कहानी - सत्संग

कुछ दिनों से गांव में हर रविवार के दिन एक सत्संग मंडली आना शुरू हो गई थी. मंडली में कुलमिला कर 3 लोग थे, एक मंडली के प्रमुख गुरु बाबा और बाकी 2 बूढ़ी बाईजी. गुरु बाबा की उम्र 45 साल के आसपास थी, लेकिन तंदुरुस्ती उन्हें जवान दिखाती थी. शुरुआत में गांव में केवल मीना का ही एक घर था, जिस में गुरु बाबा सत्संग करने आते थे, लेकिन कुछ ही दिनों में आधे गांव की औरतें गुरु बाबा की भक्त हो गईं. गुरु बाबा इन दिनों शहर के किसी मंदिर में रहते थे और रविवार का दिन आते ही इस गांव में मीना के घर सत्संग करने आ पहुंचते थे.

मीना का गुरु बाबा से परिचय अपने मायके में सत्संग के  दौरान हुआ था. उसी वक्त मीना ने गुरु बाबा की वाणी से प्रभावित हो कर उन्हें इस गांव में आने का न्योता दे डाला था. जिस दिन गुरु बाबा मीना के घर आए, उस दिन मीना ने अपनी शेखी बघारने के लिए पड़ोस की कुछ औरतों को भी वहां बुला लिया था. मीना के घर पर पहले दिन ही गुरु बाबा ने ऐसा सत्संग किया कि सारी औरतें उन की मुरीद हो गईं. धीरेधीरे सब औरतों ने उन्हें अपना गुरु मान कर गुरु मंत्र भी ले लिया. गुरु बाबा केवल रविवार के दिन ही आते थे. यह बात अब उन के भक्तों को खासा अखरती थी.

एक बार रविवार आने से पहले ही औरतों में इस बात पर चर्चा हुई कि गुरु बाबा को गांव के बाहर बने मंदिर में जगह दे दी जाए, जिस से उन का सत्संग रोज सुनने को मिल जाया करे. सभी औरतें इस बात पर एकमत थीं. रविवार के दिन जब गुरु बाबा गांव में सत्संग के लिए आए, तो उन औरतों ने उन के सामने यह प्रस्ताव रख दिया. गुरु बाबा कुछ कहते, उस से पहले ही उन के साथ आने वाली बाईजी ने इस गांव के मंदिर में रुकने से मना कर दिया. वे कहती थीं कि साधुसंन्यासी को लालच के चलते कहीं नहीं रुकना चाहिए. लेकिन बाईजी की सुनता कौन था. औरतों को तो वैसे ही बाईजी से कोई मतलब न था. वे तो गुरु बाबा के साथ आती थीं, इसलिए उन की इज्जत होती थी.

गुरु बाबा इस बात को सुन कर जोश में थे, लेकिन बाईजी की वजह से कुछ कह न सके. वे आज जिस जगह पर थे, वहां तक लाने में बाईजी का बहुत बड़ा योगदान था. पर गांव की औरतों द्वारा किया गया अनुरोध गुरु बाबा को बाईजी के खिलाफ बगावत करने के लिए मजबूर कर गया. जब गुरु बाबा ने बाईजी से अपनी दिली इच्छा जाहिर की, तो दोनों बाईजी उन से नाराज हो गईं और फिर कभी इस गांव में न आने को कह कर अपने आश्रम लौट गईं. गुरु बाबा को इस बात से कोई फर्क न पड़ा. उन्हें इस गांव की औरतों से जो आश्वासन मिला था, वह बाईजी के साथ से कई गुना बड़ा था. उसी दिन औरतों ने खुद जा कर गांव के बाहर बने मंदिर के कमरे को झाड़पोंछ कर गुरु बाबा के रहने के लिए तैयार कर दिया.

शाम तक गुरु बाबा के लिए मंदिर में बढि़या भोजन बना कर भेज दिया गया. आज सालों बाद बाबाजी के लिए किसी ने इतना स्वादिष्ठ खाना भेजा था, जबकि बाईजी के आश्रम में तो हमेशा संन्यासियों वाला खाना ही मिलता था. गुरु बाबा ने फैसला किया कि अब वे इसी गांव में रहेंगे. यह बात जब औरतों को पता चली, तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. अब हर रोज मंदिर में पूजा होने लगी थी. लोग इस बात से खुश हो कर मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने लगे थे. मर्द भी यह सोच कर खुश थे कि चलो मंदिर में गुरु बाबा के रहने से वहां का सूनापन खत्म हो जाएगा.

अब मीना के घर के बजाय मंदिर की धर्मशाला में ही सत्संग होना शुरू हो गया था. बड़ी जातियों के साथसाथ छोटी कही जाने वाली जातियों के लोग भी गुरु बाबा का सत्संग सुनने आने लगे थे.गुरु बाबा के पास चढ़ावे के पैसों का भी ढेर लगता जा रहा था. पिछड़ी जाति की एक लड़की रजनी को गुरु बाबा का सत्संग सुनने की ऐसी लत पड़ी कि घर के सब काम छोड़ कर वह रोज सत्संग में आ बैठती थी.  रजनी की उम्र 19 साल थी, लेकिन जिस दिन उस ने गुरु बाबा का सत्संग सुना, तो भक्ति से सराबोर हो गई. घर में बूढ़ी दादी के अलावा कोई और नहीं था, जो उसे रोकता या टोकता. मांबाप उसे बचपन में ही छोड़ कर चल बसे थे.

गुरु बाबा की खातिरदारी और रोब देख कर उस के मन में खयाल आता था कि वह भी साध्वी हो जाए. लेकिन उस की राह में एक अड़चन थी कि वह पिछड़ी जाति की थी. भला पिछड़ी जाति की लड़की को कौन साध्वी मानेगा? यह खयाल मन में दबाए रजनी रोज गुरु बाबा का सत्संग सुनने आती रही. सर्दियों के दिन थे. गुरु बाबा ने आग जलाने के लिए उपले और लकडि़यों का इंतजाम करने की बात भक्तों से कही, तो रजनी उछल कर बोल पड़ी कि इन सब चीजों का इंतजाम वह खुद कर देगी.गुरु बाबा की नजर रजनी पर पड़ी, तो भरे बदन की ठीकठाक दिखने वाली रजनी उन के दिल को भा गई. लेकिन चाह कर भी वे कुछ न कह सके. 

शाम के वक्त रजनी एक गठरी में उपले और लकड़ी भर कर मंदिर जा पहुंचीं. उस वक्त मंदिर में गुरु बाबा के अलावा कोई और नहीं था. रजनी ने सिर से गठरी उतारी ही थी कि गुरु बाबा मंदिर के  कमरे से बाहर निकल आए. रजनी ने गुरु बाबा को देखा तो हाथ जोड़ कर प्रणाम कर लिया. गुरु बाबा ने इधरउधर नजर घुमाई, फिर रजनी के सिर, कंधे और गाल पर बड़े प्यार से हाथ फेरा. 

गुरु बाबा जानते थे कि रजनी पिछड़ी जाति की है, लेकिन उन की वासना को जातबिरादरी की दीवार कतई मंजूर न थी. गुरु बाबा खीसें निपोरते हुए बोले, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

वह बोली, ‘‘जी... रजनी.’’

गुरु बाबा फिर से बोले, ‘‘और कौनकौन लोग हैं घर में?’’

रजनी ने उसी अंदाज में जवाबदिया, ‘‘मैं और मेरी दादी हैं... और कोई नहीं.’’

गुरु बाबा मन ही मन खुश हो उठे और बोले, ‘‘कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा. किसी बात की चिंता मत करो. चलो, तुम्हारी शादी में हम मदद कर देंगे.’’

रजनी शरमा कर बोली, ‘‘बाबाजी, मुझे अभी शादी नहीं करनी. मैं तो साध्वी बनना चाहती हूं.’’

गुरु बाबा खुश हो कर बोले, ‘‘अरे वाह, क्या बढि़या विचार है. तो फिर बन क्यों नहीं जातीं साध्वी? देर किस बात की है?’’

रजनी शरमाते हुए बोली, ‘‘बाबाजी, मैं पिछड़ी जाति की हूं न, इसलिए सोच कर रह जाती हूं.’’

गुरु बाबा खुद इस बात के खिलाफ थे कि कोई छोटी जाति का आदमी संत बने, लेकिन रजनी को पाने के लिए वे बेफिक्र हो कर बोले, ‘‘ऐसा कौन बोला? हम बनाएंगे तुम्हें साध्वी. आओ, अंदर बैठ कर बातें करते हैं.’’ रजनी गुरु बाबा के कमरे में जाने से थोड़ा हिचक रही थी, लेकिन उन के दोबारा कहने पर वह अंदर चली गई. अंदर कमरे में गुरु बाबा के लिए सुखसुविधा का हर सामान मौजूद था. कमरे में पड़े तख्त पर गुरु बाबा ने खुद बैठते हए रजनी को भी बिठा लिया और उस के शरीर पर जहांतहां हाथ फिरा कर बोले, ‘‘देखो रजनी, हम तुम्हें साध्वी तो बना सकते हैं, लेकिन यह बनना इतना आसान नहीं होता. इस के लिए तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. पहले शिष्या बन कर मेरी सेवा करनी पड़ेगी.

‘‘मैं जो भी कहूंगा, वह आंख मूंद कर करते रहना होगा, तब जा कर तुम साध्वी बन पाओगी. अगर यह सब मंजूर हो तो बताओ, फिर मैं इस बारे में सोचूं भी.’’

रजनी को दुनियादारी की समझ नहीं थी. संतगीरी की चमक ने उसे दीवाना बना दिया था. इस सब के लिए वह कुछ भी दांव पर लगाने को तैयार थी. रजनी बोली, ‘‘बाबाजी, आप जो कहो मैं वही करने को तैयार हूं. आप मेरी जान मांगो, तो वह भी मैं दे दूं. बस, आप मुझे साध्वी बना दो.’’ रजनी का साध्वी बनने के  प्रति इतना जोश देख कर गुरु बाबा खुश हो उठे. अब उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने से कोई नहीं रोक सकता था. गुरु बाबा ने रजनी को अपने करीब किया और उस का मुंह चूम लिया. रजनी को थोड़ा अटपटा तो लगा, लेकिन इसे उन का प्यार समझ कर सह गई. गुरु बाबा ने उठ कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. रजनी के दिल की धड़कनें बढ़ गईं, लेकिन कुछ कहने की हिम्मत न कर सकी.

गुरु बाबा ने रजनी को अपनी बांहों में भरा और चूम लिया. रजनी का सारा जिस्म डर से कांप उठा, मुंह से निकला, ‘‘बाबाजी, यह आप...’’ रजनी विरोध में बस इतना ही कह पाई, क्योंकि गुरु बाबा ने उसे यह बोल कर चुप कर दिया, ‘‘रजनी, हम ने तुम से क्या कहा था. तुम तो कहती थीं कि जान भी दे दूंगी. तुम्हें साध्वी बनना है या नहीं?’’

रजनी चुप हो कर सब सहती गई. बाबा अपनी हवस मिटा चुके थे. उन्होंने एक बार फिर से रजनी को साध्वी बनाने का आश्वासन दे कर घर भेज दिया. रजनी अपनी इज्जत लुटा कर घर को चल दी. उसे बुरा तो लग रहा था, लेकिन मन में साध्वी बनने का खयाल तसल्ली दिए जा रहा था. अगले दिनों में रजनी इसी तरह गुरु बाबा के पास आती रही और बाबा इसी तरह उस का शोषण करते रहे. एक दिन रजनी ने गुरु बाबा से साध्वी बनने की जिद कर दी. बाबा रजनी को और ज्यादा दिनों तक टाल नहीं सके. उन्होंने अगले ही दिन रजनी को गेरुए कपड़े मंगवा कर दे दिए और विधिविधान से उसे साध्वी बना दिया. रजनी के साध्वी बनने की बात सुन कर गांव के लोगों ने इस बात पर कड़ा एतराज दर्ज किया, लेकिन गुरु बाबा के आगे उन की एक न चली. कुछ दिन तक तो रजनी साध्वी के वेश में रात के वक्त अपने घर पर ही रही, लेकिन जल्दी ही गुरु बाबा के बारबार कहने पर उस के साथ ही मंदिर के दूसरे कमरे में रहने लगी.

गुरु बाबा के भक्तों को तो इस बात में कोई खराबी न दिखती थी, क्योंकि उन्हें अपने गुरु बाबा की नीयत पर पूरा भरोसा था. गांव के छिछोरे लड़के, जो दिनभर रजनी को ताका करते थे, वे अब दिनभर मंदिर में डेरा जमाए रहते. गुरु बाबा ने इस बात का फायदा भी उठाना शुरू कर दिया था. वे अब इन लोगों के लिए साध्वी रजनी का अलग से प्रवचन रखवाते और इन लोगों से मनमाना पैसा भी वसूलते थे. धीरेधीरे प्रवचन छिछोरी बातों के प्रवचन में तबदील होता चला गया, साथ ही गुरु बाबा के पास पैसों की बरसात भी होती चली गई. एक शाम एक छिछोरे लड़के ने कैमरे से चुपके से गुरु बाबा और रजनी का आपत्तिजनक फोटो खींच लिया. जब गुरु बाबा को इस बात की खबर लगी, तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने तुरंत उस लड़के को बुलाया और उस के सामने गिड़गिड़ाने लगे कि यह बात वह किसी को न बताए, इस के बदले वह उस लड़के को मुंहमांगी रकम भी देने को तैयार हो गए.

लड़का चालाक था. उसे पता था कि इस बाबा ने खूब कमाया है. उस ने खींचे हुए फोटो वापस कर गुरु बाबा से मोटी रकम ऐंठ ली. यह रकम इतनी मोटी थी कि गुरु बाबा की जमापूंजी खत्म सी हो गई. सत्संग के नाम से कमाया गया पैसा गुरु बाबा के शौक और ऐयाशियों को छिपाने के काम आ रहा था. गुरु बाबा ने पैसा कम होते देखा, तो भक्तों से और ज्यादा दान करने के लिए बोल दिया. लड़के को पैसा दे कर गुरु बाबा और साध्वी रजनी अभी चैन की सांस भी न ले पाए थे कि और भी लड़के इन लोगों के अश्लील फोटो लिए घूमने लगे. यह सब देख गुरु बाबा अधमरे हो गए. उन्होंने आननफानन सभी लड़कों को बुला कर इस सब को बंद करने की प्रार्थना कर डाली. गुरु बाबा ने इन सभी लड़कों को धर्म के नाम पर जम कर लूटा था, फिर ये लोग बाबा को इतनी आसानी से कैसे छोड़ देते. उन्होंने गुरु बाबा के सामने शर्त रख दी कि अगर वे अपनी साध्वी से उन लोगों को मस्ती करने देंगे, तो कोई कुछ नहीं कहेगा.

अब गुरु बाबा क्या करते, उन्होंने अपनी इज्जत बचाने की खातिर जैसेतैसे साध्वी रजनी को इस बात के लिए मना लिया. अब हालत यह हो गई कि भगवान के मंदिर के  ठीक बगल में दिनभर वासना का खेल चलने लगा. रजनी साध्वी इसलिए बनी थी कि आराम से जिंदगी गुजार सकेगी, लेकिन यहां तो उस की जिंदगी ही नरक सी हो गई थी. गांव में इस बात की चर्चा जोरों पर थी, लेकिन गुरु बाबा के अंधभक्त लोग अब भी इस बात पर यकीन न करते थे. लेकिन अब कुछ घरों की औरतों ने सत्संग में आना बंद कर दिया था. गुरु बाबा की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थीं. एक रात गुरु बाबा चुपके से साध्वी रजनी को ले कर मंदिर से भाग गए. सोचते थे, अब दूर कहीं जा कर सत्संग किया करेंगे, जहां साध्वी रजनी उन की धर्मपत्नी के तौर पर रहा करेगी. गुरु बाबा और साध्वी रजनी के मंदिर से भागते ही लोगों को पूरी कहानी समझ आ गई. लेकिन अब भी उन के भक्तों को लगता था कि गुरु बाबा जरूर किसी और वजह से इस तरह गए होंगे, क्योंकि जिस तरह से गुरु बाबा सत्संग में प्रवचन देते थे, उस हिसाब से वे ऐसा कर ही नहीं सकते थे. 

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