कहानी - अनाम रिश्ता

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गरमियों की छुट्टियों में जब इंदु मायके आई तो सबकुछ सामान्य प्रतीत हो रहा था. बस, एक ही कमी नजर आ रही थी, गोपी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. वह इस घर का पुराना नौकर था. इंदु को तो उस ने गोद में खिलाया था, उस से वह कुछ अधिक ही स्नेह करता था.इंदु के आने की भनक पड़ते ही वह दौड़ा आता था. वह हंसीहंसी में छेड़ भी देती, ‘गोपी, जरा तसल्ली से आया कर... कहीं गिर गया तो मुझे ही मरहमपट्टी करनी पड़ेगी. वैसे ही इस समय मैं बहुत थकी हुई हूं.’

‘अरे बिटिया, हमें मालूम है तुम थकी होगी पर क्या करें, तुम्हारे आने की बात सुन कर हम से रहा नहीं जाता.’

इंदु मन ही मन पुरानी घटनाओं को दोहरा रही थी और सोच रही थी कि गोपी अब आया कि अब आया. परंतु उस के आने के आसार न देख कर वह मां से पूछ बैठी, ‘‘मां, गोपी दिखाई नहीं दे रहा, क्या कहीं गया है?’’

‘‘वह तो मर गया,’’ मां ने सीधे सपाट स्वर में कहा.

एक क्षण को तो वह सन्न रह गई. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, बोली, ‘‘पिछली बार जब मैं यहां आई थी तब तो अच्छाभला था. अचानक ऐसा कैसे हो गया, अभी उस की उम्र ही क्या थी?’’

‘‘दमे का मरीज तो था ही. एक रात को सांस रुक गई. किसी को कुछ पता नहीं चला. सुबह देखा तो सब खत्म हो चुका था.’’

गोपी के बारे में जान कर मन बड़ा अनमना सा हो उठा, सो वह थकान का बहाना कर के कमरे में जा कर लेट गई और गोपी की स्मृतियों में खो गई.

अभी गोपी की उम्र ही क्या थी, मुश्किल से 45 साल का था. 15-16 साल का था जब गांव से भाग कर आया था. खेतीबाड़ी में मन नहीं लगता था, इसलिए बाप रोज मारता था. एक दिन गुस्से में आ कर घर छोड़ दिया. वह दादी के गांव के पास के ही गांव का था. सो, पिताजी ने जब बाजार में घूमते हुए देखा तो सारा किस्सा जान कर घर लिवा लाए. तब से वह इस घर में आया तो यहीं का हो कर रह गया. दादी ने उसे अपने बेटे की तरह रखा.

अतीत की घटनाएं चलचित्र की भांति इंदु की आंखों के आगे घूमने लगीं.

वह छोटी सी थी तो उस के सारे काम गोपी ही किया करता था, जैसे स्कूल छोड़ने जाना, खाना देने जाना, स्कूल से वापस घर ले कर आना, शाम को घुमाने ले जाना वगैरहवगैरह. अकसर खेलखेल में वह अध्यापिका बनती थी और गोपी उस का शिष्य. पढ़ाई ठीक से न करने पर वह उसे मुरगा भी बनाती थी और स्केल से हथेलियों पर मार भी लगाती थी.

इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे. इस बीच इंदु के और बहनभाई भी हो गए थे, परंतु गोपी उसी से विशेष स्नेह करता था. इसलिए उस के सारे काम वह बड़ी मुस्तैदी और प्रेम से करता था. चाहे और किसी का कोई काम हो न हो, इंदु का हर काम वक्त पर होता था. वह नियम गोपी सालों से निभाता आ रहा था. उस के पीछे तो वह घरवालों से झगड़ भी लेता था.

अगर पिताजी कुछ कहते तो नाराज हो कर कहता, ‘तुम किसी को डांटो, चाहे मारो, मुझे कुछ नहीं, पर मेरी बिटिया को कुछ मत कहना, जो कहना हो मुझ से कहो.’

10वीं कक्षा में पहुंचने तक उस को कुछकुछ समझ आने लगी थी. चंचलता का स्थान गंभीरता ने ले लिया था. इसीलिए उड़तीउड़ती खबरों से समझ आने लगा था कि गोपी का अपने गांव की किसी कमला नाम की औरत से इश्क का चक्कर चल रहा है. पूरी बात तो उसे मालूम नहीं थी क्योंकि न तो वह किसी से कुछ पूछने की हिम्मत कर पाती थी, न ही उसे कोई कुछ बताता था.

एक दिन दोपहर में सब लोग बड़े वाले कमरे में लेटे हुए थे कि अचानक बाहर किसी के जूते चरमराने की आवाज आई. सब समझ गए कि गोपी होगा. जब वह परदा हटा कर अंदर आया तो उसे नए कुरतेपाजामे में देख कर सब समझ गए कि आज कमला आई होगी. उसी से मिलने जनाब जा रहे हैं, सजधज कर.

‘भाभी, ओ भाभी, जरा सा खुशबू वाला तेल तो देना,’ गोपी खुशामदी लहजे में बोला.

उसे जब कोई मतलब होता था तो मां को ‘भाभी’ कहता था वरना तो हमेशा ‘बीबीजी’ ही कहता. मतलब उसे तभी होता था जब कमला आती थी.

इंदु ने अलमारी से तेल की शीशी निकाल कर थोड़ा सा तेल उसे दे दिया जिसे उस ने बालों में चुपड़ लिया. फिर वहीं पास में रखे एक पुराने कंघे से खूब जमाजमा कर बाल संवारे और शीशे में स्वयं को अच्छी तरह निहार कर जांचापरखा कि सब ठीक है या कुछ कसर है. जब संतुष्ट हो गया तो बाहर की ओर चल दिया पर दरवाजे तक जा कर रुक गया.

हम सब समझ गए कि अब पैसों का नंबर है.

‘भाभी, सो गईं क्या?’ वह बड़े लाड़ से बोला.

‘नहीं, बोल, क्या है?’ मां ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा.

‘थोड़े से पैसे चाहिए थे,’ गोपी ने धीरेधीरे अपनी बात पूरी की.

‘क्यों, क्या करेगा पैसों का? अभी कल ही तो ले गया था हजामत बनवाने को. अब क्या जरूरत आन पड़ी?’ मां ने झुंझला कर कहा.

इस पर वह खुशामदी हंसी हंसने लगा और बोला, ‘तुम जानती तो हो भाभी, फिर क्यों हमारे मुंह से कहलवाना चाहती हो?’

उस की बात सुन कर मां को गुस्सा आ गया. वे बोलीं, ‘अब मेरे पास पैसे नहीं हैं. इस महीने तू 2 बार पैसे ले चुका है. अब क्या मुसीबत आ पड़ी? हजामत भी बनवा ली, अपनी चहेती को फिल्म भी दिखा लाया. अब क्या रह गया?’

मां को क्रोधित देख कर गोपी थोड़ा उदास हो गया, रुक कर बोला, ‘कमला का लड़का बीमार है, उसे डाक्टर को दिखाना है.’

‘तू तो पूरा पागल है. वह किसी न किसी बहाने तुझ से पैसे ऐंठती रहती है और तू भी मूर्ख बना उस की हर बात पर आंखें मूंद कर भरोसा कर के लुटता रहता है.’

‘नहीं, भाभी, वह सच कह रही है,’ गोपी दृढ़तापूर्वक बोला.

‘कितने पैसे चाहिए?’ मां ने हथियार डालते हुए पूछा क्योंकि मालूम था कि वह मानने वाला तो है नहीं.

‘बस, 20 रुपए दे दो, ज्यादा नहीं चाहिए,’ गोपी शीघ्रतापूर्वक बोला कि कहीं मां का इरादा न बदल जाए.

‘जा इंदु, इसे रुपए दे दे,’ मां बोलीं.

इंदु ने उसे 20 रुपए ला कर दे दिए और शरारत से बोली, ‘क्यों गोपी भैया, डाक्टर के यहां कौन से शो में जाओगे, दोपहर वाले या शाम वाले?’

वह खिसियानी हंसी हंस कर बोला, ‘अच्छा बिटिया. उड़ा लो तुम भी मजाक हमारा,’ कह कर वह तेजी से बाहर चला गया. जैसा कि अनुमान था वह हमेशा की तरह शाम को 6 बजे लौटा, कमला को फिल्म दिखा कर व चाट खिला कर.

मां ने पूछा, ‘क्यों रे गोपी, कैसा है कमला का लड़का? दिखा दिया डाक्टर को?’

‘उसे तो मामूली सा बुखार था. डाक्टर बोला कि मौसमी बुखार है, अपनेआप ठीक हो जाएगा. बस, 2 रुपए की दवा दे दी.’

‘अच्छा, तो ला मेरे बाकी के रुपए,’ मां बोलीं.

वह जोर से हंस पड़ा और बोला, ‘वे तो खर्च हो गए.’

‘कैसे खर्च हो गए?’ मां ने बनते हुए पूछा.

‘कमला कहने लगी कि ‘गंगाजमुना’ लगी है सो उसे दिखा लाए.’

इंदु सोचने लगी, ‘60 रुपए माहवार पाने वाला यह बेवकूफ नौकर 40 रुपए तो अब तक खर्च कर चुका है. क्या है उस कालीकलूटी में जो यह उस के पीछे दीवाना है. वह तो कभी बच्चों की बीमारी के बहाने तो कभी अपनी बीमारी के बहाने इसे मूंड़ती रहती है. यह कैसा रिश्ता है इन के बीच?’

एक दिन उस ने मां से पूछ ही लिया, ‘कमला तो शादीशुदा है, 2 बच्चों की मां है. फिर यह गोपी की क्या लगती है?’

‘लगने को तो कुछ नहीं लगती पर सबकुछ है,’ मां ने टालने वाले अंदाज में कहा.

‘क्या मतलब?’ इंदु ने उत्सुकतापूर्वक गरदन ऊपर उठा कर कहा.

‘अभी तेरी उम्र नहीं है यह सब समझने की. चल, उठ कर अंगीठी जला,’ मां ने डांट लगाई.

इंदु को समझ नहीं आ रहा था कि अपनी जिज्ञासा कैसे शांत करे. परंतु एक दिन उस ने पड़ोस की भाभी को पटा लिया.

भाभी ने जो कहानी बताई उस का सार कुछ इस प्रकार था :

गोपी और कमला के घर गांव में साथसाथ थे. जब कमला बहू बन कर आई तो पड़ोसी के नाते गोपी उसे भाभी कहने लगा. और कभीकभी उस के घर भी जाने लगा. बस, फिर वह कालीकलूटी उसे इतनी भा गई कि वह रोजरोज उस के घर जाने लगा.

कमला के घरवाले किसना जो छोटी जाति का था, ने भी कभी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था क्योंकि गांव वाले सीधेसरल स्वभाव के होते हैं. पर कमला आई थी शहर से सो उसे अपना सीधासादा पति पसंद नहीं आया. शक्लसूरत में भी वह साधारण ही था. धीरेधीरे ये दोनों एकदूसरे की ओर आकृष्ट हो गए और अब तो इन्हें समाज की भी परवा नहीं है.

पूरी कहानी सुनने के बाद कमला को देखने की इंदु की उत्सुकता और भी बढ़ गई. एक दिन मां को प्रसन्न मुद्रा में देख कर वह बोली, ‘मां, क्या तुम ने कमला को देखा है?’

‘नहीं, मैं ने नहीं देखा. वह तो जब भी आती है, सड़क पर ही खड़ी रहती है. किसी के जरिए खबर भेज कर गोपी को बुलवा लेती है.’

‘मां, किसी दिन गोपी से कह कर कमला को यहां बुलवा लो. हम भी उसे देखें कि कैसी है,’ इस बार इंदु की भाभी ने भी कमला प्रकरण में रुचि दिखाई.

मां को भी शायद जिज्ञासा थी, सो उन्होंने उन की बात मान ली.

एक दिन जब गोपी फिर से खुशबू वाला तेल मांगने आया तो मां बोलीं, ‘गोपी, आज तो हमारा भी मन हो रहा है तेरी ‘कमली’ को देखने का.’

गोपी कमला को ‘कमली’ कहता था.

पहले तो वह नानुकुर करता रहा कि वह घर नहीं आएगी. पर फिर काफी समझाने के बाद मान गया और उसे लिवाने चल ही दिया क्योंकि उस दिन मां भी अड़ गईं कि आज तुझे पैसे तभी दूंगी जब तू उसे यहां ले कर आएगा.

लगभग 5 मिनट बाद बाहर से छमछम की आवाज आई. सब समझ गए कि कमला आ रही है. जो बच्चे सो गए थे उन्हें भी जगा दिया गया, ‘उठोउठो, कमला आ रही है.’ मानो कोई फिल्मी हस्ती हमारे घर पधार रही हो.

जैसे ही वह दरवाजे पर आ कर रुकी, सब एकदम चुप हो गए. गोपी परदा हटा कर अंदर आया और बोला, ‘लो भाभी, आ गई तुम्हारी कमला.’ फिर उस ने वहीं से आवाज दी, ‘अरी, बाहर क्यों खड़ी है. अंदर आ जा,’ कह कर वह स्वयं कमरे से बाहर चला गया.

कमला आई तो उसे देख कर सब की आंखें खुली की खुली रह गईं. मुंह से आवाज नहीं निकली.

एकदम काला रंग, माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, मांग में खूब गहरा सिंदूर और हरे रंग की साड़ी. साथ में 4-5 वर्ष की एक बच्ची थी जबकि दूसरा शिशु पेट में था.

आखिर मां ने ही उस चुप्पी को तोड़ने की पहल की, ‘जा इंदु, शरबत बना ला और कुछ बिस्कुट वगैरह भी लेती आना.’

इंदु ने शरबत का गिलास कमला को पकड़ा दिया. मां ने पूछा कि कुछ पढ़ीलिखी भी हो तो वह बोली, ‘हां, 5वीं तक.’

उस जमाने में 5वीं की पढ़ाई काफी माने रखती थी.

मां ने 2-3 सवाल उस से और किए. फिर गोपी आ कर उसे बाहर ले गया. चलते समय मां ने कमला को 5 रुपए दिए और दोबारा आने को कहा.

अब तो कमला जब भी गांव से आती, सीधे घर ही आ जाती. मां को ‘जीजी’ कहने लगी थी और आते ही उन के पैर छूती थी.

मां के मना करने पर एक दिन बोली, ‘मेरी सास तो हैं नहीं, आप के पास आ कर मुझे अच्छा लगता है. दूसरी बात जो मुझे कल ही पता चली कि आप का और मेरा पीहर एक ही शहर में है. हम भी लखनऊ के हैं.’

अपने पीहर का तो हर जीव प्यारा लगता है, सो उस दिन से मां भी कमला पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गईं.

इंदु को भी वह अच्छी लगने लगी थी. एक तो शहर की लड़की, ऊपर से थोड़ी पढ़ीलिखी, सो बातचीत में सलीका भी था. हालांकि रंग काला था पर नैननक्श बहुत तीखे थे.

एक दिन गोपी लड्डू ले कर आया और इंदु के हाथ में लिफाफा थमा कर बोला, ‘लो बिटिया, मिठाई खाओ.’

‘कैसी मिठाई? क्या बात है, बड़े खुश नजर आ रहे हो, गोपी?’ इंदु ने हैरानी से पूछा.

‘तुम्हारी चाची के लड़का हुआ है.’

इंदु हैरान कि कौन सी चाची की बात कर रहा है.

मां ने पूछा, ‘गोपी, क्या कह रहा है, ठीक से बता?’

वह झिझकते हुए बोला, ‘कमला के लड़का हुआ है.’

‘तू तो ऐसे नाच रहा है जैसे तेरे ही हुआ हो,’ मां हंसी उड़ाते हुए बोलीं.

‘ऐसा ही समझ लो,’ धीरे से कह कर गोपी चला गया.

उस के बाद 1 साल तक कमला नहीं आई क्योंकि बच्चा छोटा था. एक दिन अचानक पायल की छमछम सुनाई दी तो मां बोलीं, ‘लगता है कमला आई है.’

हमारी नजरें उत्सुकतावश द्वार पर ही लगी हुई थीं कि उधर से एक हाथ से लड़की की उंगली थामे और दूसरे से लड़के को गोद में उठाए कमला का पदार्पण हुआ. लड़के को देखते ही सब लोग मुसकराने लगे. भाभी ने फुसफुसा कर मां से कहा था, ‘यह तो गोपी का हमशक्ल है.’

अब की बार तो कमला में गजब का परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा था. आंखें तो पहले ही बड़ीबड़ी थीं, मां ने जो अपनी पुरानी लिपस्टिक और साड़ी दे दी थी, उन के इस्तेमाल के बाद तो उस का रूप ही निखर आया था. कोई नहीं कह सकता था कि यह किसी छोटी जाति के घर की बहू है. काले रंग में भी इतना आकर्षण होता है, यह इंदु ने उस दिन जाना था. अब समझ आया कि क्या था उस कालीकलूटी में जो गोपी जैसा बांका नौजवान उस पर मरता था.

एक दिन मां कुछ हलकेफुलके मूड में थीं. किसी काम से गोपी उन के पास आया तो बोलीं, ‘क्यों रे गोपी, तेरी उम्र निकली जा रही है, तू शादी कब करेगा?’

‘बीबीजी, शादी तो हमारी हो गई.’

‘शादी हो गई? और हमें पता भी नहीं चला?’ मां ने हैरानी से पूछा.

गोपी ने नजर उठा कर इंदु की तरफ देखा. वह समझ गई कि गोपी उस के सामने बात करने में झिझक रहा है, सो वह वहां से उठ तो गई पर बात सुनने का लोभ संवरण न कर पाई, इसलिए बराबर वाली कोठरी में छिप कर खड़ी हो गई.

‘हां, अब बोल,’ मां ने उस की ओर देखा.

‘तुम्हें मालूम नहीं चला तो मैं क्या करूं. तुम्हारे पास तो वह रोज आती है,’ गोपी सिर झुका कर बोला.

‘किस की बात कर रहा है तू?’ मां को समझ नहीं आया.

‘कमला की,’ गोपी धीरे से बोला, ‘हम तो उसे ही अपनी दुलहन मानते हैं. दुनिया के सामने सात फेरे नहीं हुए तो क्या, मन से तो हम दोनों एकदूजे को मियांबीवी समझते हैं.’

‘वह एक शादीशुदा औरत है. तुम्हारे गांव वाले उसे कुछ नहीं कहते? किसना भी जानता है यह सब?’

‘हां, जानता है. उस ने तो कई बार कमला को पीटा भी है पर उस ने भी साफसाफ कह दिया कि मैं गोपी को चाहती हूं, उसे नहीं छोड़ सकती, चाहे तो तू मुझे छोड़ दे. पर वह बेचारा भी क्या करे, एक तो गरीबी, ऊपर से शक्लसूरत भी मामूली. पहली शादी ही मुश्किल से हुई थी. इसे छोड़ दिया तो दूसरी तो होने से रही. सो, यही सोच कर चुप रह जाता है कि चलो, जैसी भी है, घर तो संभाल रही है, बच्चे पाल रही है.

पूरी बात सुनने पर भी मां कुछ  असंतुष्ट सी थीं. बोलीं, ‘वह औरत तो शहर की है, बड़ी चालाक है. एकसाथ दोदो आदमियों को बेवकूफ बना रही है. पर तू क्यों अक्ल के पीछे लट्ठ लिए भाग रहा है. उसे तो घर भी मिल गया. कहने को पति भी है, बच्चे भी हैं और पैसा लुटाने को तू है, पर तुझे क्या मिला? शादी कर ले तो तेरा भी घर बस जाएगा, बच्चे होंगे, समाज में इज्जत होगी,’ मां ने अपने स्तर पर उसे ऊंचनीच समझाने की चेष्टा की.

पर उस ने जो दलील पेश की उसे सुन कर तो मां के साथ इंदु का मुंह भी हैरानी से खुला का खुला रह गया. सिर झुकाएझुकाए ही वह बोला, ‘ठीक है, भाभी, तुम्हारी बात. चलो, हम शादी कर भी लें. पत्नी हमें पसंद न आई तो क्या होगा? किसी की जिंदगी खराब करने से क्या फायदा? कमला मुझे अच्छी लगती है, और मैं उसे. हमारे लिए तो इतना ही बहुत है. रहा सवाल बच्चों का, सो मुझे लगता ही नहीं कि वे बच्चे सिर्फ कमला के ही हैं. जब वह हमें अच्छी लगती है तो उस की हर चीज हमें प्यारी है.

‘तुम्हें लगता होगा कि हम अकेले हैं पर हमारी नजरों से देखो तो पता चलेगा कि हमारे पास सबकुछ है. मन का संतोष सब से बड़ी चीज है, बाकी तो सब दिखावा है.’

वह आगे बोला, ‘कमला के पास भी सबकुछ है, आदमी है, बच्चे हैं. अगर इन चीजों से खुशी मिलती तो वह हमें क्यों चाहती?’

मां को निरुत्तर कर गोपी चला गया. इंदु मन ही मन सोचती रही कि यह गांव का अनपढ़ आदमी कितनी सरल भाषा में जीवन की कितनी बड़ी सचाई कह गया है.

सब लोग सोचते थे कि यह कुछ दिन का खुमार है, समय बीततेबीतते उतर जाएगा. फिर यह भी अपना घर बसा लेगा और कमला को भूल जाएगा. कमला पर भी जब जिम्मेदारियों का बोझ पड़ेगा तो दुनियादारी समझने लगेगी. पर इन दोनों ने तो सब के गणित को अंगूठा दिखा दिया.

इसी बीच, इंदु का विवाह भी हो गया. वह जब भी मायके आती, कुछ न कुछ परिवर्तन जरूर नजर आता. कभी भाभी के बच्चा होने को होता, कभी महल्ले में किसी की मृत्यु की खबर सुनने को मिलती तो कभी किसी की शादी की अथवा भागने की.

पर गोपी और कमला की प्रेम कहानी बिना किसी परिवर्तन के उसी प्रकार आगे बढ़ रही थी. हमेशा वह अपने बच्चों को साथ लिए गोपी से मिलने आती. उसी प्रकार गोपी उसे घुमाने ले जाता. कभी कपड़े दिलवाता और कभी खाने का सामान. इस नियम में जरा भी बदलाव नहीं आया था. हां, इतना जरूर हुआ था कि बच्चे अब

2 के स्थान पर 3 हो गए थे.

अब तो समाज ने भी उन के प्यार को स्वीकार कर लिया था. उन के उस रिश्ते को मान लिया था जिस का कोई नाम न था.

अचानक कोई कमरे में आया तो इंदु की विचारतंद्रा भंग हो गई और वह अतीत से वर्तमान में लौट आई. भाभी चायनाश्ता लाई थीं.

चाय पी कर उस ने भाभी से पूछा, ‘‘गोपी की खबर सुन कर कमला आई थी क्या?’’

‘‘हां, आई थी. आते ही उस की लाश पर गिर कर फूटफूट कर रोई, अपनी चूडि़यां भी तोड़ दीं, लोगों ने बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया. क्रियाकर्म का सारा खर्चा उसी ने किया. हालांकि पिताजी ने कहा था, ‘यह हमारे यहां इतने दिन से नौकरी कर रहा था, इतना तो हम इस के लिए कर ही सकते हैं.’

‘‘पर वह मानी नहीं. बोली, ‘मैं भी तो सारी उम्र इस की कमाई खाती रही. भैयाजी, मेरे पास तो जो कुछ है, सब इसी का दिया है. जब यही नहीं रहा तो मैं इन गहनों का क्या करूंगी,’ कह कर उस ने अपनी अंगूठी उतार कर पिताजी के हाथ में दे दी और कहा कि इसे बेच कर क्रियाकर्म कर दीजिए.

‘‘जब मुखाग्नि देने का समय आया तो वह बोली, ‘मेरा रामू यह काम करेगा. भैयाजी, आप सब को तो मालूम है, गोपी इसे कितना चाहता था और यह तो इस का फर्ज भी है.’

‘‘यह एक ऐसी सचाई थी जिसे सब जानते थे पर कहने की हिम्मत किसी ने नहीं की थी, इसीलिए सब ने कमला की यह बात मान ली.’’

रात को भी मेरे दिमाग में बचपन की बातें घूमती रहीं. मैं सोचने लगी कि प्यार भी क्या चीज है. जो इनसान बाप की मार के डर से गांव छोड़ कर भागा था उसे गांव के नाम से ही नफरत हो गई थी. बहुत समझानेबुझाने के बाद कभीकभी मांबाप से मिलने चला जाता था. लेकिन रात को जाता था और सुबह ही वापस आ जाता था.

परंतु पता नहीं, कौन सी डोर थी जिस ने उसे ऐसे बांध लिया कि वह हर हफ्ते गांव जाने लगा. फिर धीरेधीरे यह अंतराल घटता ही गया. कभी 4 दिन में तो कभी

3 दिन में वह गांव जाने लगा. शाम को भी जल्दी चला जाता था और अगले दिन भी थोड़ी देर से आता था. बाप भी बूढ़ा हो चला था, सो उस की भी जिम्मेदारी सिर पर थी, इसलिए कोई कुछ नहीं कहता था.

गोपी का बाप अब बीमार भी रहने लगा था, सो उस के ब्याह के लिए जोर देने लगा. पर उस ने ब्याह के लिए इनकार कर दिया था. हां, यह जरूर कर दिया कि बापू की दोनों समय की रोटी का इंतजाम कमला को सौंप दिया. कुछ दिन तक तो पिता ने उस के घर का खाना खाने से मना कर दिया, पर अंत में परिस्थिति से उन्हें समझौता करना ही पड़ा.

इंदु की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या नाम दे उस रिश्ते को जिसे वे दोनों जिंदगीभर निभाते रहे. कितनी हिम्मती है वह औरत जो अपने प्यार के लिए दुनिया से लड़ती रही, हार न मानी.

आखिरी वक्त पर भी उस ने जिस बहादुरी से अपने बेटे का परिचय दिया, क्या वह पढ़ेलिखे और समझदार कहे जाने वाले लोगों के बस की बात है?

अगले दिन इंदु ने अपनी मां से पूछा कि क्या कमला अब भी आती है यहां? तो उत्तर मिला, ‘‘नहीं, अब नहीं आती.’’

‘‘मां, किसी दिन उसे बुलवा लो, बड़ा मन है उसे देखने का,’’ इंदु ने अपनी इच्छा मां के आगे व्यक्त की.

मां ने एक आदमी के जरिए गांव में खबर भेज कर कमला को बुलवा लिया.

हलके नीले रंग की किनारीदार सूती धोती, हाथों में कांच की दोदो चूडि़यां और मांग में सिंदूर की हलकी सी रेखा, बिंदी जो पहले चवन्नी के आकार की हुआ करती थी, अब एक बिंदु का आभास भर दे रही थी.

इंदु को देख कर अपनी वही मनमोहिनी हंसी हंस कर कमला बोली, ‘‘अच्छा, इंदु बिटिया आई है. बड़े दिनों में आई बिटिया, अच्छी तो हो?’’

‘‘मैं तो अच्छी हूं पर तुम्हें क्या हो गया ?है? पहचानी ही नहीं जा रही हो. बड़ी कमजोर दिख रही हो,’’ इंदु बोली.

उस की आंखों में आंसू भर आए पर फिर भी हंस कर बोली, ‘‘तुम्हें सब पता चल गया होगा, बिटिया. अब बताओ, क्या अब हम वैसे ही रहेंगे?’’

उस का उत्तर सुन कर इंदु से कुछ कहते न बना. सिर झुका कर हाथ से यों ही निरुद्देश्य कुछ आड़ीतिरछी लकीरें बनाती रही. आंखें उस की भी भीग गईं. जिस औरत को लोग भलाबुरा कहते रहे, उस को ‘चालू’ समझ कर उस का अपमान, तिरस्कार करते रहे, उस को इस रूप में देख कर मन एक अनजानी श्रद्धा से भर गया और अपनी सोच से घृणा सी होने लगी.

कमला तो थोड़ी देर बाद उठ कर चली गई पर मन में हमेशा के लिए एक प्रश्न छोड़ गई कि क्या हम सभ्य, शिक्षित कहलाने वाले लोग प्यार की परिभाषा जानते हैं?

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