कहानी - पराया कांच
‘‘कल देर से आऊंगा, विभा. 3 साल पहले चंडीगढ़ से अवस्थीजी आए थे, वे वापस जा रहे हैं ब्रांच मैनेजर बन कर. उन का विदाई समारोह है,’’ विपिन ने सोने से पहले बताया.
‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है. बहुत खुश होंगे अवस्थीजी.’’
‘‘हां, खुश भी और परेशान भी.’’ विभा ने भवें चढ़ाईं, ‘‘परेशान क्यों?’’
‘‘क्योंकि उन की बिटिया नन्ही का यह एमबीए का अंतिम वर्ष है. कैंपस सिलैक्शन में उस का चयन भी यहीं विजन इंफोटैक में हो चुका है. ऐसे में न तो नन्ही की पढ़ाई छुड़ा सकते हैं और न ही उसे यहां अकेले छोड़ कर जा सकते हैं. बीच सत्र के कारण न तो होस्टल में जगह मिल रही है और न ही पेइंग गैस्ट रखने वालों के यहां.’’
‘‘यह तो वाकई परेशानी की बात है. पत्नी को भी तो यहां छोड़ कर नहीं जा सकते क्योंकि अवस्थीजी का परहेजी खाना तो वही बना सकती हैं, दांतों की तकलीफ की वजह से कुछ ज्यादा खा ही नहीं सकते. यहां किसी से ज्यादा मिलनाजुलना भी तो नहीं बढ़ाया उन लोगों ने...’’
‘‘सिवा कभीकभार हमारे यहां आने के,’’ विपिन ने बात काटी, ‘‘हम क्यों न उन की मदद कर दें विभा, नन्ही को अपने पास रख कर? चंद महीनों की तो बात है, नौकरी मिलने पर तो वह कंपनी के ट्रेनीज होस्टल में रहने चली जाएगी. बच्चे तो यहां हैं नहीं, सो दोनों के कमरे भी खाली हैं, घर में रौनक भी हो जाएगी.’’
‘‘वह सब तो ठीक है लेकिन जवान लड़की की हिफाजत कांच की तरह करनी होती है. जरा सी लापरवाही से पराया कांच तड़क गया तो खरोंचें तो हमें ही लगेंगी न? न बाबा न, मैं बेकार में लहूलुहान नहीं होने वाली,’’ विभा ने सपाट स्वर में कहा. विपिन चुप हो गया लेकिन विभा सोचने लगी कि बात तो विपिन ने सही कही थी. निखिल रहता तो उन के साथ ही था मगर फिलहाल किसी ट्रेनिंग पर सालभर के लिए विदेश गया हुआ था. नेहा को ग्रेजुएशन के बाद वह मामामामी के पास दिल्ली घुमाने ले गई थी लेकिन नेहा को दिल्ली इतनी पसंद आई कि उस ने वहीं मार्केटिंग का कोर्स जौइन कर लिया फिर वहीं नौकरी भी करने लगी. पहले तो मामामामी ने उस की बहुत तरफदारी की थी लेकिन कुछ महीने पहले लगा कि वे लोग नेहा के वहां रहने से खुश नहीं हैं, फिर अचानक सब ठीक हो गया और फिलहाल तो नेहा के वापस आने के आसार नहीं थे. ऐसे में नन्ही के आने से सूने घर में रौनक तो जरूर हो जाएगी लेकिन बेकार में जिम्मेदारी की टैंशन बढ़ेगी.
‘‘तुम एक रोज नन्ही की तारीफ कर रही थीं न विभा कि वह सिवा अपनी पढ़ाई के कुछ और सोचती ही नहीं है तो फिर ऐसी बच्ची को कुछ अरसे के लिए अपने यहां आश्रय देने में तुम हिचक क्यों रही हो? उसे इंस्टिट्यूट ले जाने और वहां से लाने का इंतजाम अवस्थी कर देगा, तुम्हें बस उस के रहनेखाने का खयाल रखना है, बाहर वह क्या करती है, यह हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी, यह मैं ने अवस्थी से साफ कह दिया है,’’ विपिन ने अगले रोज फिर बात छेड़ी, ‘‘मुझ से अवस्थी की परेशानी देखी नहीं गई.’’
‘‘अब जब आप ने कह ही दिया है तो मेरे कहने के लिए रह ही क्या गया?’’ विभा हंसी, ‘‘कल नेहा की एक अलमारी खाली कर दूंगी नन्ही के लिए.’’ विपिन को डर था कि नन्ही के आने पर घर का वातावरण असहज हो जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. पहले रोज से ही नन्ही और विभा में अच्छा तालमेल हो गया. मना करने पर भी नन्ही रसोई में हाथ बंटाती थी, कुछ देर उन के साथ टीवी भी देखती थी. छुट्टी के रोज उन के साथ घूमने भी चली जाती थी लेकिन न तो कोई उस से मिलने आता था और न ही वह कहीं जाती थी. उस का मोबाइल जरूर जबतब बजता रहता था लेकिन नन्ही ज्यादा देर बात नहीं करती थी जिस से विभा को चिंता करनी पड़े. सब ठीक ही चल रहा था कि नन्ही की परीक्षा शुरू होने से कुछ रोज पहले अचानक नेहा आ गई.
‘‘मैं ने यहां अपना ट्रांसफर करवा लिया है,’’ नेहा ने उत्साह से बताया. ‘‘दिल भर गया दिल्ली से, अब यहीं रहूंगी आप के साथ. मगर आप खुश होने के बजाय इतनी सकपकाई सी क्यों लग रही हैं, मम्मी?’’
विभा ने धीरे से नन्ही के बारे में बताया. ‘‘उस का सामान निखिल के कमरे में रखवा कर तेरा कमरा खाली करवा देती हूं.’’
‘‘वह अब तक मेरे कमरे में ऐडजस्ट कर चुकी होगी मम्मी, उसे कमरा बदलवा कर डिस्टर्ब मत करो. मैं निखिल के कमरे में रह लूंगी, रात को आ कर सोना ही तो है.’’
‘‘रात को ही क्यों?’’ विभा ने चौंक कर पूछा. ‘‘क्योंकि मैं देर तक और छुट्टी के रोज भी काम करती हूं. अभी भी औफिस जाना है, शाम को कब तक लौटूंगी, कह नहीं सकती,’’ कह कर नेहा चली गई.
विभा को नेहा कुछ बदली सी तो लगी पर उस ने इसे नौकरी से जुड़ी व्यस्तता समझ कर टाल दिया. शाम को नेहा जल्दी ही लौट आई. तब तक नन्ही उस का कमरा खाली कर चुकी थी. ‘‘वह कहने लगी कि मुझे तो कुछ कपड़े और किताबें ही उठानी हैं, दीदी का तो पूरा सामान उन के कमरे में है, सो मैं ही दूसरे कमरे में चली जाती हूं,’’ विभा ने सफाई दी. परिचय के बाद कुछ बात तो करनी ही थी, सो नेहा ने नन्ही से उस की पढ़ाई के बारे में पूछा. यह सुन कर कि उस ने एमकौम तक की पढ़ाई चंडीगढ़ में की थी, नेहा चहकी, ‘‘तब तो तुम जगत सिंह चौधरी को जानती होगी?’’
‘‘ओह, जग्गी सिंह? बड़ी अच्छी तरह जानती हूं.’’
‘‘तुम्हारे क्लासफैलो थे?’’
‘‘हां, क्लासफैलो भी, सीनियर भी और फिर जूनियर भी,’’ नन्ही खिलखिला कर हंसी, ‘‘असल में उस ने बीकौम सेकंड ईयर में 3 साल लगाए थे.’’
‘‘लेकिन फिर फाइनल और मार्केटिंग डिप्लोमा में फर्स्ट क्लास ला कर पूरी कसर निकाल दी.’’
‘‘हां, सुना तो था. आप कैसे जानती हैं जग्गी को?’’ नन्ही ने पूछा.
‘‘जेएस चौधरी हमारी कंपनी में डिप्टी सेल्स मैनेजर हैं, मैनेजमैंट के ब्लू आईड बौय. जिस इलाके में बिक्री कम होती है, चौधरी साहब को भेज दिया जाता है. यहां की ब्रांच तो बंद ही होने वाली थी लेकिन चौधरी साहब की जिद पर उन्हें यहां भेजा गया और वे आज बड़ौदा में नया शोरूम खुलवाने गए हुए हैं,’’ नेहा के स्वर में गर्व था.
‘‘मार्केटिंग में लच्छेदार बातों वाला आदमी चाहिए और बातों की जलेबियां तलने में तो जग्गी लाजवाब है.’’
‘‘तुम इतनी अच्छी तरह कैसे जानती हो उन्हें?’’
‘‘चंडीगढ़ में हमारी और उस की कोठी एक ही सैक्टर में है, दोनों के परिवारों में तो मिलनाजुलना है लेकिन मम्मीपापा को हम भाईबहन का जग्गी से मेलजोल पसंद नहीं था.’’ ‘‘लेकिन अब तो तुम्हें उन से मिलना ही होगा, मेरी खातिर. मैं दिल्ली से आई ही उन के लिए हूं और सच बताऊं तो वे भी मेरे लिए ही यहां आए हैं क्योंकि दिल्ली में मामी को हमारा मिलनाजुलना खटकने लगा था, सो हम ने वहां से हटना ही बेहतर समझा,’’ कह कर नेहा ने विभा को पुकारा, ‘‘मम्मी, नन्ही मेरे बौस के परिवार को जानती है. सो, मैं सोच रही हूं कि इस से मिलने के बहाने चौधरी साहब को एक रोज घर बुला लूं. बौस से अच्छे ताल्लुकात बहुत काम आते हैं.’’
‘‘ठीक है, पापा से पूछ कर किसी छुट्टी के दिन बुला लेना,’’ विभा बोली. नेहा की नन्ही से खूब पटने लगी. एक रोज नेहा का फोन आया कि अधिक काम होने के कारण वह देर से आएगी, खाने पर उस का इंतजार न करें, न ही फिक्र. वह औफिस की गाड़ी में आ जाएगी.
नेहा 10 बजे के बाद आई.
‘‘चौधरी साहब ने कहा कि उन्हें नन्ही से मिलने तो आना ही है सो वे अपनी गाड़ी में मुझे छोड़ने आ गए,’’ नेहा ने विभा व विपिन के कमरे में आ कर कहा.
विपिन ने अपने कपड़े देखे.
‘‘ठीक हैं, या बदलूं?’’
‘‘आप लोगों को बाहर आने की जरूरत नहीं है, अभी तो वे नन्ही का हालचाल पूछ कर चले जाएंगे.’’ और फिर अकसर चौधरी साहब नेहा को छोड़ने और नन्ही को हैलो कहने आने लगे. विभा को यह सब ठीक तो नहीं लगा लेकिन नेहा ने उसे यह कह कर चुप कर दिया कि नन्ही के पड़ोसी हैं और उन के पापा चंडीगढ़ में अवस्थी अंकल की गैरहाजिरी में उन की कोठी और माली वगैरह पर नजर रखते हैं, हालांकि नन्ही ने उस से ऐसा कुछ नहीं कहा था. विभा ने नन्ही को कुछ दिन पहले फोन पर कहते सुना था कि उसे किसी चंडीगढ़ वाले से मिलने की फुरसत नहीं है. नन्ही आजकल पढ़ाई में बहुत व्यस्त रहती थी. सो, विभा ने उस से इस विषय में कुछ नहीं पूछा. वैसे भी चौधरी कुछ मिनट ही रुकता था. परीक्षा के दौरान नन्ही ने कहा कि वह रात का खाना 7 बजे खा कर कुछ घंटे लगातार पढ़ाई करेगी.
‘‘खाना तो 7 बजे ही खा लोगी लेकिन चौधरी जो ‘हैलो’ करने के बहाने खलल डालेगा उस का क्या करोगी?’’ विभा हंसी.
‘‘मैं कहना तो नहीं चाहती थी आंटी लेकिन चौधरी मुझे हैलो कहने के बहाने नेहा दीदी को छोड़ने आता है. मेरे कमरे में तो उस ने पहले दिन के बाद झांका भी नहीं. पहले रोज जब दीदी आप के कमरे में गई थीं तो मैं ने उस से कहा था कि तुम ही होने वाले सासससुर के कमरे में जा कर उन के पैर छू आओ तो उस ने बताया कि सासससुर तो मम्मी ही पसंद करेंगी, शादी तो उन की सुझाई लड़की से ही करनी है, यहां तो वह महज टाइमपास कर रहा है. मैं ने कहा कि अगर उस ने नेहा दीदी के साथ कुछ गलत किया तो मैं उस की मम्मी को ही नहीं, चंडीगढ़ में सारे पड़ोस को उस की करतूत बता दूंगी.
‘‘चौधरी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होगा और वैसे भी नेहा की शर्त है कि जब तक मैं उस के पापा से शादी की बात नहीं करूंगा वह मुझे हाथ भी नहीं लगाने देगी. शाम गुजारने के लिए उस के साथ कहीं बैठ कर गपशप कर लेता हूं और कुछ नहीं...’’
‘‘और तुम ने उस की बात मान ली?’’ विभा ने बात काटी, ‘‘तुम्हारा फर्ज नहीं बनता था कि तुम मुझे बतातीं यह सब?’’
‘‘नेहा दीदी ने पहले दिन ही यह शर्त रख दी थी कि अगर घर में रहना है तो जैसा वे कहेंगी वैसा ही करना होगा, उन में और चौधरी में फिलहाल रिश्ता घूमनेफिरने तक ही सीमित है, सो मैं चुप ही रही,’’ नन्ही ने सिर झुका कर कहा, ‘‘मैं यह सोच कर चुप रह गई थी कि कुछ दिनों की ही तो बात है, जाने से पहले चौधरी की असलियत दीदी को जरूर बता दूंगी.’’
‘‘मगर तब तक बहुत देर हो जाएगी. विपिन के एक दोस्त का लड़का लंदन से आया हुआ है. उस ने नेहा का रिश्ता मांगा है लेकिन नेहा उस लड़के से मिलने को तैयार ही नहीं हो रही और वह तो कुछ रोज में वापस चला जाएगा,’’ विभा ने हताश स्वर में कहा.
‘‘ऐसी बात है आंटी तो मैं कल जग्गी से मिल कर कहूंगी कि वह फौरन नेहा दीदी को अपनी असलियत बता दे.’’
‘‘जैसे वह तेरी बात मान लेगा,’’ विभा के स्वर में व्यंग्य था.
‘‘माननी पड़ेगी, आंटी. जग्गी की शादी चंडीगढ़ के एक उद्योगपति की बेटी पिंकी से लगभग तय हो गई है, तगड़े दहेज के अलावा जग्गी को उन के बिजनैस में भागीदारी भी मिलेगी. पिंकी मेरी सहेली है, उसी ने मुझे फोन पर बताया यह सब. अब मैं जग्गी को धमकी दे सकती हूं कि तुरंत दीदी की जिंदगी से बाहर निकले वरना मैं पिंकी को बता दूंगी कि वह यहां क्या कर रहा है.’’
‘‘इस सब में तेरी पढ़ाई का हर्ज होगा, नन्ही.’’ ‘‘पढ़ाई तो जितनी हो सकती थी, हो चुकी है, आंटी. फिर इस सब में ज्यादा समय नहीं लगेगा. आप बेफिक्र रहिए, मैं सब संभाल लूंगी,’’ नन्ही ने आश्वासन दिया. नन्ही रोज दोपहर को घर आ जाती थी लेकिन उस दिन वह देर शाम तक नहीं लौटी. विभा ने उस के मोबाइल पर फोन किया.
‘‘मैं ठीक हूं, आंटी, आने में हो सकता है कुछ देर और हो जाए,’’ नन्ही ने थके स्वर में कहा.
‘‘तू है कहां?’’
‘‘मैं जग्गी यानी चौधरी के फ्लैट के बाहर बैठ कर उस का इंतजार कर रही हूं. वह बड़ी देर से ‘बस, अभी आया’ कह रहा है, अब मैं ने उस से कहा है कि आधे घंटे में नहीं आया तो मैं पिंकी को फोन पर जो जी चाहेगा, बता दूंगी.’’
‘‘तुझे उस के फ्लैट पर अकेले नहीं जाना चाहिए, नन्ही.’’
‘‘किसी कौफी शौप में मिलने से घर पर मिलना बेहतर है, आंटी. औफिस में मिलने पर नेहा दीदी को पता चल जाता. आप बेफिक्र रहिए, जग्गी मुझ से बदतमीजी करने की हिम्मत नहीं करेगा.’’
‘‘लेकिन तेरी पढ़ाई कितनी खराब हो रही है, नन्ही?’’
‘‘दीदी की जिंदगी खराब होने देने से थोड़ी पढ़ाई खराब करना बेहतर है, आंटी. रखती हूं, जग्गी आ रहा है शायद.’’ नन्ही नेहा के आने के बाद आई. सो, विभा उस से कुछ पूछ नहीं सकी. अगली सुबह उस का पेपर था, वह जल्दी चली गई. दोपहर को नन्ही के लौटने से पहले विपिन अचानक घर आ गया.
‘‘तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है, विभा. नेहा अश्विन के बेटे से मिलने को तैयार हो गई है. उस ने मुझे औफिस में अभी फोन कर के यह बताया. तुम बताओ, कब बुलाऊं उन लोगों को?’’
‘‘कभी भी बुला लो, इस में पूछने की क्या बात है.’’
‘‘बहुत सहज और खुश लग रही हो, विभा,’’ विपिन ने हैरानी से उस की ओर देखा, ‘‘क्या इसलिए कि पराया कांच सही- सलामत लौटाने का समय आ गया है?’’
‘‘नन्ही को पराया कांच मत कहो, विपिन,’’ विभा ने विह्वल स्वर में कहा, ‘‘वह तो हीरा है, अनमोल हीरा, जिस ने हमारे अपने कांच को तड़कने से बचाया है और नन्ही अब पराई नहीं हमारी अपनी है. निखिल मुझे अपने लिए लड़की पसंद करने को कह ही चुका है, सो, मैं ने नन्ही को पसंद कर लिया है.’’ विपिन उसे क्या बताता कि वह और निखिल तो कब से नन्ही को पसंद कर चुके हैं, निखिल के कहने पर ही उस ने नन्ही को घर में रहने को बुलाया था.
कोई टिप्पणी नहीं: