘मेरे प्यार को किसी तरह आप लोग अपनाते नहीं और मैं आप की पसंद को जीतेजी स्वीकृत नहीं करती. मेरे समक्ष यही विकल्प था कि हम कहीं दूर जा कर अपने सपनों में रंग भरते हुए दुनिया बसा लें. आकाश मुझे नहीं, मैं आकाश को भगा कर लिए जा रही हूं. सवर्णों से लड़ने की इतनी हिम्मत उस में कहां? पुलिस आदि के चक्कर में पड़े तो आप लोग अपनी ही रुसवाई करवाएंगे. हम दोनों बालिग हैं, कानून या समाज हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. मेरी इस धृष्टता को क्षमा करिएगा. कभी, प्यार से हमें अपनाया तो ठीक है वरना अपनी इकलौती बेटी को भूल कर मेरे दोनों भाइयों के साथ सुखी रहिएगा, मां.’

दिल्ली पहुंच कर नीता की सहायता से कोर्ट में आकाश के साथ शादी कर ली तो नीला को ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे सारी दुनिया ही सिमट कर उस की बांहों में आ गई हो.



कुछ हफ्तों के अंदर ही नीला और आकाश ने नीता को हृदय से आभार प्रकट करते हुए एक रिहायशी इलाके में अपना आशियाना ढूंढ़ ही लिया. तीसरी मंजिल पर एक कमरे के फ्लैट में नीला और आकाश की प्यारभरी गृहस्थी रचबस गई तो नौकरी की तलाश करना दोनों का जनून बन गया. सुबह होते ही जैसेतैसे खाना बना कर डब्बे में पैक कर के दोनों ही नौकरी की खोज में निकल जाया करते थे.

मेहनत रंग लाई. नीला को एक पांचसितारा होटल में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई. असीम सौंदर्य की मलिका होने के साथ वह अति प्रतिभाशाली भी थी. फर्राटेदार अंगरेजी भी बोल लेती. होटल का मैनेजर तो नीला की शालीनता से इतना प्रभावित हुआ कि उस ने जो भी अपनी मांग और शर्त रखी बेझिझक उस पर स्वीकृति की मुहर लगा दी. नीला को नौकरी मिलने से आकाश को खुशी नहीं हुई. नौकरी मिलने का कारण उस ने नीला की प्रतिभा से ज्यादा उस के सौंदर्य को समझा. दरअसल, पढ़लिख जाने से ही वर्षों की पुरुषवादी मानसिकता समाप्त नहीं हो जाती. नीला ने आकाश के अंतर्मन को पढ़ लिया. बड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोली, ‘‘निराश क्यों होते हो, बहुत जल्द तुम्हें भी नौकरी मिल जाएगी. फिर हम और हमारे इंद्रधनुषी सपने होंगे. इतनी बेकारी में इतनी जल्दी नौकरी मिलना बहुत ही खुशी की बात है. चलो, खुश हो जाओ. आज की इस बड़ी उपलब्धि को हम ठंडीठंडी कुल्फी के साथ सैलिब्रेट करेंगे.’’

आरंभ में नीला, आकाश के साथ ही घर से निकल जाया करती थी. वह होटल की राह मुड़ जाती थी और आकाश दूसरी राह की ओर. वह नौकरी की तलाश में जीतोड़ मेहनत कर रहा था. ऐसे ही कशमकश में दिन पंख लगा कर उड़ते रहे पर आकाश को कोई नौकरी नहीं मिली. आशा के साथ हर दिन सूर्योदय होता और निराशा के साथ अस्त हो जाता. घरबाहर की जिम्मेदारियों के बोझ तले नीला की जवानी कुम्हलाई जा रही थी. फूल से भी कोमल नीला वज्र से भी कठोर हो गई थी. जानबूझ कर सबकुछ ओढ़ा गया था, फिर किस से शिकवाशिकायत की जाती. पर आकाश की वेदना को नीला निराशा व उदासीभरी आंखों से ही सहला दिया करती थी. टूटन दोनों ओर थी जिसे अनछुई छुअन से ही दोनों बांटते हुए जी रहे थे.

सिर्फ नीला की तनख्वाह से गृहस्थी के खर्च पूरे नहीं हो पा रहे थे. नीला के बदन से एकएक कर के सारे जेवर गायब हो रहे थे जिस का मलाल आकाश को भी था पर अपनी बेकारी में कर ही क्या सकता था. गृहस्थी के पहिए तले दोनों के अरमान दम तोड़ रहे थे. सारे इंद्रधनुषी सपने लुप्त हो चुके थे. तसल्ली के लिए दोनों के होंठों पर छिटकी हुई थकी मुसकान, निराशा के गहन अंधेरे को चीर अंतरंग उमंग बन कर उन्हें परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति दे रही थी.

नीता के पति ने आकाश को किसी फैक्टरी में 10 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर नौकरी दिला दी जो इतनी महंगाई और दिल्ली जैसे शहर में पर्याप्त तो नहीं थी पर डूबते जहाज को एक तिनके का सहारा जैसा जरूर मिल गया था. उन दोनों की खुशियों का ठिकाना नहीं था. जैसेतैसे डूबतेउतराते उन की गृहस्थी की नैया आगे बढ़ रही थी. मकानमालकिन से नीला की घनिष्ठता दिनोंदिन गहराती जा रही थी. अपने दुखसुख को नीला निसंकोच उन से साझा करती थी. वे भी हर प्रकार की सहायता के लिए तत्पर रहती थीं. उन का वश चलता तो वे उन से किराए की रकम भी न लेतीं लेकिन उन के पति पक्के बिजनैसमैन थे. नौकरी करने के साथ आकाश अच्छी और ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी तलाश करता रहा जो उतना आसान नहीं था जितना उस ने सोच रखा था.

इधर, नीला भी होटल से थक कर चूर लौटती थी. लंच और डिनर तो वह होटल में ही ले लिया करती. घर आ कर कुछ भी करने की स्थिति में नहीं रहती थी. नीला आ कर रात का खाना बनाएगी, इस आशा में आकाश बैठा रहता था.

‘‘मैं बहुत थक गई हूं, कुछ भी करने की हिम्मत नहीं है. प्लीज आकाश, कुछ भी अपने लिए बना लो. सोचती हूं कल से तुम्हारा खाना होटल से ही लेती आऊंगी. वहां पर काम करने वालों को कम रेट पर ऐसी सुविधाएं हैं.’’ आकाश को खीझ तो बहुत आती पर भूख तो कोई बहाना नहीं सुनती. ब्रैड खा कर सो जाता.

इधर, कितने दिनों से नीला के होटल से देर से घर आने में, और वह भी मैनेजर की गाड़ी में, आकाश को परेशान कर के रख दिया था. नीला भी तो कितनी बदल गई थी. पहले उस पर कितना प्यार उड़ेलती थी पर अब रात में आकाश जब भी उस की ओर हाथ बढ़ाता, अपनी थकान की बात कहते हुए वह दूर छिटक जाती थी. रविवार को भी वह ड्यूटी करने लगी थी. पूछने पर सपाट सा उत्तर, ‘‘अतिरिक्त समय में काम करने पर जो कमाई होगी उस से हम घरगृहस्थी का समान खरीदेंगे.’’

मैनेजर जरूरत से ज्यादा उस पर मेहरबान है, इधर कुछ दिनों से नीला यह देख व महसूस कर रही थी. दिन में कई बार किसी न किसी बहाने से उसे अपने चैंबर में बुला लेता था. चायकौफी के दौर के साथ इधरउधर की बातें किया करता था. कभी अपनी मृत पत्नी को याद कर के भावुक हो जाता तो कभी अपनी बेटी की बातें कर के खुश हो लेता. कभी उस ने मर्यादा की सीमा का अतिक्रमण नहीं किया था, इसलिए नीला को उस का साथ भाने लगा था.

आकाश अब उस के देर से लौटने पर आपत्तियां उठाने लगा था, पति नाम का जीव जो था वह. सुसज्जित घर, खाना, कमाई, सब से बढ़ कर पत्नी का सान्निध्य चाहिए था उसे. नीला कभीकभी खीझ कर रह जाती थी. राजकुमारी की तरह पलीबढ़ी नीला को अपने निर्णय पर कभीकभी पश्चात्ताप होने लगता था. एक सीमा तक उस ने अपने प्यार से आकाश को बदल दिया था पर अब एकदूसरे के प्रति दोनों की भावनाएं परिवर्तित हो चुकी थीं.

नीला और मैनेजर के बीच निश्चय ही अवैध संबंध है, यह सोचसोच कर आकाश अंदर ही अंदर पागल हो रहा था. नीला के सहयोग न करने के बावजूद उस के शरीर से जबरदस्ती करने में बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती थी उसे. आपसी मनमुटावों ने आएदिन तूतूमैंमैं का रूप अख्तियार कर लिया था. अब घर लौट कर आने में भी नीला को कोई आकर्षण नहीं रह गया था. उसे मैनेजर का संगसाथ भाने लगा था. मन लायक नौकरी नहीं मिलने के कारण आकाश का रौद्र रूप नीला को सहमा कर रख देता था. सारी मर्यादाओं की सीमा का अतिक्रमण करते हुए एक दिन उस ने नीला पर हाथ उठा दिया तो किसी घायल शेरनी की तरह उस ने भी आकाश को नहीं बख्शा.

उस दिन उस ने होटल में रात की ड्यूटी ले ली. युद्ध का अखाड़ा बने उस प्यार के आशियाने में लौटने की उस की जरा सी भी इच्छा नहीं हुई. नीला को रुके देख कर मैनेजर भी होटल में ही रुक गया. रात के सन्नाटे में मैनेजर ने नीला का सान्निध्य चाहा तो चीखनेचिल्लाने के बदले नीला ने बड़ी शालीनता से उन्हें समझा दिया.

‘‘माना कि आकाश को जीवनसाथी बनाना मेरा हद तक पागलपन था. बरात नहीं आई, सात फेरे क्या, कोई रस्म नहीं हुई. मां के गले लिपट कर रोई नहीं. उन की कोख को लज्जित करते हुए चोर की तरह बाबुल की दहलीज से भाग निकली. उस के प्यार और विश्वास के सहारे ही तो इतना बड़ा कदम उठा सकी थी. सर, दिल का वह भी इतना बुरा नहीं है. बस, हमारा समय खराब है. कितनी तकलीफ उठा कर बाधाओं से लड़ कर उस ने इतनी ऊंची डिगरी ली थी पर उस डिगरी का हुआ क्या, बेरोजगारी का दावानल सारे देश में फैला हुआ है जिस में झुलस रहे हैं आकाश जैसे युवकों के सपने. हर क्षेत्र में अमरबेल की तरह पसरी हुई राजनीति ने युवकों का सर्वनाश कर के रख दिया है. जिस दिन आकाश अपनी बेकारी पर विजय प्राप्त कर लेगा, उस के योग्य उस की पसंद की नौकरी मिल जाएगी, हमारा छोटा सा आशियाना खूबसूरत जहां बन जाएगा. हम उस के राजारानी बन कर चांदतारे पकड़ेंगे.                 

‘‘लेकिन कब तक, कह नहीं सकती. सर, आप बहुत अच्छे हैं. आप को एक से एक सहगामिनी मिल जाएंगी. आप के आकर्षणपाश में मैं भी बंधी हूं. एक बार आप हाथ बढ़ाएंगे, मैं किसी लता की तरह आप से लिपट जाऊंगी. फिर वह हो जाएगा जिसे कदापि नहीं होना चाहिए. प्लीज सर, शरीरप्राप्ति के लिए हमारी दोस्ती को दांव पर न लगाइए,’’ कह कर नीला ने अपनी हथेलियों में मुंह को छिपा लिया और फूटफूट कर रो पड़ी. दोनों के बीच समय मूक बना रहा. बेकारी के भूलभुलैये में एक पत्नी ने अपनी अस्मिता की गरिमा को खोने नहीं दिया था. यह बेकारी के मुंह पर एक बहुत बड़ा तमाचा था. अपनी पीठ पर छुअन का एहसास होते ही नीला ने चौंक कर सिर उठाया. मैनेजर के मुख से रुकरुक कर निकलता स्वर उस के कानों में अनमोल बूंदों को टपका रहा था, ‘‘मेरी इस अक्षम्य गलती को क्षमा कर देना, नीला. बेहद सुंदरता व असीम प्रतिभा की स्वामिनी का इतना मर्यादित रूप मैं ने जीवन में पहली बार देखा है. शिखर सी ऊंची तुम्हारी मानसिकता पर मुझे गर्व है. तुम ने मुझ भटके को राह दिखाई तो क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ कर नहीं सकता.

‘‘सुनो, कल तुम आकाश को साथ लाना. होटल का पूरा ऐडमिनिस्ट्रेशन कल से वही संभालेगा. रहने को फ्लैट, गाड़ी व सारी सुविधाएं तुम दोनों को मिलेंगी. तुम्हारे जीवन से अंधेरे के एकएक कतरे को खींच कर मैं रोशनी भर दूंगा. होेटल के मालिक होटल की सारी जिम्मेदारी मुझे सौंप कर अपने बेटे के पास अमेरिका जा चुके हैं. मैं जो चाहूं, करूं.

‘‘कसौटी पर कसे ऐसे खरे सोने मिलते कहां हैं. यह एक दोस्त को एक दोस्त का प्यारभरा तोहफा होगा.’’ निसंकोच हो कर नीला ने होटल मैनेजर की बांहों को थाम लिया. वहां कोई वासना नहीं थी. इस छुअन से स्नेह, प्यार, मनुहार, विश्वास छलक रहा था. कहीं दूर सूर्य की स्वर्णिम किरणें बिखर रही थीं. उन के साथ नीला के भी जीवन के अंधेरे का अंत हो चुका था. जितना हो सके, पढ़ेलिखे बेकारों का मार्गदर्शन कर के उन का हौसला बढ़ाएगी वह. घने घिरे बादलों में उन को क्षितिज तलाशने में किसी दामिनी की तरह सभी हताश लोगों का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश करेगी. इस निश्चय के साथ ही नीला उत्सुक हो कर अपने आकाश की बांहों में सिमटने के लिए जल्द से जल्द घर पहुंचने को बेचैन हो उठी. उस का पोरपोर आकाश के प्यार में ध्वनितप्रतिध्वनित हो रहा था.  

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