व्यंग्य - आदमी का कुत्तापन

जब से पता चला है कि प्रदेश में कुत्तों की बढ़ती तादाद से परेशान हो कर नगरपालिका और नगरनिगमों द्वारा आवारा कुत्तों की नसबंदी कर दी जाएगी, तब से शहर में 4 टांग वाले कुत्तों के साथसाथ 2 टांग वाले आवारा कुत्ते भी गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गए हैं. पिछली बार जब मैं शहर गया था, तो एक पान की दुकान पर मेरा ध्यान गया. उस दुकान में पिछली बार की तुलना में बहुत कम लोग पान खाने आ रहे थे.

मैं ने पान वाले से उत्सुकतावश पूछा, ‘‘क्यों भाई, आजकल तुम्हारी दुकान पर भीड़भाड़ कम क्यों हो गई है? आखिर चक्कर क्या है?’’

पान वाला बोला, ‘‘भाई साहब, जब से शहर में कुत्तों की नसबंदी की बात सुनी है, तब से मेरी दुकान कम चलने लगी है. लोग अब यहां आने से डरने लगे हैं. उन्हें शायद यह लगता है कि कहीं उन्हें भी पकड़ कर उन की नसबंदी न कर दी जाए.’’

हम ने भी सोचा कि हम भी जल्दी ही यहां से खिसक लें. क्या पता, हम भी गेहूं के घुन की तरह पिस जाएं यानी लपेटे में आ जाएं. टांग और पूंछ के लिहाज से कुत्तों की भी कई किस्में होती हैं, जैसे 4 टांग वाले पूरी पूंछ वाले कुत्ते, पूंछ कटे कुत्ते और सब से खतरनाक बिना पूंछ के 2 टांग वाले कुत्ते. कुत्तों को भारतीय सभ्यता में एक खास जगह दी गई है. कुछ इनसानों ने कुत्तों के साथ रहतेरहते उन के एक गुण को छोड़ कर बाकी बहुत सी आदतें सीख ली हैं.

पूंछ वाले कुत्तों से बिना पूंछ वाले कुत्तों ने केवल एक ही गुण नहीं सीखा है, वह गुण है वफादारी का. बाकी सभी गुण तो उन में पूरी तरह से आ गए हैं, इसलिए आम घरों में या पड़ोसियों से होने वाली लड़ाइयों में सब से पहले कुत्ते की ही जम कर गाली दी जाती है.

इस में कोई शक नहीं है कि कुत्ते की यह गाली भारत में गाली नं. 1 पर है. हो सकता है कि ‘आंटी नं. 1’, ‘बीवी नं. 1’, ‘हीरो नं. 1’ की तर्ज पर ‘गाली नं. 1’ फिल्म भी बन जाए, जिस में 4 टांग वाले पूंछदार कुत्ते को हीरो और 2 टांग वाले बिना पूंछ के कुत्ते को विलेन के रूप में दिखाया जाए.

वैसे, कुत्ते अगर आपस में गाली देते होंगे, तो उन की गाली नं. 1 आदमी को ले कर ही होती होगी. वैसे, कुत्ता ही एकलौता ऐसा जानवर है, जिसे गाली और तारीफ दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

इस बात पर पूंछ वाले कुत्ते अपनेआप पर बेहद फख्र महसूस करते हैं. वे सोचते हैं कि जिस तरह पुराने जमाने में लोग खुद की तुलना किसी महापुरुष से करते थे, उसी तरह आज के दौर में उन से करते हैं.

लेकिन आजकल बिना पूंछ वाले कुत्तों की भी बहुत पूछ है. वैसे पूंछ के न होने से उन्हें अपनी वफादारी दिखाने के लिए बहुत से पापड़ बेलने पड़ते हैं.

बहुत पहले इनसान की भी पूंछ हुआ करती थी, लेकिन इनसानों द्वारा उस का गलत इस्तेमाल करने पर कुदरत ने उसे छीन लिया.

अब जब भी ये बिना पूंछ वाले कुत्ते अपनी उस गुम दुम को किसी खास आदमी के सामने हिलाते हैं, तो उन की हरकतों से पता चल जाता है कि वे अपनी वफादारी दिखा रहे हैं.

देखने वाले भी यही कहते हैं कि यह फलां का कुत्ता है, इस से बच कर रहना. बहुत तेज है, इस का काटा तो इंजैक्शन भी नहीं मांगता.

पूंछ वाले कुत्तों के काटने की तरह बिना पूंछ वाले कुत्ते के काटने पर रेबीज नहीं होता, बल्कि ‘फटीज’ नामक खतरनाक रोग होता है यानी इन के काटे से लोग फटीचर हो जाते हैं. ये लोग अपने मालिक के इशारे पर जिस को भी काटते हैं, वह फटीचर बन जाता है.

कुछ लोग दोनों तरह के कुत्ते पालते हैं. ये कुत्ते उन की बीवियों के काम के होते हैं, जिस से इन कुत्तों की भी चांदी रहती है.

जहां एक तरफ पूंछ वाले कुत्ते उन की बीवियों के साथ गाडि़यों में सैर करते हैं, अच्छा खाना खाते हैं और उन के साथ सोते तक हैं, वहीं दूसरी तरफ बिना पूंछ वाले कुत्ते उन का घरेलू काम काफी  अच्छी तरह से करते हैं.

पूंछ वाले कुत्तों पर तो कुछ खर्च भी होता है, पर बिना पूंछ वाले कुत्ते मुफ्त में अपनी सेवाएं देते हैं. दरअसल, अपने मालिक की आड़ में वे भी अच्छा शिकार कर लेते हैं.

ऐसे कुत्ते मालिक पर भार नहीं होते, इसलिए इन्हें कोई रोक भी नहीं पाता, खुद अफसर भी नहीं. समय आने पर ये अपनी औकात भी दिखा देते हैं. ये जितने ज्यादा हों, उतना ही अच्छा.

आजकल लोगों के स्टेटस की पहचान इसी से होती है कि उस के पास कितने पूंछ वाले और कितने बिना पूंछ वाले कुत्ते हैं.

पुराने जमाने में लोग अपनी जान और माल की हिफाजत के लिए पूंछ वाले कुत्ते ही रखा करते थे, लेकिन अब जमाना तेजी से बदल रहा है. इन कुत्तों के साथसाथ बिना पूंछ वाले कुत्ते भी रखे जाने लगे हैं. जिन के पास ऐसे कुत्ते बड़ी तादाद में होते हैं, उन की उतनी ही ज्यादा वैल्यू होती है.

भले ही बिना पूंछ वाले कुत्ते 3-4 साल तक पड़ेपड़े मुफ्त में ही रोटी तोड़ते रहें, लेकिन चुनाव आने पर अपना वजूद जरूर साबित कर देते हैं और भूंकभूंक कर अपने मालिक के पक्ष में माहौल बनाने में जुट जाते हैं.

पूंछ वाले कुत्तों की वफादारी खरीदी नहीं जा सकती, पर बिना पूंछ वाले कुत्ते मौका मिलने पर खुद को बेच देते हैं. मालिक बदलते उन्हें जरा भी देर नहीं लगती. कई बार तो वे खाते किसी और का हैं और निभाते दूसरे का हैं. ऐसों से हमें सावधान रहने की जरूरत है.

जैसे पूंछ वाले कुत्तों की तादाद बढ़ाने के लिए खास मौसम होता है, ठीक उसी तरह बिना पूंछ वाले कुत्तों का भी अपना खास मौसम ‘चुनाव’ होता है. इस में वे बड़ी लगन और मेहनत से अपनी तादाद को बढ़ाते हैं.

शायद इसी बढ़ती हुई तादाद को देख कर शहरों में कुत्तों की नसबंदी करने का प्रोग्राम बनाया जा रहा है खासतौर पर हमारे प्रदेश की राजधानी में.

दूसरे शहरों के मुकाबले पूंछ वाले और बिना पूंछ वाले कुत्तों की तादाद ज्यादा होना लाजिम है. बिना पूंछ वाले कुछ कुत्ते तो राजधानी के परमानैंट बाशिंदे बन जाते हैं और बाकी आतेजाते रहते हैं.

पूंछ वाले और बिना पूंछ वाले कुत्तों में हमेशा कड़ा मुकाबला रहता है. कई बार तो यह फैसला करना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है कि कौन कितनी तेजी से पूंछ हिला रहा है. दोनों ही अपनीअपनी वैल्यू साबित करने में लगे रहते हैं. वे अपने मालिक को हमेशा खुश करना चाहते हैं.

मालिक जितना खुश होगा, कुत्तापन उतना ही कामयाब माना जाएगा. इन दोनों में फर्क सिर्फ गले में पड़े पट्टे के दिखाई देने और न दिखाई देने का है. पूंछ वाले कुत्ते के गले में पट्टा दिखता है, जबकि बिना पूंछ वाले कुत्ते का पट्टा नजर नहीं आता.

बिना पूंछ वाले कुत्ते तो अपने मालिक के पूंछ वाले कुत्ते के सामने भी अपनी नजर न आने वाली पूंछ हिलाने से नहीं चूकते. कई बार तो ऐसा लगता है कि ये बिना पूंछ वाले कुत्ते, पूंछ वाले कुत्तों के भी कुत्ते हैं.

खैर, कुत्ते तो कुत्ते ही होते हैं, चाहे वे पूंछ वाले हों या बिना पूंछ वाले. हमें इन से बच कर रहना चाहिए, क्योंकि काटना इन की फितरत है. एक के काटने पर कीमती इंजैक्शन लगवाने पड़ते हैं और जिंदगी की कोई गारंटी नहीं होती, जबकि दूसरे के काटने पर कैरियर तबाह हो सकता है, जमाजमाया धंधा चौपट हो सकता है.

मैं नहीं चाहता कि महंगाई के इस दौर में इन कुत्तों के द्वारा काटा जाऊं, इसलिए मैं इन्हें दूर से ही देख कर सलाम कर लेता हूं. आप को भी नेक सलाह दे रहा हूं कि आप भी इन बिना पूंछ वाले कुत्तों से दूर ही रहें, इसी में आप की भलाई है.                 

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