राम दरबार की रात

राम दरबार की रात
   
           राम दरबार में फिर इक् रात आई 
            नौ-रूप को मुखरने का…..
           आँगन-तुलसी मुर्छित होने का 
             वीणा-नाड़ी सुप्त राग का 
          हाँ फिर राम दरबार में इक् रात आई  !

           कंधो ने उचकाए धनुष -बाण 
            हस्तो ने ली राम -प्रतिञा 
         अभिशापित रावण ने भेष बदला 
          खुद-रूप में गुप्त-छिप्त होने का  !

         कौंध-लालिमा ने प्रकटाए रावण रूप 
           तूमने ही लाया दुर्गा रूप निरंजन 
         ऐ अहंकारी, ऐ दुरबुधि, ऐ ऐतबारी 
             अब तू मेरा बाण नोंक है, 
             ओ रावण रूप निरंजन  !

         हाँ राम दरबार फिर आद्या-निहारी निखरेगा 
           आँगन-तुलसी रजामंदी बिखरेगा 
         कबूतर मुंडेर पर कलरव-गान सुनाएगा 
           फिर मेरा मन दुर्गा टेर लगाएगा 
              ओ दुर्गा! ओ दुर्गा

By, Surbhi Anand

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