कहानी - अनोखा सबक

सिपाही टीकाचंद बड़ी बेचैनी से दारोगाजी का इंतजार कर रहा था. वह कभी अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी की तरफ देखता, तो कभी थाने से बाहर आ कर दूर तक नजर दौड़ाता, लेकिन दारोगाजी का कहीं कोई अतापता न था. वे शाम के 6 बजे वापस आने की कह कर शहर में किसी सेठ की दावत में गए थे, लेकिन 7 बजने के बाद भी वापस नहीं आए थे.

‘शायद कहीं और बैठे अपना रंग जमा रहे होंगे,’ ऐसा सोच कर सिपाही टीकाचंद दारोगाजी की तरफ से निश्चिंत हो कर कुरसी पर आराम से बैठ गया.

आज टीकाचंद बहुत खुश था, क्योंकि उस के हाथ एक बहुत अच्छा ‘माल’ लगा था. उस दिन के मुकाबले आज उस की आमदनी यानी वसूली भी बहुत अच्छी हो गई थी.

आज उस ने सारा दिन रेहड़ी वालों, ट्रक वालों और खटारा बस वालों से हफ्ता वसूला था, जिस से उस के पास अच्छीखासी रकम जमा हो गई थी. उन पैसों में से टीकाचंद आधे पैसे दारोगाजी को देता था और आधे खुद रखता था.

सिपाही टीकाचंद का रोज का यही काम था. ड्यूटी कम करना और वसूली करना... जनता की सेवा कम, जनता को परेशान ज्यादा करना.

सिपाही टीकाचंद सोच रहा था कि इस आमदनी में से वह दारोगाजी को आधा हिस्सा नहीं देगा, क्योंकि आज उस ने दारोगाजी को खुश करने के लिए अलग से शबाब का इंतजाम कर लिया है.

जिस दिन वह दारोगाजी के लिए शबाब का इंतजाम करता था, उस दिन दारोगाजी खुश हो कर उस से अपना आधा हिस्सा नहीं लेते थे, बल्कि उस दिन का पूरा हिस्सा उसे ही दे देते थे.

रात के तकरीबन 8 बजे तेज आवाज करती जीप थाने के बाहर आ कर रुकी. सिपाही टीकाचंद फौरन कुरसी छोड़ कर खड़ा हो गया और बाहर की तरफ भागा.

नशे में चूर दारोगाजी जीप से उतरे. उन के कदम लड़खड़ा रहे थे. आंखें नशे से बुझीबुझी सी थीं. उन की हालत से तो ऐसा लग रहा था, जैसे उन्होंने शराब पी रखी हो, क्योंकि चलते समय उन के पैर बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे. उन के होंठों पर पुरानी फिल्म का एक गाना था, जिसे वे बड़े रोमांटिक अंदाज में गुनगुना रहे थे.

दारोगाजी गुनगुनाते हुए अंदर आ कर कुरसी पर ऐसे धंसे, जैसे पता नहीं वे कितना लंबा सफर तय कर के आए हों.

सिपाही टीकाचंद ने चापलूसी करते हुए दारोगाजी के जूते उतारे. दारोगाजी ने सामने रखी मेज पर अपने दोनों पैर रख दिए और फिर पैरों को ऐसे अंदाज में हिलाने लगे, जैसे वे थाने में नहीं, बल्कि अपने घर के ड्राइंगरूम में बैठे हों.

दारोगाजी ने अपनी पैंट की जेब में से एक महंगी सिगरेट का पैकेट निकाला और फिल्मी अंदाज में सिगरेट को अपने होंठों के बीच दबाया, तो सिपाही टीकाचंद ने अपने लाइटर से दारोगाजी की सिगरेट जला दी.

‘‘साहबजी, आज आप ने बड़ी देर लगा दी?’’ सिपाही टीकाचंद अपनी जेब में लाइटर रखते हुए बोला.

दारोगाजी सिगरेट का लंबा कश खींच कर धुआं बाहर छोड़ते हुए बोले, ‘‘टीकाचंद, आज माहेश्वरी सेठ की दावत में मजा आ गया. दावत में शहर के बड़ेबड़े लोग आए थे. मेरा तो वहां से उठने का मन ही नहीं कर रहा था, लेकिन मजबूरी में आना पड़ा.

‘‘अच्छा, यह बता टीकाचंद, आज का काम कैसा रहा?’’ दारोगाजी ने बात का रुख बदलते हुए पूछा.

‘‘आज का काम तो बस ठीक ही रहा, लेकिन आज मैं ने आप को खुश करने का बहुत अच्छा इंतजाम किया है,’’ सिपाही टीकाचंद ने धीरे से मुसकराते हुए कहा, तो दारोगाजी के कान खड़े हो गए.

‘‘कैसा इंतजाम किया है आज?’’ दारोगाजी बोले.

‘‘साहबजी, आज मेरे हाथ बहुत अच्छा माल लगा है. माल का मतलब छोकरी से है साहबजी, छोकरी क्या है, बस ये समझ लीजिए एकदम पटाखा है, पटाखा. आप उसे देखोगे, तो बस देखते ही रह जाओगे. मुझे तो वह छोकरी बिगड़ी हुई अमीरजादी लगती है,’’ सिपाही टीकाचंद ने कहा.

उस की बात सुन कर दारोगाजी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

‘‘टीकाचंद, तुम्हारे हाथ वह कहां से लग गई?’’ दारोगाजी अपनी मूंछों पर ताव देते हुए बोले.

दारोगाजी के पूछने पर सिपाही टीकाचंद ने बताया, ‘‘साहबजी, आज मैं दुर्गा चौक से गुजर रहा था. वहां मैं ने एक लड़की को अकेले खड़े देखा, तो मुझे उस पर कुछ शक हुआ.

‘‘जिस बस स्टैंड पर वह खड़ी थी, वहां कोई भला आदमी खड़ा होना भी पसंद नहीं करता है. वह पूरा इलाका चोरबदमाशों से भरा हुआ है.

‘‘उस को देख कर मैं फौरन समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है. उस के आसपास 2-4 लफंगे किस्म के गुंडे भी मंडरा रहे थे.

‘‘मैं ने सोचा कि क्यों न आज आप को खुश करने के लिए उस को थाने ले चलूं. ऐसा सोच कर मैं फौरन उस के पास जा पहुंचा.

‘‘मुझे देख कर वहां मौजूद आवारा लड़के फौरन वहां से भाग लिए. मैं ने उस लड़की का गौर से मुआयना किया.

‘‘फिर मैं ने पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘कौन हो तुम? और यहां अकेली खड़ी क्या कर रही हो?’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह मुझे घूरते हुए बोली, ‘यहां अकेले खड़ा होना क्या जुर्म है?’

‘‘उस का यह जवाब सुन कर मैं समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है और आसानी से कब्जे में आने वाली नहीं.

‘‘मैं ने नाम पूछा, तो वह कहने लगी, ‘मेरे नाम वारंट है क्या?’

‘‘वह बड़ी निडर छोकरी है साहब. मैं जो भी बात कहता, उसे फौरन काट देती थी.

‘‘मैं ने उसे अपने जाल में फंसाना चाहा, लेकिन वह फंसने को तैयार ही नहीं थी.

‘‘आसानी से बात न बनते देख उस पर मैं ने अपना पुलिसिया रोब झाड़ना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से उस पर मेरे रोब का असर हुआ. मैं ने उस पर

2-4 उलटेसीधे आरोप लगा दिए और थाने चलने को कहा, लेकिन थाने चलने को वह तैयार ही नहीं हुई.

‘‘मैं ने कहा, ‘थाने तो तुम्हें जरूर चलना पड़ेगा. वहां तुम से पूछताछ की जाएगी. हो सकता है कि तुम अपने दोस्त के साथ घर से भाग कर यहां आई हो.’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह बौखला गई और मुझे धमकी देते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे थाने ले जा कर तुम बहुत पछताओगे, मेरी पहुंच ऊपर तक है.’

‘‘छोकरी की इस धमकी का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. ऐसी धमकी सुनने की हमें आदत सी पड़ गई है...

‘‘पता नहीं, आजकल जनता पुलिस को क्या समझती है? हर कोई पुलिस को अपनी ऊंची पहुंच की धमकी दे देता है, जबकि असल में उस की पहुंच एक चपरासी तक भी नहीं होती.

‘‘मैं धमकियों की परवाह किए बिना उसे थाने ले आया और यह कह कर लौकअप में बंद कर दिया कि थोड़ी देर में दारोगाजी आएंगे. पूछताछ के बाद तुम्हें छोड़ दिया जाएगा.

‘‘जाइए, उस से पूछताछ कीजिए, बेचारी बहुत देर से आप का इंतजार कर रही है,’’ सिपाही टीकाचंद ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा.

दारोगाजी के होंठों पर मुसकान तैर गई. उन की मुसकराहट में खोट भरा था. उन्होंने टीकाचंद को इशारा किया, तो वह तुरंत अलमारी से विदेशी शराब की बोतल निकाल लाया और पैग बना कर दारोगाजी को दे दिया.

दारोगाजी ने कई पैग अपने हलक से नीचे उतार दिए. ज्यादा शराब पीने से उन का चेहरा खूंख्वार हो गया था. उन की आंखें अंगारे की तरह लाल हो गईं.

वह लुंगीबनियान पहन लड़खड़ाते कदमों से लौकअप में चले गए. सिपाही टीकाचंद ने फुरती से दरवाजा बंद कर दिया और वह बैठ कर बोतल में बची हुई शराब खुद पीने लगा.

दारोगाजी को कमरे में घुसे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि उन के चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं.

सिपाही टीकाचंद ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला, तो दारोगाजी उस के ऊपर गिर पड़े. उन का हुलिया बिगड़ा हुआ था.

थोड़ी देर पहले तक सहीसलामत दारोगाजी से अब अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. उन का सारा मुंह सूजा हुआ था. इस से पहले कि सिपाही टीकाचंद कुछ समझ पाता, उस के सामने वही लड़की आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘देख ली अपने दारोगाजी की हालत?’’

‘‘शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को. सरकार तुम्हें यह वरदी जनता की हिफाजत करने के लिए देती है, लेकिन तुम लोग इस वरदी का नाजायज फायदा उठाते हो,’’ लड़की चिल्लाते हुए बोली.

लड़की एक पल के लिए रुकी और सिपाही टीकाचंद को घूरते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बदतमीजी का मजा मैं तुम्हें वहीं चखा सकती थी, लेकिन उस समय तुम ने वरदी पहन रखी थी और मैं तुम पर हाथ उठा कर वरदी का अपमान नहीं करना चाहती थी, क्योंकि यह वरदी हमारे देश की शान है और हमें इस का अपमान करने का कोई हक नहीं. पता नहीं, क्यों सरकार तुम जैसों को यह वरदी पहना देती है?’’

लड़की की इस बात से सिपाही टीकाचंद कांप उठा.

‘‘जातेजाते मैं तुम्हें अपनी पहुंच के बारे में बता दूं, मैं यहां के विधायक की बेटी हूं,’’ कह कर लड़की तुरंत थाने से बाहर निकल गई.

सिपाही टीकाचंद आंखें फाड़े खड़ा लड़की को जाते हुए देखता रहा.

दारोगाजी जमीन पर बैठे दर्द से कराह रहे थे. उन्होंने लड़की को परखने में भूल की थी, क्योंकि वह जूडोकराटे में माहिर थी. उस ने दारोगाजी की जो धुनाई की थी, वह सबक दारोगाजी के लिए अनोखा था.    

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