कहानी - ताईजी
‘‘मां, मेरा टेपरिकौर्डर दे दो न, कब से मांग रहा हूं, देती ही नहीं हो,’’ विक्की ने मचलते हुए कहा.
‘‘मैं ने कह दिया न, टेपरिकौर्डर तुझे हरगिज नहीं दूंगी, बारबार मेरी जान मत खा,’’ रिचा ने लगभग चीखते हुए कहा.
‘‘कैसे नहीं दोगी, वह मेरा है. मैं ले कर ही रहूंगा.’’
‘‘बड़ा आया लेने वाला. देखूंगी, कैसे लेता है,’’ रिचा फिर चिल्लाई.
रिचा का चीखना सुन कर विक्की अपने हाथपैर पटकते हुए जोरजोर से रोने लगा, ‘‘देखो ताईजी, मां मेरा टेपरिकौर्डर नहीं दे रही हैं. आप कुछ बोलो न?’’ वह अनुनयभरे स्वर में बोला.
‘‘रिचा, क्या बात है, क्यों बच्चे को रुला रही हो, टेपरिकौर्डर देती क्यों नहीं?’’
‘‘दीदी, आप बीच में न बोलिए. यह बेहद बिगड़ गया है. जिस चीज की इसे धुन लग जाती है उसे ले कर ही छोड़ता है. देखिए तो, कैसे बात कर रहा है. तमीज तो इसे छू नहीं गई.’’
‘‘पर रिचा, तुम ने बच्चे से वादा किया था तो उसे पूरा करो,’’ जेठानी ने दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘मत रो बच्चे, मैं तुझे टेपरिकौर्डर दिला दूंगी. चुप हो जा अब.’’
‘‘दीदी, अब तो मैं इसे बिलकुल भी देने वाली नहीं हूं. कैसे बदतमीजी से पेश आ रहा है. सच कह रही हूं, आप बीच में न पडि़ए,’’ रिचा बोली.
रिचा की बात सुन कर विभा तत्काल कमरे से बाहर चली गई. विक्की उसी प्रकार रोता, चीखता रहा. दोपहर के खाने से निबट कर देवरानी, जेठानी शयनकक्ष में जा कर लेट गईं. बातोंबातों में विक्की का जिक्र आया तो रिचा कहने लगी, ‘‘दीदी, मैं तो इस लड़के से परेशान हो गई हूं. न किसी का कहना मानता है, न पढ़ता है, हर समय तंग करता रहता है.’’
‘‘कैसी बातें करती हो, रिचा. तुम्हारा एक ही बेटा है, वह भी इतना प्यारा, इतना सुदर्शन, इतना कुशाग्र बुद्धि वाला, तिस पर भी तुम खुश नहीं हो. अब उसे तुम कैसा बनाती हो, कैसे संस्कार प्रदान करती हो, यह तो तुम्हारे ही हाथ में है,’’ विभा ने समझाया.
‘‘क्या मेरे हाथ में है? क्या यहां मैं अकेली ही बसती हूं?’’ रिचा तैश में आ गई, ‘‘मैं जो उसे समझाती हूं, दूसरे उस की काट करते हैं. ऐसे में बच्चा भी उलझ जाता है, क्या करे, क्या न करे. अभी परसों की ही बात है, इन के बौस के बच्चे आए थे. ये उन के लिए रसगुल्ले व नमकीन वगैरा ले कर आए थे. सब को मैं ने प्लेटें लगा कर 2-2 रसगुल्ले व नमकीन और बिस्कुट रख कर दिए. इसे भी उसी तरह प्लेट लगा कर दे दी. मैं रसोईघर में उन के लिए मैंगोशेक बना रही थी कि यह आ कर कहने लगा, ‘मां, मैं रसगुल्ले और खाऊंगा.’
‘‘मैं ने कहा, ‘खा लेना, पर उन के जाने के बाद. अब इतने रसगुल्ले नहीं बचे हैं कि सब को 1-1 और मिल सकें.’ तब विक्की तो मान सा रहा था पर मांजी तुरंत मेरी बात काटते हुए बोलीं, ‘अरी, क्या है? एक ही तो बच्चा है, खाने दो न इसे.’
‘‘अब बोलिए दीदी. यह कोई बात हुई? जब मैं बच्चे को समझा रही हूं सभ्यता की बात, तो वे उसे गलत काम करने के लिए शह दे रही हैं. मैं भी मना तो नहीं कर रही थी न, बस यही तो कह रही थी कि अतिथियों के जाने के बाद और रसगुल्ले खा लेना. बस, इसी तरह कोई न कोई बात हो जाती है. जब मैं इसे ले कर पढ़ाने बैठती हूं, तब भी वे टोकती रहती हैं. बस, दादी की तरफ देखता हुआ वह झट से उठ कर भाग लेता है. लीजिए हो गई पढ़ाई. अब तो पढ़ाई से इतना कतराने लगा है कि क्या बताऊं, किसी समय भी पढ़ना नहीं चाहता.’’
‘‘स्कूल की परीक्षाओं में कैसे नंबर ला रहा है? वहां की प्रोग्रैस रिपोर्ट कैसी है?’’ विभा ने पूछा.
‘‘अरे, बस पूछो मत कि क्या हाल है. अब तो झूठ भी इतना बोलने लगा है कि क्या बताऊं.’’
‘‘जैसे?’’ विभा ने हैरानी दर्शाई.
‘‘पिछली बार कई दिनों तक पूछती रही, ‘बेटे, तुम्हारे यूनिट टैस्ट की कौपियां मिल गई होंगी, दिखाओ तो सही.’ तब बोला, ‘अभी कौपियां नहीं मिली हैं. जब मिलेंगी तो मैं खुद ही आप को दिखा दूंगा.’ जब 15 दिन इसी प्रकार बीत गए तो हार कर एक दिन मैं इस की कक्षा के एक लड़के संजय के घर पहुंची तो पता चला कि कौपियां तो कब की मिल चुकी थीं.
‘‘‘क्यों, विकास ने अपनी कौपियां दिखाई नहीं क्या?’ संजय ने हैरानी से पूछा.
‘‘‘नहीं तो, वह तो कह रहा था कि मैडम ने अभी कौपियां दी ही नहीं हैं,’ मैं ने उसे बताया तो वह जोरजोर से हंसने लगा, ‘विक्की तो इस बार कई विषयों में फेल हो गया है, इसी कारण उस ने आप को कौपियां नहीं दिखाई होंगी.’
‘‘मुझे बहुत क्रोध आया, खुद को अपमानित भी महसूस किया. उस की मां के चेहरे पर व्यंग्यात्मक हंसी देख कर मैं फौरन घर आ गई. ‘‘जब इसे खूब पीटा, तब जा कर इस ने स्वीकार किया कि झूठ बोल रहा था. अब बताइए, मैं क्या कर सकती हूं? यही नहीं, रिपोर्टकार्ड तक इस ने छिपा कर रख दिया था. कई हफ्तों के बाद वाश्ंिग मशीन के नीचे पड़ा मिला. अरे, क्याक्या खुराफातें हैं इस की, आप को क्याक्या बताऊं, यह तो अपनी मासिक रिपोर्टबुक पर अपने पिता के नकली हस्ताक्षर कर के लौटा आता है. अब बोलिए, क्या करेंगी आप ऐसे लड़के के साथ?’’ रिचा गुस्से में बोलती जा रही थी.
‘‘पिछले वर्ष तक तो इस के काफी अच्छे नंबर आ रहे थे, अब अचानक क्या हो गया?’’ विभा ने पूछा.
‘‘इस के पिता तो इस से कभी पढ़ने को कहते नहीं हैं, न ही कभी खुद पढ़ाने के लिए ले कर बैठते हैं. केवल मैं ही कहती हूं तो इसे अब फूटी आंखों नहीं सुहाती. क्या मां हो कर भी इस का भविष्य बिगाड़ दूं, बताओ, दीदी?’’
‘‘पर रिचा, बच्चों को केवल प्यार से ही वश में किया जा सकता है, मार या डांट से नहीं. तुम जितना अधिक उसे मारोगी, डांटोगी, वह उतना ही तुम से दूर होता जाएगा. पढ़ाई से भी इसीलिए दिल चुराता है, तुम पढ़ाती कम हो और डांटती अधिक हो. कल तुम कह रही थीं, ‘अरे, यह तो निकम्मा लड़का है, यह जीवन में कुछ नहीं कर सकता. यह तो जूते पौलिश करेगा सड़क पर बैठ कर...’ ‘‘कहीं ऐसे शब्द भी कहे जाते हैं? तुम ने तो साधारण तौर पर कह दिया, पर बच्चे का कोमल हृदय तो टूट गया न, बोलो?’’ विभा ने कहा.
‘‘ताईजी, ताईजी, शतरंज खेलेंगी मेरे साथ?’’ अचानक विक्की ने विभा का हाथ पकड़ते हुए पूछा. संभवतया वह इस लज्जाजनक प्रसंग को अब बंद करवाना चाहता था.
‘‘बेटा, मुझे तो शतरंज खेलना नहीं... तुम अपने ताऊजी के साथ खेलते तो हो न?’’
‘‘पर अभी तो वे कहीं गए हैं, आप खेलो न.’’
‘‘पर जब आता ही नहीं तो कैसे खेलूंगी?’’
‘‘अच्छा, तो ताश खेलते हैं.’’
‘‘ले आओ, कुछ देर खेल लेती हूं,’’ विभा ने हंसते हुए विक्की को गुदगुदाया तो वह दौड़ कर ताश की गड्डी ले आया.
‘‘कौन सा खेल खेलोगे, विक्की?’’ विभा ने पूछा.
‘‘रमी खेलें, ताईजी?’’
‘‘ठीक है, पर बांटोगे हर बार तुम ही, मैं नहीं बाटूंगी, मंजूर?’’ विभा ने शर्त रखी. उस की तबीयत ठीक नहीं थी, वह लेटेलेटे ही खेलना चाहती थी.
‘‘मंजूर, आप तकिए के सहारे लेट जाइए,’’ विक्की ने पत्ते बांटे. ताईजी के साथ खेलने में उसे इतना अधिक आनंद आ रहा था कि बस पूछो मत.
‘‘ताश के अलावा तुम और कौनकौन से खेल खेलते हो?’’ विभा ने पूछा.
‘‘बहुत सारे खेल हैं, ताईजी,’’
विक्की खुश होता हुआ बोला, ‘‘लूडो, सांपसीढ़ी, शतरंज, ट्रबल, व्यापार, स्क्रैबल, स्कौटलैंड यार्ड, मकैनो, कार रेस...’’
‘‘अरे, बसबस, इतने सारे खेल हैं तुम्हारे पास? बाप रे, किस के साथ खेलते हो?’’
‘‘किसी के भी नहीं.’’
‘‘अरे, यह क्या बात हुई, फिर खरीदे क्यों हैं?’’
‘‘कुछ मौसी लाई थीं, कुछ बड़ी ताईजी लाई थीं, कुछ जन्मदिन पर आए तो कुछ पिताजी दौरे पर गए थे, तब ले कर आए थे. ताईजी, पड़ोस के रवींद्र के घर खेलने जाता हूं तो मां कहती हैं कि अपने इतने महंगे खेल वहां मत ले जाया करो. जब उन्हें मैं अपने घर पर खेलने के लिए बुलाता हूं तो मां कहती हैं कि कितना हल्ला मचा रखा है, बंद करो खेलवेल, हर समय खेल ही खेल, कभी पढ़ भी लिया करो.’’
‘‘और घर में कौनकौन खेलता है तुम्हारे साथ? मातापिता खेलते हैं कभी?’’ विभा ने पूछा तो वह कुछ देर तक चुपचाप बैठा रहा, फिर ताश बंद कर के उठ कर चला गया.
‘बच्चे को मेरे प्रश्न से कितना आघात लगा है,’ सोच कर विभा अनमनी सी हो आई. बच्चे का कोमल हृदय दुखाने के लिए उस ने यह सब नहीं पूछा था, वह तो केवल यही जानना चाहती थी कि बच्चे की मानसिक दशा कैसी है? क्यों वह इस प्रकार का अभद्र व्यवहार अपनी मां के साथ करता है? विभा वहां अपने पति के साथ 8-10 दिन के लिए आई हुई थी. रिचा उस की सब से छोटी देवरानी थी. आयु में भी वह विभा से काफी छोटी थी. इस कारण विभा उस पर अपना अधिकार जमा लेती थी. विभा बहुत समझदार थी और पूरे परिवार में उस का बड़ा मान था. रिचा भी उस से परामर्श लेने हेतु उसे अपने मन की सब बातें बता दिया करती थी. दोनों भाइयों में भी बहुत स्नेहभाव था.
विक्की रिचा के विवाह के कई वर्षों के बाद हुआ था. इस से पूर्व उस के 2 बेटे जन्मते ही जाते रहे थे. सो, विक्की से परिवार के सब ही लोगों का असीम स्नेह था. रिचा हर समय अपने इकलौते बेटे के भविष्य के लिए चिंतित रहती थी. संयुक्त परिवार होने के कारण वह अपने मनोनुकूल अधिक कर नहीं पाती थी. पिछले 2-3 वर्षों से विक्की बिगड़ने लगा था, बड़ों के अत्यधिक लाड़प्यार ने उसे जिद्दी और चटोरा तो बनाया ही था, साथ ही अपनी बात मनवाने के लिए वह झूठ भी बोलने लगा था.
ऐसे में रिचा का दुख क्रोध के रूप में बाहर निकलता था. पति तो बच्चे की शिक्षा पर तनिक भी ध्यान केंद्रित नहीं करते थे, अधिक से अधिक ट्यूटर लगा दिया. पुत्र को अपने पिता द्वारा जिस व्यवहार, शिष्टाचार, शिक्षा, मार्गदर्शन, स्नेह और दुलार की अपेक्षा होती है, विक्की उस से पूर्णतया वंचित रहा था. हां, बच्चे के प्रति उन के लाड़प्यार में कोई कमी नहीं थी, उस की मुंहमांगी वस्तु उसे तत्क्षण प्राप्त हो जाती थी. इस कारण वह और भी अधिक ढीठ और आलसी होता जा रहा था. घर के किसी भी कार्य की आशा उस से नहीं की जा सकती थी, हर समय उस के पीछे होहल्ला मचा ही रहता. एक दिन विभा के काफी समझाने पर रिचा ने बेटे को वह टेपरिकौर्डर दे दिया. तब वह दौड़ता हुआ विभा के पास आया और उन के दोनों गालों की पप्पी लेते हुए बोला, ‘‘धन्यवाद, ताईजी. देखिए, मां ने मुझे टेपरिकौर्डर दे दिया है. सुनेंगी?’’
इतना कह कर विक्की ने टेपरिकौर्डर चला दिया. टेप में से उस की सुमधुर आवाजें सुनाई देने लगीं.
‘‘अरे विक्की, यह तो तुम्हारी आवाज है? तो तुम्हें गाना भी आता है?’’ विभा ने प्रसन्न होते हुए अचरज से पूछा.
‘‘देख लीजिए ताईजी,’’ विक्की मटकते हुए बोला. उस की सुंदर आंखों में उस समय विचित्र चमक भर उठी थी. विभा ने टेपरिकौर्डर को हाथ में ले कर देखा, नन्हा सा लाल रंग का वह जापानी रिकौर्डर बहुत ही प्यारा था. तब विभा को समझ में आया कि बच्चा उसे अपना गायन सुना कर प्रभावित करने के लिए ही टेपरिकौर्डर लेने की जिद कर रहा था. पर रिचा ने मां हो कर भी इस तथ्य को नहीं समझा. वह सोचने लगी, ‘आखिर इतना छोटा भी तो अब विक्की नहीं है, 11 वर्ष का हो चला है.’
पिछली रात जब वे दोनों बातें करने बैठी थीं तो विक्की के उन के पास आ कर चिपट कर बैठने पर रिचा ने उसे वहां से भगाने की चेष्टा की थी. पर वह वहां से जाना नहीं चाहता था. तब रिचा फूट पड़ी थी, ‘‘देखा दीदी, यह तो मेरी जान का दुश्मन बना हुआ है, कभी किसी से दो बातें नहीं कर सकती. देखिए, कैसे मुंह से मुंह जोड़ कर बैठा हुआ है. यहां सब बातें सुनेगा और वहां जा कर मांजी व अपने पिता से एक की दस लगाएगा. हर बात में अपनी टांग अड़ाएगा. मेरी छोटी बहन आई थी, तब भी इस ने बातें नहीं करने दीं. पीहर भी जाती हूं तो मां, बहनों, भाभी व सहेलियों से जरा भी बात नहीं करने देता. सच कहती हूं, बड़ी परेशान हो गई हूं, अब तो इस के मारे कहीं जाने का मन भी नहीं करता.’’
‘‘ठीक है, ठीक है. मैं आप के पास रहना ही कब चाहता हूं. मैं तो अब बड़े ताऊजी के पास बरेली जा रहा हूं. पिताजी ने उन से बात कर ली है,’’ विक्की बेफिक्री से बोला.
‘‘अरे, यह बरेली जाने की क्या बात है?’’ विभा ने पूछा.
‘‘दीदी, यह इतना बिगड़ता जा रहा है, इसी कारण हम लोग इसे बड़े भैया के पास भेजने की सोच रहे हैं.’’
‘‘वहां कोई अच्छा स्कूल है क्या?’’
‘‘न सही, पर उन का अनुशासन तो रहेगा ही. हमारी तो सुनता नहीं है, उन की तो सुनेगा. अब तो 7वीं कक्षा में आ गया है.’’
‘‘मतलब, अपनी बला औरों के सिर डालने से है? जब तुम सारा दिन बच्चे के सामने यही राग अलापती रहोगी कि हमारी तो सुनता नहीं, हमारी तो सुनता नहीं है, तो वह क्यों सुनेगा तुम्हारी?’’ विभा कुछ नाराजगी के साथ बोली.
‘‘दीदी, आप तो हर बात का दोष मुझे ही दे देती हो, बस.’’
‘‘रिचा, समझने की कोशिश तो करो. बच्चे प्यार के भूखे होते हैं. यों थोड़ीबहुत सख्ती कर लो, पर हर समय उसे सुनाते रहना, ताने देना, व्यंग्य कसना, बातबात पर डांटना, मारना, हर एक से उस की बुराई करना, किसी मां को शोभा नहीं देता. दूसरे के पास भेज तो दोगी, पर वे भी इस के साथ क्या सख्ती बरत सकेंगे? और यदि सिखाने के लिए सख्ती करेंगे तो कल को तुम्हें ही नागवार गुजरेगा. इस से तो अच्छा है कि किसी अच्छे होस्टल में इसे डाल दो.’’ ‘‘पहली बात तो यह है कि इसे इतने कम नंबरों पर किसी अच्छे स्कूल में दाखिला मिलेगा ही नहीं, फिर अच्छे महंगे स्कूलों के होस्टलों में ‘ड्रग्स’ का कितना चलन हो गया है आजकल, यह तो कुछ भी कर सकता है. दीदी, आप को पता नहीं है, इसे तो केवल मैं ही समझ सकती हूं. अभी से अपने पास पर्स रखता है, वह भी रुपयों से भरा होना चाहिए, नहीं तो रोनाधोना मचा देता है. इस से बाजार से सब्जी मंगवाती हूं तो बाकी के रुपए वापस नहीं करता. एक मुसीबत है क्या इस लड़के के साथ... अब मैं इस से लिख कर हिसाब मांगती हूं,’’ रिचा सिसकती हुई बोली.
विभा को सुबहशाम घूमने की आदत थी. वहां की सड़कों के विषय में अधिक जानकारी न होने के कारण उस ने पहले दिन अपने साथ विक्की को ले लिया था. उस के बाद उस के वहां रहने तक एक दिन भी उसे विक्की को साथ चलने के लिए कहना नहीं पड़ा था. वह स्वयं ही उन के साथ दौड़ा चला आता. विक्की को बिना बताए भी वह घर से निकल पड़ती, तो भी वह जाने कहां से सूंघ लेता और झटपट साथ हो लेता. तब विभा को बराबर लगता रहता था कि विक्की केवल प्यार का भूखा है. यदि उस के साथ प्यार व समझदारी से व्यवहार किया जाए तो वह हर बात मानने व करने को तैयार रहेगा. विभा एवं ताऊजी की तो वह हर बात बड़े ही ध्यान से सुनता था, केवल सुनता ही नहीं, बल्कि उस पर अमल भी करता. जैसे ही कोई काम उसे बताते, वह झटपट कर देता तब क्यों अपनी मां एवं घर के अन्य सदस्यों की बातों की वह इतनी अवहेलना करता है? क्यों सब को इतना छकाता है, इतना परेशान करता है? विभा बारबार सोचती. उधर मांजी कहतीं, ‘‘अरे, क्या बताऊं विभा, रिचा को तो विक्की फूटी आंखों नहीं सुहाता. रातदिन इस के पीछे हाथ धो कर पड़ी रहती है. कभी प्यार से बात नहीं करती. देखो, कब से वह ‘नाइटसूट’ बनवाने को कह रहा है, सारे पजामे फट गए हैं, पर यह है कि कपड़ा घर में ला कर रखा हुआ है, तो भी दरजी को नहीं दे रही, न ही अखिल को बाजार से बनेबनाए सूट लाने देती है. कहती है कि मैं स्वयं सिलूंगी, 6 महीने तो हो गए हैं ऐसे ही कहते...अब तू ही देख कि कितना परेशान हो रहा है बेचारा विक्की, इतनी घोर गरमी में भी पैंट पहन कर सोता है.’’
विभा ने जब रिचा से इस विषय पर बात की तो पहले तो वह सकपका गई, फिर बोली, ‘‘रोज ही कोई न कोई समस्या घेरे रहती है, समझ में नहीं आता, कब क्या करूं. पर 6 महीने वाली बात गलत है, मुश्किल से महीनाभर पहले ही तो कपड़ा आया है.’’
‘‘तुम अपने कार्यों को व्यवस्थित कर के किया करो. गृहिणी दफ्तर नहीं जाती, किंतु उस का कार्यक्षेत्र तो सब से अधिक विस्तृत होता है. इस में कहीं अधिक योजना की आवश्यकता होती है, ताकि हर कार्य समय से कुछ पूर्व ही हो जाए और घर के सदस्यों को किसी प्रकार की परेशानी या तनाव गृहिणी के प्रति न रहे.’’विभा ने यह भी देखा था कि हर रोज सुबह नहाने के बाद अलमारी में से कपड़े निकालते समय भी मां और बेटे में अकसर तकरार होती है. उस ने रिचा से इस समस्या को सुलझाने की भी हिदायत दी.एक दिन दोपहर को जब विक्की खेलने की जिद करने लगा तो विभा ने उसे 2 घंटे का गणित का पेपर सैट कर के दे दिया. जब 2 घंटे बाद उस ने विक्की की कौपी जांची तो यह देख कर बहुत प्रसन्न हुई कि विक्की ने 50 में से 50 अंक प्राप्त किए हैं. वह बोली, ‘‘बहुत बढि़या, शाबाश विक्की, पढ़ाई में तो तुम अच्छे हो, तो परीक्षा में इतने कम नंबर क्यों आए?’’
विक्की हंसता हुआ ताईजी से लिपट गया और उन की पप्पी लेता हुआ बोला, ‘‘मुझे अपने साथ ले चलिए, प्लीज ताईजी.’’ विभा उस की मानसिकता देख कर सोच में पड़ गई थी, ‘यह बच्चा अपने मातापिता से दूर क्यों जाना चाहता है? और अपने साथ ले जाना ही क्या इस समस्या का सही निदान है?’
दिन के 12 बजे का समय था. विक्की रिचा के पास जा कर चिल्लाया, ‘‘बड़ी जोर की भूख लगी है. खाना कब दोगी?’’
‘‘क्या खाएगा? मुझे खा ले तू तो, सारा दिन बस ‘भूखभूख’ चिल्लाता रहता है. अभी सुबह तो पेट भर कर नाश्ता किया है, कुछ देर पहले ही फ्रिज में से मिठाई के 3 टुकड़े निकाल कर खा चुका है. मैं सब देख रही थी बच्चू, अब फिर भूखभूख. मुझे भी तो नहानाधोना होता है. चल जा कर पढ़ कुछ देर,’’ रिचा विक्की पर झल्ला पड़ी.
‘‘हमेशा डांटती रहती हो, अब भूख लगी है तो क्या करूं? पैसे दे दो, बाजार से समोसे खा कर आऊंगा.’’
‘‘यह कह न, कि समोसे खाने का मन है,’’ रिचा चिल्लाई, ‘‘देखिए न दीदी, कितना चटोरा हो गया है. पिछली बार जब मां के पास गई थी तो वहां पर छोटी बहन अपने घर से समोसे बना कर लाती थी. यह अकेला ही खाली कर देता था. देखो न, कितना मोटा होता जा रहा है, खाखा कर सांड हो रहा है.’’
‘‘रिचा, अपनी जबान पर लगाम दो. बच्चे के लिए कैसेकैसे शब्द मुंह से निकालती हो. यह यही सब सीखेगा. जो सुनेगा, वही बोलेगा. जो देखेगा, वही करेगा. पढ़ाई की जो बात तुम ने इस से कही है, वह सजा के रूप में कही है. इसे स्वयं ले कर बैठो, रोचक ढंग से पढ़ाई करवाओ. कैसे नहीं पढ़ेगा? दिमाग तो इस का अच्छा है,’’ विभा दबे स्वर में बोली ताकि विक्की उस की बात सुन न सके. पर इतनी देर में विक्की अपने लिए मिक्सी में मीठी लस्सी बना चुका था. वह खुशी से बोला, ‘‘ताईजी, लस्सी पिएंगी?’’ वह गिलास हाथ में लिए खड़ा था.
‘‘नहीं बेटे, मुझे नहीं पीनी है, तुम पी लो.’’
‘‘ले लीजिए न, मैं अपने लिए और बना लूंगा, दही बहुत सारा है अभी.’’
‘‘नहीं विक्की, मेरा मन नहीं है,’’ विभा ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
‘‘दीदी, मेरी बहनों के बच्चों के साथ रह कर इसे भी बाजार के छोलेभटूरे, आलू की टिकिया, चाट, समोसे वगैरा खाने की आदत पड़ गई है. उन के बच्चे हर समय ही वीडियो गेम खेलते हैं, अनापशनाप खर्च करते हैं, पर हम तो इतना खर्च नहीं कर सकते. इतना समझाती हूं, पर यह माने तब न. इसी कारण तो अब मैं दिल्ली जाना ही नहीं चाहती.’’ ‘‘बस, शांत हो जाओ. विक्की को चैन से लस्सी पीने दो. उसे समझाने का तुम्हारा तरीका ही गलत है,’’ विभा चिढ़ कर बोली.
‘‘अब आप भी मेरे ही पीछे लग गईं?’’ रिचा फूटफूट कर रोने लगी, ‘‘मेरा बच्चा ही जब मेरा नहीं रहा तो मैं औरों से क्या आशा करूं?’’ विभा ने सोचा, ‘इसी प्रकार तो नासमझ माताएं अपने बच्चों से हाथ धो बैठती हैं. बच्चों का मनोविज्ञान, उन की इच्छाअनिच्छा, उन के आत्मसम्मान व स्वाभिमान के विषय में तो कुछ समझती ही नहीं हैं. बस, अपनी ही हांकती रहती हैं. सोचती यही हैं कि उन के बच्चे को घर के और लोग ही बिगाड़ रहे हैं, जबकि इस कार्य में उन का स्वयं का हाथ भी कुछ कम नहीं होता.’ ‘‘बढ़ता बच्चा है, छुट्टियों के दिनों में कुछ तो खाने का मन करता ही है. कुछ नाश्ते का सामान, जैसे लड्डू, मठरी, चिड़वा वगैरा बना कर रख लो,’’ विभा ने अगले दिन कहा.
‘‘तो क्या मैं उसे खाने को नहीं देती? जब कहता है, तुरंत ताजी चीज बना कर खिलाती हूं.’’
‘‘वह तो ठीक है रिचा, पर हर समय तो गृहिणी का हाथ खाली नहीं होता न, फिर बनाने में भी कुछ देर तो लग ही जाती है. नाश्ता घर में बना रखा हो तो वह स्वयं ही निकाल कर ले सकता है. मैं आज मठरियां बनाए देती हूं.’’
‘‘अभी गैस खाली है नहीं, खाना भी तो बनाना है,’’ रिचा ने बेरुखी से कहा.
‘‘ठीक है, जब कहोगी तभी बना दूंगी,’’ विभा रसोई से खिसक ली. व्यर्थ की बहसबाजी में पड़ना उस ने उचित न समझा. वैसे भी अगले दिन तो उसे अपने घर जाना ही था. कौन कब तक किसी की समस्याओं से जूझ सकता है? पर जब कोई व्यक्ति हठधर्मी पर ही उतर आए और अपनी ही बात पर अड़ा रहे तो उस का क्या किया जा सकता है?
‘बच्चे तो ताजी मिट्टी के बने खिलौने होते हैं, उन पर जैसे नाकनक्शे एक बार बना दो, हमेशा के लिए अंकित हो जाते हैं. संस्कार डालने का कार्य तो केवल मां ही करती है. चंचल प्रकृति के बच्चों को कैसे वश में रखा जा सकता है, यह भी केवल मां ही अधिक समझ सकती है,’ विभा ने सोचा. ‘‘ताईजी, मुझे पत्र लिखोगी न?’’ विक्की ने प्यार से विभा के गले में बांहें डालते हुए पूछा.
‘‘हां, अवश्य,’’ विभा हंस पड़ी.
‘‘वादा?’’ प्रश्नवाचक निगाहों से विक्की ने उन की ओर देखा.
‘‘वादा. पर तुम अब खूब मन लगा कर पढ़ोगे, पहले यह वादा करो.’’
‘‘वादा, ताईजी, आप बहुत अच्छी हैं. अब मैं मन लगा कर पढ़ूंगा.’’
‘‘खूब मन लगा कर पढ़ना, अच्छे नंबर लाना, मां का कहना मानना और अगली छुट्टियों में हमारे घर जरूर आना.’’
‘‘ठीक,’’ विक्की ने आगे बढ़ कर ताईजी की पप्पी ली. आने वाले निकट भविष्य के सुखद, सुनहरे सपनों की दृढ़ता व आत्मविश्वास उस के नेत्रों में झलकने लगा था. ‘‘मेरे बच्चे, खूब खुश रहो,’’ विभा ने विक्की को गले से लगा लिया. तभी रेलगाड़ी ने सीटी दी. विक्की के पिताजी ने उसे ट्रेन से नीचे उतर आने के लिए आवाज दी.
‘‘ताईजी, आप मत जाइए, प्लीज,’’ विक्की रो पड़ा.
‘‘बाय विक्की,’’ विभा ने हाथ हिलाते हुए कहा. गाड़ी स्टेशन से खिसकने लगी थी. विक्की प्लेटफौर्म पर खड़ा दोनों हाथ ऊपर कर हिला रहा था, ‘‘बाय, ताईजी, बाय.’’ उस की आंखों से आंसू बह रहे थे.
‘‘विक्की, अपना वादा याद रखना,’’ ताईजी ने जोर से कहा.
‘‘वादा ताईजी,’’ उस ने प्रत्युत्तर दिया. गाड़ी की गति तेज हो गई थी. विभा अपने रूमाल से आंसुओं को पोंछने लगी.
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