कहानी - जीवन की परिभाषा

उस मीठी बारिश में तुम्हारी और नेहा की ज़िंदगियां भीगकर उस ख़ूबसूरत नीड़ को आबाद कर देंगी, जिसका पक्षी जेठ की भरी दोपहरी को ही जीवन मानकर अपने पंख झुलसाता रहा. कभी अपने सद् प्रयासों से यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि मन, आत्मा और जिस्म को शीतलता प्रदान करनेवाली मधुर और चांदनी रातें भी होती हैं.
अजय,
कितना मुश्किल होता है कीचड़ में रहकर कीचड़ से अनछुए कमल जैसा सुंदर और स्वच्छ जीवन जीना. वास्तव में जीवन जीना भी एक कला है. हर इंसान अपने-अपने तरी़के से जीवन जीता है. अपने दृष्टिकोण और सोच में जीवन को परिभाषित करता है. किसी की नज़र में जीवन एक रंगमंच है… संघर्ष है… चुनौती है… प्रेमगीत है… दुखों का सागर है आदि.
तुम्हारे दृष्टिकोण से जीवन दुख-दर्द और वेदनाओं का एक भवन है. ऐसा भवन, जहां चारों तरफ़ आग ही आग है और तुम उस आग में बुरी तरह झुलस रहे हो… तड़प रहे हो. जान-बूझकर उस भवन से बाहर नहीं निकल रहे हो. शायद उस आग में जलकर ख़ुद को पूरी तरह ख़त्म कर देना चाहते हो. आख़िर क्यों? कभी तुमने इस विषय पर आत्ममंथन किया? शायद नहीं, क्योंकि तुमने स्वयं को प्रेम में असफल मानकर जीवन को बेरौनक़, बेरंग और बोझ समझ लिया है.
तुमने माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए नेहा से विवाह तो कर लिया, लेकिन उसे अपनी पत्नी के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया. ना कभी उसकी परवाह की, ना ही कभी उसे कोई सुख दिया. तुम्हारी इस बेरुखी और उपेक्षा से वह अपने मायके चली गई. तुम्हारी नाकाम मुहब्बत की आंधी ने उसके सपनों के ख़ूबसूरत महल को ढहा दिया.
यह सच है कि तुमने मुझसे बेहद प्यार किया. सच्चा, पवित्र और निस्वार्थ, मैंने भी हृदय की अतल गहराइयों से तुम्हें चाहा. तुम्हारे बिना जीने की कल्पना मात्र से ही सिहर उठती थी मैं. अपने मनपसंद जीवनसाथी के साथ मनचाहा जीवन जीना किसे अच्छा नहीं लगता? मैं भी अपने मनपसंद हमसफ़र के साथ ज़िंदगी का हसीन सफ़र तय करना चाहती थी, ढेर सारे ख़ूबसूरत सपनों के साथ. तुम पर और तुम्हारे दिल पर स़िर्फ अपना अधिकार जमाना चाहती थी.
एम.ए. की परीक्षाओं के बाद से ही घर में मेरे विवाह को लेकर चर्चाएं शुरू हो गईं. मैंने पूरी ईमानदारी और सच्चे मन से मां को तुम्हारे और अपने प्रेम संबंधों के विषय में सब कुछ यह सोचकर बता दिया कि शायद हमारे सच्चे प्रेम की पवित्र और कोमल भावनाएं मां के ममतामयी धरातल को स्पर्श कर लेंगी और वह हमारे विवाह के लिए सहज स्वीकृति दे देंगी, लेकिन मां ‘अगर यह विवाह करना है, तो पहले मेरा मरा हुआ मुंह देखना पड़ेगा…’ कहते हुए अन्य कार्यों में व्यस्त हो गईं.
यह सुनकर अंदर तक कांप उठी मैं, उनकी यह बात सुनकर उनसे मैं कुछ भी कहने का साहस ना जुटा पाई. धर्मसंकट में पड़ गई मैं. एक तरफ़ मां की ममता थी, तो दूसरी तरफ़ तुम्हारी मुहब्बत. दोनों के बिना जीना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था. एक बार तो ख़ुद को ही ख़त्म कर लेने का फैसला कर लिया, लेकिन जब ठंडे दिमाग़ से सोचा, तो परिणाम आंखों के सामने एक भयंकर दृश्य बनकर तैर गया… मेरे इस तरह जान देने से मां यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और दम तोड़ दिया. और तुम भी मेरे ना रहने पर अपना संयम, संतुलन और हौसला खो बैठे हो और… यह भयानक दृश्य देखकर मैंने आत्महत्या का ख़्याल तक दिल से निकाल दिया.
मैं तुम्हारे प्यार और मां की ममता से वंचित नहीं होना चाहती थी. मैंने सोचा, शादी तो मां की पसंद से कर लूं… और प्यार तुमसे ही करती रहूं हमेशा. दिल पक्का करके मैंने यह क़दम उठा लिया. आनंद से मैंने शादी कर ली, लेकिन मैंने उन्हें दिल से पति स्वीकार नहीं किया. सुहागरात को मैंने उन्हें हमारे प्रेम संबंधों के विषय में सब कुछ बताते हुए यह भी कह दिया कि मैं स़िर्फ अजय से ही प्यार करती हूं. मेरी बात सुनकर आनंद कुछ बोले नहीं, बस हौले से मुस्कुरा उठे.
उन्हें यूं मुस्कुराता देख मैं झुंझला उठी, “मैं अजय से बहुत प्यार करती हूं, यह शादी मैंने मजबूरी में की है.”
“दीपा, क्या अजय को भुलाया नहीं जा सकता, हमेशा के लिए?”
फिर आनंद बिना कुछ बोले चुपचाप सो गए. इसके बाद फिर कभी उन्होंने मुझसे इस संबंध में कुछ नहीं कहा. मैं स़िर्फ तुम्हारे ही ख़्यालों में खोई रहती थी. मैंने तुमसे फोन पर बात करने की कोशिश भी की, लेकिन तुम शायद मुझसे बात नहीं करना चाहते थे. तुम्हारी बहन मुझे तुम्हारे विषय में सब कुछ बताती रहती थी. मैं आनंद की बिल्कुल भी परवाह नहीं करती थी, लेकिन वह मेरा पूरा ख़्याल रखते थे. उन्होंने कभी भी मेरे शरीर को पाने के लिए न ही बल प्रयोग किया और ना ही निवेदन. एक दिन मैंने उनसे कहा, “क्या आप मेरे परिवार से यह झूठ बोलकर कि मैं किसी दूसरी लड़की से प्रेम करता हूं और इस कारण दीपा को तलाक़ देना चाहता हूं, मुझे आज़ाद कर सकते हैं? जिससे मैं अपने प्यार अजय को पुनः पा सकूं.”
यह सुनकर आनंद एक मीठी-सी मुस्कान बिखेरते हुए बहुत ही रोमांटिक अंदाज़ में बोले, “दीपा, मैं किसी हिंदी फिल्म का नायक नहीं हूं, जो त्याग का परिचय देते हुए इतनी ख़ूबसूरत और हसीन बीवी को उसके प्रेमी को सौंप ख़ुद घर बैठा माला जपता रहूं.”
“तो क्या हम लोग इसी तरह अपना जीवन व्यतीत करेंगे?” मैं परेशान स्वर में बोली.
“नहीं, बिल्कुल नहीं. सच बात तो यह है दीपा, मेरे नज़रिए से जीवन एक विश्वास है और मैं इसी विश्वास पर कायम हूं कि एक न एक दिन तुम अपनी ज़िंदगी और दिल से अजय व उसकी तमाम यादों को निकाल दोगी और मुझे हमेशा के लिए बसा लोगी.”
“ऐसा कभी नहीं हो सकता आनंद. यह मेरे लिए बेहद मुश्किल है.”
“मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं.” इतना कहकर वो मुस्कुरा पड़े.
समय चक्र घूमता रहा. एक बार मैं गंभीर रूप से बीमार पड़ गई. आनंद ने जी-जान से मेरी देखभाल की. मेरी सेवा में दिन-रात एक कर दिया. बीमारी के दौरान पता नहीं कब, कैसे, कहां और कौन-से क्षण मैं आनंद से भावनात्मक रूप से जुड़ गई. इसका ख़ुलासा तब हुआ, जब एक रोज़ मैं सुबह-सुबह आनंद के गले में बांहें डालकर उनके कपोलोें पर ढेर सारे मीठे चुंबन अंकित करते हुए हर्षातिरेक से बोली, “आपका विश्वास जीत गया आनंद, अब मैं स़िर्फ आपकी हूं.”
आनंद आश्चर्य और उत्साहभरे स्वर में बोले, “सच… मेरा विश्वास जीत गया. दीपा अब मैं तुम्हें आज़ाद करता हूं, तुम अजय के पास जा सकती हो.”
“आप यह क्या कह रहे हैं आनंद? आज जब मैं अजय और उसकी यादों को पूरी तरह से भुला चुकी हूं और आपको…” आगे कुछ बोल न सकी मैं, आनंद के सीने से लगकर बेतहाशा फफक-फफककर रो पड़ी.
मेरे आंसुओं को पोंछते हुए आनंद भावुक स्वर में बोले, “दीपा, मैं इतना कठोर और निष्ठुर नहीं हूं, जो प्यार भरे दिलों को जुदा कर दूं. सच्चाई तो यह है कि जब तुमने सुहागरात को सारी बातें बताई थीं, तभी मैंने सोच लिया था कि तुम स़िर्फ अजय की हो. मैंने तुम्हें बताया कि मेरे दृष्टिकोण से जीवन एक विश्वास है. मेरा विश्वास शुरू से ही हर क्षेत्र में हमेशा क़ामयाब रहा, लेकिन जब तुमने ये कहा कि अजय को भुलाना मुश्किल है, तब मेरे मन में यह जिज्ञासा हुई… यहां मेरा विश्वास सफल हो सकता है या नहीं? इसी का परिणाम जानने के लिए निर्धारित समय के लिए तुम्हें यहां रोका, लेकिन उस अवधि से पूर्व ही मेरा विश्वास जीत गया.सच तो यह है दीपा, इंसान मुश्किल और प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयं को पराजित, कमज़ोर, असहाय, बेबस, मजबूर और लाचार समझकर उसके समक्ष अपने आत्मविश्वास, उत्साह और इच्छाशक्ति का समर्पण कर देता है और अपनी अच्छी-भली ज़िंदगी को दोष देता रहता है. लेकिन यह जीवन तो अनमोल है, तो फिर इसे हम क्यों व्यर्थ गंवाएं? अगर हम अपने धैर्य, संयम, साहस और संतुलन से पुनः एक ठोस विश्वास, नए अंदाज़, नए उत्साह से जीवन को परिभाषित करें, तो हम अपना मनपसंद और मनचाहा जीवन जी सकते हैं.”
अजय, सच तो यह है कि मैं भावनात्मक स्तर से तो आनंद से जुड़ ही चुकी थी, लेकिन जीवन के प्रति आनंद का यह सकारात्मक दृष्टिकोण मेरे अंदर समा गया. मैंने भी इस पर मनन किया, तो निष्कर्ष यही निकला… अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने के लिए उसकी परिभाषा अपने ही अंदाज़ से करनी पड़ेगी. आनंद को दिल से अपना पति स्वीकार करने के बाद मैंने भी अपने जीवन की परिभाषा बदल दी है. पहले मेरे नज़रिए से तुम्हारे बिना मेरी ज़िंदगी एक ज़िंदा लाश थी… जिसे कंधों पर रखकर मैं ढो रही थी, लेकिन मैंने उस लाश में अपने इच्छाशक्ति रूपी प्राण फूंक दिए. अब वह लाश नवजीवन प्राप्त करके एक नवजात शिशु की तरह किलकारियां मारने लगी है. जिस तरह बच्चों को अपना पूर्व जन्म याद नहीं रहता, उसी तरह मुझे भी अपने जीवन की पूर्व परिभाषा याद नहीं है.
मैं जानती हूं कि तुम मेरा यह पत्र पढ़कर मुझे धोखेबाज़, बेवफ़ा, कायर… न जाने किन-किन शब्दों से विभूषित करोगे, लेकिन अजय सत्य तो यही है… अगर हम अमूल्य जीवन सुख, शांति और चैन से गुज़ारना चाहते हैं, तो इसकी परिभाषा हमें अपने तरी़के से ही गढ़नी पड़ेगी. अगर हम ऐसा करने में असमर्थ रहे, तो जीवन के अंतिम दिनों में अत्यधिक पीड़ा झेलनी पड़ेगी. तब हमें यह अफ़सोस रहेगा कि काश! हम अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी गुज़ार पाते.
पत्र पढ़ने के बाद, गंभीरता से मन के समंदर में विचारों का मंथन करना. तुम्हारे इस तरह तिल-तिल कर मरने से क्या तुम्हें वह सब कुछ हासिल हो जाएगा, जो तुम पाना चाहते हो? अगर तुम अपनी ज़िंदगी की परिभाषा में दुख-दर्द, उदासी, निराशा और आंसुओं की जगह ख़ुशी, उत्साह, विश्‍वास, इच्छाशक्ति और क़ामयाबी जैसे शब्दों का प्रयोग करो, तो तुम्हारे जीवन में भी ख़ुशियों की बरसात हो जाएगी. उस बारिश में प्राचीन स्मृतियों की ध्वस्त इमारत के वे सभी अवशेष बह जाएंगे, जो तुम्हें सुखमय जीवन व्यतीत करने में बाधा पहुंचा रहे हैं. उस मीठी बारिश में तुम्हारी और नेहा की ज़िंदगियां भीगकर उस ख़ूबसूरत नीड़ को आबाद कर देंगी, जिसका पक्षी जेठ की भरी दोपहरी को ही जीवन मानकर अपने पंख झुलसाता रहा. कभी अपने सद् प्रयासों से यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि मन, आत्मा और जिस्म को शीतलता प्रदान करनेवाली मधुर और चांदनी रातें भी होती हैं. शेष. आपकी एक अच्छी दोस्त और शुभचिंतक.                   – दीपा
पत्र पढ़ने के बाद अजय ने अपनी ज़िंदगी को एक नए रूप और नए शब्दों से परिभाषित किया, जिसमें वह क़ामयाब हो गया. अभी तक उसके नज़रिए से ज़िंदगी एक अमावस्या की रात थी. उस रात के अंधकार में वह बुरी तरह भटक रहा था, लेकिन अब नए दृष्टिकोण से ज़िंदगी पूनम की रात लग रही थी. पूनम की मधुर और चांदनी रात में नेहा की जुदाई उसे अंदर तक साल गई. उसके सानिध्य के लिए वह व्याकुल हो उठा. उसे लेने वह तुरंत घर से निकल पड़ा.

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