कहानी - तुझे सब था पता मेरी मां…

दिल पत्थर का किए बिना अपने दस साल के बच्चे को अपने से अलग कैसे कर देती? लौटी हूं तो लग रहा है कि अपने शरीर का कोई टुकड़ा काटकर कहीं और रख दिया है. कोई अंग कट जाता, तो भी शायद इतनी तकलीफ़ नहीं होती, जितनी तुम्हें ख़ुद से अलग करके हो रही है. आंखों में आंसू हैं व मन में प्रार्थना. मेरा जीवन एक तपस्या है और तुम्हारा एक सफल व सही इंसान बन जाना अभीष्ट वरदान.
विनीत सोच-सोचकर थक गया था कि मां को मदर्स डे पर क्या तोहफ़ा दे, तो उसने पापा से पूछा. पापा हंसकर बोले, “एक मां के लिए दुनिया का सबसे अच्छा तोहफ़ा उसकी औलाद ही है. तू आ जा बेटा… और नहीं आ सकता, तो वो हार्ड डिस्क ठीक करके उसका डाटा ही भेज दे.”

विनीत ने उद्विग्न होकर आंखें मूंद लीं और एक ठंडी सांस छोड़ी. मां के लिए उसके मन में जितना प्यार है, उतना ही ग़ुस्सा भी. आख़िर वो ही क्यों जाए मां के पास? मां क्यों नहीं आ सकती? उसकी पत्नी शाइली को भी मां के पास जाने की बड़ी इच्छा है. अनाथाश्रम में जो पली है. उसने भारतीय मांओं की जो कहानियां सुनी हैं, उसके अनुसार ही मां का चित्र अपनी कल्पनाओं में बनाया हुआ है. उसे कैसे बताए कि उसकी मां वैसी नहीं है. उसे बोर्डिंग के लिए विदा करते समय भी तो उनकी आंखों में एक आंसू नहीं था.

वो ख़्वाहिश, जो शायद पांच वर्ष की उम्र में उठी थी, वो आज तक पूरी न हुई कि मां तसल्ली से बिना कोई काम लिए बैठी हो और वो मां को अपनी दिल की बात सुनाए. लेकिन जाने कितनी बातें मन की मन ही में रह गईं, जो वो कर नहीं सका. बचपन से आज तक वो ख़ुद मां के कोमल रूप को देखने के लिए, उनके सानिध्य के लिए कितना तरसा है. काश! उन्हें ये सब पता होता.

मां का जो बिंब उसके मानस पटल पर चिपका है, वो किसी सख़्त, अनुशासनप्रिय, आदर्श व निर्मोही मुख्याध्यापिका का है और यही उसके जीवन का दर्द है. मां तो शुरू से एक कंप्यूटर रही है, जिसमें भावनाओं की कोई प्रोग्रामिंग ही न हो. कंप्यूटर की उपमा मन में आते ही विनीत के विचारों को ब्रेक-सा लगा. हार्ड डिस्क!

पापा कब से वो हार्ड डिस्क ठीक करने के लिए कह रहे थे. घर के सबसे पुराने कंप्यूटर की हार्ड डिस्क कबाड़ी को देते समय निकालकर रख ली गई थी. उसमें पापा के अनुसार, वो फोटोग्राफ्स थीं, जिनकी कोई हार्ड कॉपी नहीं थी.

हार्ड डिस्क को ठीक करने बैठा, तो अधिक समय न लगा डाटा रिकवर करने में. वो उसे अपने लैपटॉप में अटैच करके चेक करने लगा, तो नज़रें एक फोल्डर पर अटक गईं- ‘एक मां का दर्द’. उसने फोल्डर खोला, तो पाया कि बहुत सारी फोटोग्राफ्स थीं. ये क्या, ये तो किसी पुरानी डायरी के पन्ने की तस्वीरें थीं. अच्छा तो पापा ने मां की पुरानी डायरियों की फोटो डाली थी, जिनके लिए वो इतना परेशान थे. पलभर में उसकी उत्सुकता ने उंगलियों से आख़िरी तारीख़ वाली फाइल पर क्लिक करवा दिया.

‘आज तुमने ग़ुस्से में फोन पटक दिया और मैं कुछ न कह सकी. कहती भी क्या? क्या मेरी मजबूरी जानने के बाद अपना शोध पूरा कर पाते तुम? मैं जानती हूं कि बचपन से तुम्हारी एक ही ख़्वाहिश है कि तुम्हारी मां तसल्ली से बिना कोई काम हाथ में लिए तुम्हारी बात सुने. तुम मेरा कोमल रूप देखना चाहते हो. आज जब उन लम्हों को साकार करने का समय आया तो…’

तो क्या हुआ? आख़िर अब क्या मजबूरी हो सकती है? मां को मेरी ख़्वाहिश पता है? उनके सीने में भी दिल है? फिर क्यों बचपन से आज तक?… उसकी उत्कंठा बढ़ चली. क्या छुपाया जा रहा है उससे? फिर तो कब उसकी जिज्ञासा ने मां के अंतर्मन में गोता लगाकर ममता के मोती लाने भेज दिया, उसे पता ही नहीं चला. एक-एक कर वो शुरू से फाइलें खोलने लगा.

‘आज मेरी आंखों में ख़ुशी के आंसू आ गए, जब तुम नन्हें-नन्हें डग भरकर मेरी फैली हुई बांहों में किलकारी मारकर सिमट आए. मुझे लगा जैसे मैंने सारा ब्रह्मांड अपनी बांहों में भर लिया हो.

आज रात मुझे नींद नहीं आएगी. कल पहली बार तुम्हें दिनभर के लिए ख़ुद से अलग करना है. पता नहीं कल तुम कैसी प्रतिक्रिया करोगे. दो साल कब और कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. लगता है, जैसे कल की बात हो, जब मैंने पहली बार उस भोली सूरत को देखा था, जिसके स्पंदन को महसूस करके नौ महीने ख़ुश होती रही थी. मैंने डिलीवरी के दिन तक कैसी-कैसी तकली़फें झेलीं, पर सारी छुट्टियां बचाईर्ं, ताकि तुम्हारे साथ ज़्यादा-से-ज़्यादा समय बिता सकूं, पर दो साल बाद भी तुम्हें छोड़ने का मन नहीं कर रहा.

एक बार तो मेरे मन में नौकरी छोड़ने का भी ख़्याल आया, पर फिर इनकी आवाज़ का वो दर्द याद आ गया, जो इन्होंने भावुक पलों में बांटा था. पैसों की कमी के कारण मनपसंद करियर न चुन सका. नहीं, मैं तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य के साथ कोई समझौता नहीं कर सकती. आज पहली बार एक मां के कोमलतम दिल पर पत्थर का एक सख़्त कवच चढ़ा रही हूं. कल तुम्हें छोड़कर जो जाना है.’

विनीत के मन से आह निकली. उसके सामने एक के बाद एक फाइलें नहीं मां के दर्द की तहें खुलती जा रही थीं.
‘रोज़ सुबह जब उठती थी, तो तुम सोए रहते थे, पर आज उठी, तो देखती क्या हूं कि तुम अपनी गोल आंखें पूरी खोलकर मुझे टुकुर-टुकुर ताक रहे हो. क्या लोग ठीक कहते हैं कि बच्चों में पूर्वाभास की शक्ति होती है? मैं उठी तो तुमने मेरा आंचल पकड़ लिया और मुझे लगा कि दो साल की मेहनत से बनाया कवच पिघलने लगा है. दिनभर कलेजे में हूक-सी उठती रही और पलकों पर आए आंसू लोगों से छिपाने पड़े. पता नहीं तुमने क्या खाया होगा, नहाते समय रोए होगे या नहीं. लौटी तो तुम्हें ग़ुस्सा देखकर तुम्हें मनाने के लिए घंटेभर गोद में लेकर खिलाती रही. शरीर थककर चूर हो गया था, पर तुम जब खिलखिलाकर हंसे, तो मन की पुलक ने शरीर की सारी थकान मिटा दी.’

ओह मां, तुम कभी मुझे इतना प्यार भी करती थी? फिर क्या ख़ता हुई मुझसे? विनीत के मन में प्रश्‍न आया ही था कि दूसरी फाइल में उत्तर मिल गया.

‘आज स्कूल की प्रिंसिपल के शब्द रह-रहकर कानों में तूफ़ान की तरह गूंज रहे हैं. उन्होंने तुम्हारे अनुशासनहीन व उद्दंड व्यवहार पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि याद रखिए कच्ची मिट्टी पर बने निशान मिटते नहीं हैं. अगर अभी से आपने ध्यान न दिया, तो बहुत देर हो जाएगी. ख़राब परीक्षाफल पर आश्‍चर्य जताते हुए कहा कि आपका बेटा इतना मेधावी है कि यदि इसकी ऊर्जा को सही दिशा न दी गई, तो इसको अपने दिमाग़ का इस्तेमाल ग़लत दिशा में करते समय नहीं लगेगा.

तुम्हारा ज़िद्दी व लापरवाह रूप देखकर व्यथित तो मैं भी बहुत दिनों से थी. समस्या का विश्‍लेषण भी कर चुकी हूं. तुम सारा दिन मांजी के असीम दुलार में बिताते हो. जो कहते हो, खाने को मिलता है… जो चाहते हो, करते हो. संयुक्त परिवार में हर समय टीवी, रेडियो आदि भी चलता रहता है. लोगों का आना-जाना भी लगा रहता है. शाम को ऑफिस से आने के बाद मैं भी स़िर्फ दुलार ही करती हूं, क्योंकि मुझे लगता था कि दिनभर मां का प्यार तुम्हें न मिलने का हरजाना तुम्हें दूं, लेकिन मैं ग़लत थी. कहीं पढ़ा था प्यार व दुलार में इतना ही अंतर है कि प्यार संवारता है व दुलार बिगाड़ता है. बच्चा जब समझ जाता है कि अगला उसकी ज़िद से पिघल जाएगा, तो वो अपनी ज़िद मनवाकर रहता है. इसलिए अगर बिगड़े बच्चे को सुधारना है, तो सबसे पहले ख़ुद को उसकी नज़रों में कठोर बनाना होगा. वैसे भी निर्मोही मांओं की कमी होती जा रही है. तुम्हारा सुंदर व्यक्तित्व गढ़ने के लिए मुझे ख़ुद को एक सख़्त आवरण में कैद करना पड़ेगा. अड़ियल व निर्मोही बनना ही पड़ेगा.’

विनीत की आंखों से दो पुनीत मोती गिरकर मां के दर्द से जा मिले. सायास ही बनी थी तुम इतनी कठोर.
‘इस बोर्डिंग के बारे में सारी जानकारियां एकत्र करके, कई संतुष्ट अभिभावकों से घंटों हर पहलू पर बात करने के बाद आज दिल पर पत्थर रखकर फैसला ले ही लिया कि तुम्हें बोर्डिंग भेजना है. मुझे टाइपिंग के लिए बहुत शोधपत्र मिलने लगे हैं. बोर्डिंग का अतिरिक्त ख़र्चा निकल ही आएगा…’

विनीत ने देखा कि इस पृष्ठ पर केवल इतना ही लिखा था. कुछ गोल निशान बने थे, जो काग़ज़ के गीले हो जाने से बनते हैं. मां के सूखे हुए आंसुओं की उन बूंदों को छूकर एक सिहरन-सी दौड़ गई, जो उस डायरी के पृष्ठ में आवेश की तरह ़कैद होकर एक युग की कहानी कह रहे थे. उसके दिल में टीस-सी उठी.

‘आज तुम्हें बोर्डिंग में छोड़कर आई हूं. तुम्हारे पापा, तुम्हारी दादी सब तुम्हें लिपटाकर रोए, पर मैं पत्थर की तरह खड़ी रही. डर था कि मैं कमज़ोर पड़ गई, तो तुम्हारा क्या होगा. क्या करूं, दिल पत्थर का किए बिना अपने दस साल के बच्चे को अपने से अलग कैसे कर देती? लौटी हूं तो लग रहा है कि अपने शरीर का कोई टुकड़ा काटकर कहीं और रख दिया है. कोई अंग कट जाता, तो भी शायद इतनी तकलीफ़ नहीं होती, जितनी तुम्हें ख़ुद से अलग करके हो रही है. आंखों में आंसू हैं व मन में प्रार्थना. मेरा जीवन एक तपस्या है और तुम्हारा एक सफल व सही इंसान बन जाना अभीष्ट वरदान.

आज दिल में एक हूक-सी उठी और नींद टूट गई. मुझे लगा कि तुमने नींद में रजाई खोल दी है और तुम्हें ठंड लग रही है. यहां थे, तो सारी रात मैं तुम्हें रजाई ओढ़ाती रहती थी.

तुम बोर्डिंग से पहली बार छुट्टियों में घर आ रहे हो और उस परिवेश से तुम्हें बचाना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जिसके कारण मुझे तुमको ख़ुद से दूर करना पड़ा था. मुझे पता है कि तुम बड़े हो रहे हो. ये उम्र ही ऐसी है, जब सबसे ज़्यादा आनंद चुनौती को स्वीकार कर उसे पूरा करने में आता है. मुझे किशोर मनोविज्ञान का इस्तेमाल करके एक प्रयोग करना है.

मेरा प्रयोग सफल रहा. मैं जानती थी कि अगर तुम्हारी मां कह दे कि तुम ये नहीं कर सकते, तो तुम करके रहोगे. इसीलिए मैंने कहा कि दो महीने में कंप्यूटर का कोर्स पूरा करना तुम्हारे बस का ही नहीं है और तुमने न स़िर्फ वो कोर्स जॉइन किया, बल्कि उसमें टॉप करने का प्रमाणपत्र लेकर गए.

तुम्हारी वॉर्डन का एहसान मैं कभी नहीं भूल सकती. मेरे कहने से याद रखकर वो हर बार तुम्हें छुट्टियों में एक नया प्रमाणपत्र लाने और स्टेडियम जॉइन करने के लिए प्रेरित करती रहीं और मैं तुम्हें अनाड़ी कहकर चुनौती देती रही.

तुम्हारा चयन शोध के लिए अमेरिका भेजे जानेवाली टीम के एक सदस्य के रूप में हो गया. तुम्हारी इस उत्कट अभिलाषा की पूर्ति के लिए की गई मेरी वर्षों की तपस्या सफल हो गई है. ईश्‍वर तुम्हें हर मनोवांछित सफलता और ख़ुशी दे. मेरी उम्र व मुस्कानें तुम्हें मिल जाएं और तुम्हारे आंसू मेरी पलकों को दे दे.

मुझे तुम्हारे चुनाव पर नाज़ है. बड़ी अच्छी लड़की है शाइली. कह रही थी कि तुम्हें तो छुट्टी नहीं मिल सकती, पर यदि हम लोगों को अकेले अमेरिका आने में द़िक्क़त हो, तो वो ख़ुद लेने आ जाएगी. ईश्‍वर उसे सारी ख़ुशियां दे, पर हमें क्या द़िक्क़त होगी?’

विनीत के मन में बरसों से जमा दर्द अब आंसुओं की धारा बन बहने लगा था.

मां-पापा ने इतनी तैयारियां कर ली थीं? फिर क्या हुआ? आज मां को अपनी मजबूरी उसे बतानी ही होगी. वो उसे हल करके ही रहेगा.

फोन लगाया, तो उसकी चचेरी बहन रावी ने उठाया.

“मां को फोन दीजिए.”

“वो तो कैंसर थेरेपी लेने अस्पताल गई हैं.”

“कैंसर? कब से?” विनीत का स्वर कंपकंपाने लगा. “प्लीज़ पूरी बात बताओ.”

“क्या तुम्हें कुछ भी पता नहीं है?” रावी की आवाज़ में असमंजस के साथ ग्लानि आ गई.

“तुम्हारे अमेरिका जाने के कुछ दिनों बाद ही चाची को कैंसर होने का पता चला था. अपने शहर में कैंसर के शोध को समर्पित आयुर्वेदिक अस्पताल में इलाज चल रहा है. दुनिया के हर कोने से लोग वहां इलाज कराने आते हैं. ये एक इत्तेफ़ाक़ है कि चाची इसी शहर में है, इसीलिए जांच में कैंसर की पुष्टि होने पर जब एलोपैथी के डॉक्टरों ने जवाब दे दिया, तो सोचा गया कि वह भी देख लें. वहां इलाज शुरू करने के बाद कैंसर आगे बढ़ने से रुक गया, पर इसके लिए इलाज व जीवनचर्या में लापरवाही न होने देना बहुत ज़रूरी है. हफ़्ते में दो बार थेरेपी के लिए अस्पताल जाना पड़ता है, इसलिए चाचा-चाची ये शहर छोड़ नहीं सकते थे. तुम्हें बताते तो तुम शोध छोड़कर आ जाते, इसीलिए चाची ने सबको सख़्ती से तुम्हें बताने से मना किया था. अब तुम्हारा शोध पूरा हो गया है, तो मुझे लगा कि शायद…” रावी की आवाज़ भर्रा गई.

ओह मां! विनीत का दर्द अब पूरी तरह पिघल चुका था और उसके आंखों के सैलाब ने सारे बांध तोड़ दिए थे. मेरी हर चाहत तुम्हें पता थी और मैं तुम्हें अड़ियल व निर्मोही समझता रहा. मेरे शोध की सफलता पर इतना हंगामा हुआ, जबकि तुमने तो अपनी ज़िंदगी को ही शोध बना दिया, जिसका विषय था- अपने बच्चे को सफल व सुखी इंसान कैसे बनाया जाए? और इस शोध की सफलता पर कोई पुरस्कार नहीं, ये समाचारों की सुर्खियों का विषय नहीं, इसका कोई ज़िक्र नहीं, कोई सेलिब्रेशन तक नहीं! मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं मां. तुम्हारे शोध की सफलता को सेलिब्रेट करने, उसके पुरस्कार स्वरूप सारी ज़िंदगी तुम्हारे साथ बिताने. मैं आ रहा हूं मां!!…

कोई टिप्पणी नहीं:

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();
Blogger द्वारा संचालित.