कहानी - अलविदा

दीपा सुबक रही थी. उस की सिसकियां मेरे कानों में पड़ीं. मुझे अचरज हुआ. ये अचानक दीपा को क्या हो गया? अच्छीभली थी. आज जहां सभी अध्यापिकाएं तनख्वाह पा कर खुश थीं वहीं दीपा की खुशियों को ग्रहण लगा तो जाहिर है कोई बात तो अवश्य होगी. ‘‘किसी ने कुछ कहा?’’ मेरे कथन पर किसी तरह से उस ने अपना चेहरा ऊपर किया. उस की आंखें आंसुओं से लबरेज थीं, ‘‘बोलोगी नहीं तो पता कैसे चलेगा?’’

बड़ी मुश्किल से उस के मुख से स्वर फूटे, ‘‘मेरी सैलेरी नहीं बढ़ी.’’

सुन कर मुझे भी दुख हुआ. दीपा की मेहनत पर कोई शक नहीं कर सकता था. वैसे भी जरूरतमंद लोग ही मेहनत करते हैं. फिर क्यों उस के साथ नाइंसाफी हुई? निजीकरण का ढोल सब पीटते हैं कि सबकुछ निजी हो जाना चाहिए तभी व्यवस्था ठीक होगी. मगर किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता कि यहां कर्मचारियों का कितना शोषण होता है तो क्या दीपा भी शोषण का शिकार हुई है? दुबलीपतली, अच्छे नैननक्श वाली दीपा पिछले 1 साल से इस स्कूल में बतौर अध्यापिका नियुक्त है.

संजना चहक रही थी. उस ने कौमनरूम में सब अध्यापिकाओं को अपनी सैलेरी बढ़ने की खुशी में समोसे की दावत दी थी. पिं्रसिपल आलोकनाथ भी आए. संजना ने अपने हाथों से उन्हें समोसा खिलाया. तालियां बजीं.

आलोक सर पिछले 30 सालों से इस स्कूल से जुड़े थे. एक तरह से उन्होंने अपनी जवानी इस स्कूल के नाम कर दी. उन की हालत उस बीवी की तरह थी जिस ने अपनी जवानी एक पति के साथ गुजारी तो क्या अब बुढ़ापा किसी दूसरे के साथ गुजारे? कौन अपनाएगा? दीपा का पति मुंबई में नौकरी करता था. शादी के 2 साल बाद भी जब उस में मां बनने की संभावना न दिखी तो उस के पति ने नौकरी के बहाने मुंबई का रुख किया. रुख क्या किया, वहीं का हो गया. सुनने में आया कि उस का परस्त्री से संबंध है. दीपा ने सारे जतन किए उसे मनाने के पर वह नहीं माना. अब तो सिर्फ उम्मीद बांधे बैठी थी. हो न हो कल उस स्त्री से उसे वितृष्णा हो और लौट आए. वह हर माह उसे कुछ रुपए भेजता था, जो अपर्याप्त थे. एक तो मकान का भाड़ा, उस पर रोजमर्रा की जरूरतें. मजबूर हो कर उसे एक स्कूल में टीचर की नौकरी करनी पड़ी. तनख्वाह इतनी भर ही थी कि वह अपनी जीविका किसी तरह चला सकती थी.

मैं ने उस से एक दिन कहा, ‘‘जब तुम्हारा पति तुम्हारी परवा नहीं करता है तो तुम क्यों करवाचौथ का व्रत रख कर अपना खून जलाती हो.’’ वह मुसकराई मगर कुछ नहीं बोली.

एक तो उस की दुबलीपतली काया उस पर चौबीस घंटे की सांसत. ये चोंचले तो उन महिलाओं के हैं जो संपन्न घरानों से आती हैं. 2 दिन न भी खाया तो चल जाएगा. पर जहां सिर्फ दो वक्त की रोटी का सवाल हो वहां अगर 1 दिन भी खाने के लिए न मिले तो समझिए हजारों शारीरिक समस्याएं. फिर ऐसे पति के लिए जिस ने जीतेजी अपनी पत्नी को मार डाला हो और वह पत्नी उस पति के दीर्घायु होने के लिए व्रत रखे?

मेरी उस से अंतरंगता थोड़ी बाद में हुई. इस से पहले वह ललिता के संपर्क में आई. ललिता पिछले 25 सालों से स्कूल से जुड़ी थी. वह तलाकशुदा थी. कहा जाता था कि पिं्रसिपल से उस के अनैतिक संबंध रहे हैं. शायद तभी इतने सालों से स्कूल में जमी थी. वक्त की मारी दीपा से जब ललिता ने थोड़ी आत्मीयता दिखाई तब वह अपने जज्बातों पर नियंत्रण न रख सकी. अपने वैवाहिक जीवन के सारे राज उस के सामने अनावृत्त कर दिए. अधेड़ ललिता उस की नजर में मां की तरह थी और वह उस की बेटी. ऐसा दीपा का मानना था. बिन पुरुष के एक स्त्री की जिंदगी एक कटी पतंग की तरह होती है. ऐसा ही कुछ दीपा के साथ हुआ. ललिता के जरिए दीपा का कुछ नहीं छिपा आलोकनाथ से. शुरूशुरू में दीपा जब आलोकनाथ के पैर छूती थी तब वह उस की पीठ पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते. पहले दीपा ने ध्यान नहीं दिया. पर एक दिन उसे महसूस हुआ, आलोकनाथ की उंगलियां सिर्फ आशीर्वाद तक ही सीमित नहीं थीं. वह सजग हो गई. उस रोज के बाद उस ने आलोकनाथ के पैर छूने बंद कर दिए.

दीपा की यही बात मुझे अच्छी न लगी, बिना सोचेसमझे ललिता को राजदां बना लिया. दिलफेंक किस्म के आलोकनाथ के कई महिलाओं से संबंध रहे, जो मुझे बाद में पता चला.

एक रोज दीपा के कंधे में दर्द हो रहा था. वह टाइपिस्ट से अपने पेपर में संशोधन करवा रही थी. उसी समय आलोकनाथ पहुंचे. वे भी उस के बगलगीर हो गए. उसे अखरा पर संकोचवश कुछ न बोली. रहरह कर वह दर्द से कराह उठती. आलोकनाथ की छिद्रान्वेषी नजरों से उस की पीड़ा छिप न सकी. उन्हें दिल्लगी सूझी.

‘‘कोई तकलीफ है क्या?’’

‘‘हां, कल रौड से कंधे पर चोट लग गई,’’ दीपा बोली.

‘‘कब?’’ आलोकनाथ का इशारा कुछ और था. दीपा समझी नहीं. वे हंस कर बोले, ‘‘अरे भाई, दिन में लगी या रात में?’’

दीपा कुछकुछ समझने लगी थी. टालने की नीयत से बोली, ‘‘दिन में.’’ वह गंभीरता से अपने काम में लग गई.

आलोकनाथ ने उस के चेहरे के भाव को पढ़ लिया. बात बदलने की नीयत से बोले, ‘‘रात में लगती तो दवादारू की दिक्कत होती.’’

दीपा इतनी भी नासमझ नहीं थी कि आलोकनाथ की बदनीयती को न भांप सके.

‘‘वैसे भी आप ने बहुतों को चोट दी होगी,’’ आलोकनाथ ने हंस कर कहा जो दीपा को अच्छा न लगा. वह शर्म से गड़ गई. उसे लगा आलोकनाथ ने मर्यादा का कुछ ज्यादा ही अतिक्रमण किया. वह रोंआसी हो गई.

‘‘दीपा, अगर तुम्हें इन पुरुषों के बीच नौकरी करनी है तो आत्मबल मजबूत करना होगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘मतलब?’’

‘‘तुम्हें आलोक सर को समुचित जवाब देना चाहिए था. ऐसे डरीसहमी रहोगी तो निश्चय ही उन को शह मिलेगी.’’

‘‘अगर आप के साथ ऐसा करते तो?’’

‘‘हिम्मत है?’’ मैं तैश में आ गई. ‘‘जबान खींच लेती,’’ मेरा क्रोध और बढ़ गया, ‘‘तुम्हारी कमजोरी वे जान चुके हैं.’’

‘‘कैसी कमजोरी?’’ दीपा के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘एक तो तुम बिन पति की हो, दूसरे आर्थिक रूप से कमजोर.’’

‘‘तो क्या हुआ, किसी से मांग थोड़ी ही रही हूं. मेहनत करती हूं.’’

‘‘यही मेरा कहना है कि तू अपनेआप को कमजोर मत समझ.’’

मेरी सलाह का उस पर असर पड़ा. जनवरी का महीना था. सर्दी इतनी कि डीएम ने सारे स्कूलकालेज एक हफ्ते के लिए बंद करवा दिए. पर आलोकनाथ सर ने हम अध्यापिकाओं के लिए फरमान जारी किया कि उन्हें स्कूल आना होगा. हां, समय थोड़ा जरूर कम कर दिया. हम अध्यापिकाएं मन ही मन उन के फैसले से चिढ़ रही थीं. प्राइवेट स्कूलों में सिवा शोषण के कुछ नहीं होता.

मैं दीपा से फुसफुसाई, ‘आलोकनाथ जी का मन, भला घर पर कैसे लगेगा?’

वह हंस कर बोली, ‘‘ठीक कह रही हो. एक हफ्ते हम महिलाओं का चेहरा न देखें तो बेचारे सूख जाएंगे.’’

हम दोनों हंस पड़ीं.

‘‘ओछापन दिखाते शर्म नहीं आती. सुनते हैं कि 2 जवान बेटियां हैं,’’ दीपा बोली.

‘‘पुरुषों का चरित्र स्त्रियों के मामले में हमेशा दोगला होता है,’’ मैं कुढ़ कर बोली.

आज सुबह से ही आलोक सर मूड में थे. ‘मेरा दिल भी कितना पागल है जो प्यार...’ गाना क्लास के गलियारे में गुनगुना रहे थे. हम टीचर्स कौमनरूम में बैठे अपनीअपनी कौपियों को जांचने में लगे थे. सभी के कानों में उन का बेसुरा राग पड़ा. जब वे अपने केबिन में चले गए तब मैं और दीपा मुंह छिपा कर हंस पड़े. तभी बिल्लू आया. मंदबुद्धि बिल्लू स्कूल में पानी पिलाने का काम करता था. एक तरह से वह स्कूल का भेदिया भी था. टीचर्स की हर गतिविधियों को, आलोक सर से अवगत कराने में वह फख्र महसूस करता था.

‘‘संजना मैम को साहब ने बुलाया है,’’ कह कर वह चला गया. संजना का चेहरा खिल गया. इठलाते हुए वह पिं्रसिपल केबिन की तरफ बढ़ी. मुझे शरारत सूझी. दीपा से फुसफुसाई, ‘इस अदा पर भला कौन न मर जाए.’

‘‘धीरे बोलो, सुन लेगी,’’ दीपा ने टोका.

‘‘आओ संजना, आओ, बैठो, कैसा चल रहा है?’’

‘‘थोड़ी सी कौपियां बच गई हैं जांचने को. उन्हीं को पूरा करने में लगी हूं.’’

‘‘अनुराधा को दे दी होतीं. आखिर वह करती ही क्या है?’’

‘‘यह तो आप जानें या वह,’’ संजना मुंह बना कर बोली, ‘‘मैं इतना जानती हूं कि वह सिर्फ नाम की डांस टीचर है. क्या आता है उसे? फिल्मी लटकोंझटकों की नकल मार कर कोई डांस टीचर्स नहीं बन सकता.’’

‘‘एक बार कह कर तो देखो.’’

‘‘पिछली दफे आप के सामने ही तो कहा था. साफ इनकार कर दिया था.’’

आलोकनाथ संजना को नाराज नहीं कर सकते थे. इसलिए किंचित नाराज स्वर में बोले, ‘‘अगले सैशन से उन की छुट्टी तय.’’ संजना का सिर गर्व से तन गया.

‘‘और हां, मैं एक बात कहना भूल गया. तुम्हारे लिए खुशखबरी है. तुम्हारे काम से मैं और मैनेजमैंट बहुत खुश हैं. लिहाजा, सर्वसम्मति से तुम्हें कौर्डिनेटर बनाया जाता है.’’

यह सुन कर संजना खुशी से चूर थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर आलोक सर के इस एहसान का बदला कैसे चुकाए?

‘‘मैं आप की शुक्रगुजार हूं,’’ उस के मुंह से इतना ही निकला.

‘‘इस में शुक्रिया की क्या बात है. यह पद तुम अपनी काबिलीयत से पा रही हो. तुम्हारी सैलेरी दोगुनी हो गई है.’’

आलोकनाथ ने तो संजना को हर खुशी से नवाजा. अब बारी थी संजना की. स्कूल में सन्नाटा था. पिं्रसिपलरूम हम टीचर्स के कौमन रूम से थोड़ी दूरी पर था.

‘वहां क्यों बैठी हो. मेरे पास आओ,’ आलोक सर फुसफुसाए.

संजना उन की बगलगीर हो गई. वे उस के कंधे पर हाथ रख कर मुसकराते हुए बातें करने लगे. मुझे नए महीने के उपस्थिति रजिस्टर पर पिं्रसिपल सर के दस्तख्त कराने थे. मैं ने सोचा लगेहाथ यह भी निबटा दिया जाए. रजिस्टर ले कर उन के केबिन के पास पहुंची, तो अंदर संजना और आलोक सर की फुसफुसाहट मेरे कानों में पड़ी. एक छोेटे से झरोखे से झांक कर देखा. अंदर जो कुछ हो रहा था उसे देख कर मैं शर्म से गड़ गई. आलोक सर संजना को चूम रहे थे. मैं घबरा कर वापस कौमनरूम में आ गई. वह दृश्य मेरी आंखों के सामने तैरता रहा. मैं ने दीपा को सारा किस्सा बता दिया.

‘‘थोड़े से रुपयों के लिए लोग इतने गिर सकते हैं?’’ दीपा बोली.

‘‘पुरुषों से ज्यादा हम कुसूरवार हैं, जो पुरुषों को शह देती हैं. वे तो तुम पर भी अपना हाथ रखने वाले थे,’’ मैं बोली.

दीपा के चेहरे पर निराशा की रेखाएं खिंच आईं.

‘‘ऐसे माहौल में कोई कब तक काम कर पाएगा?’’ दीपा का स्वर डूबा हुआ था.

‘‘कर पाओगी, बशर्ते अपने आत्मबल को बनाए रखो. नहीं तनख्वाह बढ़ेगी न बढे़, कहीं और कोशिश करो.’’

‘‘वहां भी ऐसा ही हो तब?’’

‘‘जरूरी नहीं सब जगह ऐसा ही हो. फिर भी संजना जैसी महिलाओं को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता. हमें कम ही तनख्वाह मिले, इज्जत से बढ़ कर कुछ नहीं होता,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों न इस की शिकायत निदेशक से करें?’’ दीपा बोली.

‘‘वे भी तो पुरुष हैं. जब तक आलोक सर से उन्हें फायदा है, वे उन के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे. आलोक सर ने इस स्कूल को खड़ा किया है.’’

अमिताभ सर उम्र, ज्ञान और अनुभव सभी तरह से आलोक सर से सीनियर थे. काफी सुलझे हुए थे. उन्हें भी आलोक सर की हरकतें नागवार लगतीं. चूंकि आलोक सर के ऊपर निदेशक का हाथ था इसलिए सिवा उन्हें झेलने के कुछ कर नहीं पाते.

एक रोज जब बस से हमसब अपनेअपने घरों को लौट रहे थे तब वे कहने लगे, ‘‘जिस तरीके से आलोक सर महिलाओं पर अश्लील टिप्पणियां करते हैं उन के खिलाफ सैक्सुअल हैरेसमैंट का केस हो सकता है. आलोक सर जबतब महिला अध्यापिकाओं पर अश्लील फब्तियां कसने से बाज नहीं आते. भले ही उन का लहजा मजाक में होता हो तो भी शैक्षणिक माहौल में ऐसी सोच का अगर कोई हो तो वह बच्चों को नैतिकता का पाठ कैसे पढ़ा सकता है?

‘‘हम महिलाएं चाह कर भी उन के खिलाफ कुछ नहीं कर सकती थीं. मान भी लिया जाए, कोई केस उन के खिलाफ करें पर क्या सुबूत है कि हम उन के स्कूल में अध्यापिका हैं. हमारे पास कोई नियुक्तिपत्र तो है नहीं. कानून बनाना कितना आसान होता है. पर क्या सरकार ऐसे अनिश्चित भविष्य के साथ काम करने वाली महिलाओं के बारे में सोचती है. जिन के पास सुबूत ही नहीं कि वे साबित कर सकें कि वे जिस के खिलाफ केस दर्ज करा रही हैं वहां की वे कर्मचारी हैं.’’

सालाना जलसा था. एक बुजुर्ग सज्जन को स्कूल कमेटी ने मुख्य अतिथि के रूप में स्कूल में बुलाया. महोदय एक सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद से रिटायर हुए थे. उम्र यही कोई 76 के आसपास रही होगी. अपने भाषण में वे सिर्फ नैतिकता पर ही जोर देते रहे. कहने लगे, ‘‘राजधानी में एक लड़की के साथ जो बलात्कार हुआ उस के लिए हमारा समाज जिम्मेदार है. अगर हमें यह सब रोकना है तो अपने बच्चों को नैतिकता का पाठ बचपन से पढ़ाना होगा, जिस के लिए सब से अच्छा प्लेटफौर्म होगा स्कूल. शिक्षकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों को नैतिकता का पाठ एलकेजी से पढ़ाएं.’’

वैसे वे अपने तरह से भी नैतिकता का फार्मूला देने में न चूके. कहने लगे, ‘‘हमें अपनी लड़कियों को मोबाइल देना बंद करना होगा. दूसरे उन पर ढीले कपड़े पहनने का दबाव डालना होगा. पुरुषों से आत्मसंयम बरतने की बात उन्होंने एक बार कही.’’

यानी वे अनियंत्रित रहेंगे. अब यह महिलाओं पर निर्भर करता है कि अगर उन्हें अपना शील बचाना है तो अपना जिस्म ढकें ताकि पुरुषों की कामवासना न भड़के. कोई उन से पूछे जब इंद्र ने अहल्या का छल से बलात्कार किया तब क्या अहल्या ने ढीले कपड़े नहीं पहने होंगे? हम तो उसी सभ्यतासंस्कृति की दुहाई देते हैं. लिंग पूजा को महोदय किस रूप में लेंगे? पुरुष लिंग पुजवाए तो नैतिक और हम स्त्री जरा सा चुस्त कपड़े पहनें तो अनैतिक?

महोदय का भाषण सुन कर मुझे हंसी भी आई और उन की पुरुष मानसिकता को ले कर रंज भी. जब 76 साल के बुजुर्ग सज्जन नैतिकता को इस तरह परिभाषित कर रहे हैं तब तो आलोक सर जो कुछ कर रहे हैं वह शायद गलत नहीं, सीख तो उन्हें अपने बुजुर्गों से ही मिली होगी?

नया सैशन शुरू होने वाला था. कुछ अध्यापिकाओं की छंटनी होने वाली थी. जिस में दीपा का नाम सर्वोच्च था. यह प्राइवेट स्कूलों का पुराना चोंचला है. जब भी तनख्वाह बढ़ाने की बात आती है तब वे कम तनख्वाह वाले नए चेहरों की भरती करते हैं. उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि ऐसा करने से बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है. वे जिन से खुश होते उन्हीं को रिपीट करते हैं. उन की खुशी का मापदंड था जो उन की शर्तों पर खरा उतरे.

मैं अंगरेजी पढ़ाती थी. उन्हें मुझ जैसी अध्यापिका का मिलना थोड़ा मुश्किल था इसलिए मुझे 2 साल से ढो रहे थे. वहीं दीपा हिंदी पढ़ाती थी, जिस के अध्यापकों की कोई कमी न थी. एक खोजो हजार मिलते हैं. हिंदी अध्यापक तो अंगरेजी स्कूलों के लिए लाश जैसे हो गए हैं. अगर संवैधानिक दबाव न हो तो कब का इन्हें ये लोग दफन कर चुके होते. दीपा को निकालना था, सो एक रोज आलोक सर ने उसे अपने केबिन में बुलाया.

‘‘दीपाजी, आप के काम की बड़ी शिकायतें आ रही हैं.’’

दीपा की नजरें झुकी हुई थीं.

कुछ सोच कर वे आगे बोले, ‘‘मैं ने मैनेजमैंट से बात की है. मैं ने ही उन्हें आप को 1 साल और काम करने के लिए राजी कर लिया है,’’ कह कर वे चुप हो गए. उन की शातिर नजर दीपा की प्रतिक्रिया को पढ़ रही थी. जब उन्हें लगा कि तीर निशाने पर है तो आगे बोले, ‘‘बशर्ते...’’

एकाएक दीपा की खुशी काफूर हो गई. वह दुश्ंिचताओं से घिर गई. उस के सामने ललिता और संजना का चेहरा तैर गया. उसे अपनी सहअध्यापिका की नसीहत भी याद आई. उस ने अपना आत्मविश्वास बटोरा.

आलोक सर अपनी कुरसी से उठे. दीपा कुछकुछ उन की मनोदशा को समझने लगी थी. खुद को कड़ा किया. वे दीपा के पीछे खड़े हो गए. उस के कंधे पर हाथ रख कर बड़े प्यार से सहलाया, ‘‘मुझे तुम्हारे अतीत से सहानुभूति है. तुम्हारे पति ने तुम्हारे साथ जो किया वह अच्छा नहीं था. महंगाई का जमाना है. 6 हजार रुपए में होता ही क्या है. मैं ने 2 हजार रुपए ज्यादा की सिफारिश की है. अगले सैशन से तुम्हें मिलने लगेगा,’’ वे कहते रहे, ‘‘संजना और तुम साथसाथ आई थीं. वह तुम से ज्यादा समझदार थी. कोऔर्डिनेटर बना दी गई. वेतन भी दोगुना. खैर, मैं उस पर नजर रखे हुए हूं. जरा सी भी खामी निकली तो उस का जाना तय.’’

दीपा इतनी भी नासमझ नहीं थी कि आलोक सर की कुत्सित चाल को न समझ सके. उन की उंगलियां वर्जनाओं का अतिक्रमण करतीं इस से पहले वह एकाएक तेजी से उठी. चेहरा आलोक सर की तरफ घुमा कर एक जोरदार तमाचा उन के गाल पर जड़ दिया. वे तिलमिला कर पीछे हटे. उन्हें सपने में भी दीपा से ऐसी प्रतिक्रिया का भान न था. दीपा की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. आंखें शेरनी की तरह लाल. मानो जिंदा निगलने के लिए तैयार हो. आलोक सर उस का रौद्र रूप देख कर सहम गए. अब तक महिलाओं ने या तो समर्पण किया या तो स्कूल छोड़ कर चली गईं. मगर पहली बार दीपा जैसी महिला से उन का पाला पड़ा. आलोक सर ने कोई प्रतिरोध नहीं किया. समर्पण के मूड में आ गए. गिड़गिड़ाते हुए बोले, ‘‘देखो, यह खबर बाहर तक नहीं जानी चाहिए.’’

‘‘बदनामी होगी?’’ दीपा के चेहरे पर व्यंग्य की रेखाएं खिंच गईं.

‘‘मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूं,’’ कह कर वह दीपा के पैरों पर गिर पड़े.

कायर आदमी रंग बड़ी तेजी से बदलता है. दीपा ने उन्हें झटक दिया. धड़ाक से केबिन का दरवाजा खोला. तेज कदमों से बाहर आई. अपनी आपबीती मुझे सुनाई. मेरा सिर गर्व से तन गया.

‘‘तुम ने औरत जाति की लाज रख ली,’’ मैं ने कहा.

जब उस ने स्कूल को अलविदा किया तो वह आत्मविश्वास से भरी थी. चेहरे पर डर, भय का नामोनिशान तक न था. आखिर भय का ही तो फायदा आलोक सर ने उस से उठाना चाहा था. मुझे उस के जाने का दुख था तो खुशी भी थी कि अब कोई आलोक किसी स्त्री को कमजोर समझने की जुर्रत नहीं करेगा.

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