कहानी: खुशियों के पल

अजनबी होते हुए भी कभीकभी किसी के साथ ऐसी आत्मीयता बढ़ जाती है मानो बरसों से जानते हैं. विशाल और नीरजा कुछ इसी तरह मिले और साथ बढ़ता गया.
अजनबी होते हुए भी कभीकभी किसी के साथ ऐसी आत्मीयता बढ़ जाती है मानो बरसों से जानते हैं. विशाल और नीरजा कुछ इसी तरह मिले और साथ बढ़ता गया.

वे अब 5-7 दिनों पर लाइब्रेरी जाते. उन का लाइब्रेरी जाने का समय साढ़े 4 बजे होता. किताब जमा करते व नई किताब लेते 5 बज जाते.

5 बजे नीरजा अपना सामान समेट लेती. फिर वे अकसर ही बाहर कौफी पीने चले जाते. अब नीरजा उन से खूब खुल कर बात करती थी. वे भी उसे चिढ़ा देते थे. जब वे चिढ़ाते तो वह झूठे गुस्से में मुंह फुला लेती. फिर वे उसे मनाते. उस की सुंदरता के पुल बांधते. वह खिलखिला कर हंस देती. वह उन्हें अपना स्मार्ट बौयफ्रैंड कहती. वे अकसर कहते, उन की उम्र उस के बौयफ्रैंड बनने की नहीं है, तब वह नाराज हो जाती. वह कहती, यह बात दोबारा नहीं कहना. उम्र से क्या होता है. उस के स्मार्ट बौयफ्रैंड जैसा स्मार्ट कोई और हो तो बताएं.

उस ने कई बार साफ कहा था कि वे उसे बहुत अच्छे लगते हैं. वह अकसर ही उन के कंधे पर अपना सिर टिका कर आंखें मूंद लेती थी. वे मना करते, कहते, ‘लोग देख रहे हैं.’ तो वह कहती, ‘देखने दो. मुझे अच्छा लगता है.’

वे एक हाथ से ड्राइविंग करते व दूसरे हाथ से उस के बालों को हलकेहलके सहलाते रहते. उन्होंने एकाध बार उसे कोई गिफ्ट दिलाने की कोशिश की थी, पर उस ने सख्ती से मना कर दिया था. वह कहती थी, ‘‘कौफी, पैस्ट्री पकौड़ा तक ठीक है पर गिफ्ट वगैरह नो, बिग नो.’’

उन को भी शिद्दत से लगता था कि वे नीरजा के प्यार में आकंठ डूब चुके थे. जब भी उस से मिल कर आते, बेचैन हो जाते. 5-7 दिनों का इंतजार उन के लिए मुश्किल हो जाता था. पर रोज तो वे जा नहीं सकते थे. पर


यह कैसा प्यार था. अगर यह लगाव था तो यह कैसा लगाव था, भई. उन की उम्र 24 साल की लड़की से प्यार करने की नहीं थी. पत्नी थी, बेटे थे, बहुएं थीं, पोती भी थी.

प्यार तो कोई बंधन नहीं मानता. उम्र का भी नहीं शायद. पर समाज तो था. सामाजिक स्थिति तो थी. उन का एक कदम उन की सामाजिक स्थिति को खत्म कर सकता था. वे परिपक्व थे, जानते थे.

देखतेदेखते 3 महीने और गुजर गए. लाइब्रेरी का इंटरव्यू हो गया. अभिमन्यू ने इंटरव्यू संभाल लिया था. पर अपौइंटमैंट फंस गया. किसी ने कोर्ट केस कर दिया था. नीरजा के साथसाथ वे भी बहुत दुखी हुए. पर क्या किया जा सकता था. इंतजार करना था.

उस दिन वे कई दिनों बाद लाइब्रेरी गए थे. शायद 15 दिनों बाद. नीरजा इश्यू व डिपौजिट काउंटर पर बैठी थी. पर शायद उस की तबीयत ठीक नहीं थी, चेहरा कुम्हलाया हुआ था. अपना काम खत्म करतेकरते भी उसे 6 बज गए थे. वे कुरसी पर बैठे किताब पढ़ते रहे. 6 बजे वह अपना बैग ले करआ गई. उन्होंने सवालिया निगाहों से उसे देखा.

‘‘काम अधिक था,’’ उस ने धीरेधीरे कहा, ‘‘तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. इसीलिए देरी हो गई, चलिए.’’

दोनों बाहर आ गए.‘‘चलो, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’’

‘‘नहीं, मुझे कौफी पीनी है.’’

‘‘श्योर, आर यू औलराइट?’’

‘‘बिलकुल. गाड़ी बढ़ाओ मिस्टर विशाल, लोग देख रहे हैं.’’

रास्तेभर वह अपना सिर उन के कंधों पर टिकाए आंखें मूंदे चुपचाप बैठी रही. हां, हूं के अलावा कोई बात नहीं की. अंबर कैफे आ गया. वेटर आ गया. तब उस ने सिर उठाया व आंखें खोलीं.

‘‘क्या लोगी, कोल्ड या हौट कौफी?’’

‘‘हौट कौफी, तुम्हारे जैसी हौट.’’

उन्होंने हौट कौफी व प्याज के पकौड़ों का और्डर दिया.‘‘अगली बार हम यहां नहीं आएंगे,’’ नीरजा ने कहा.

‘‘हां, अगली बार हम एल चाइको में चलेंगे. आराम से बैठ कर चाइनीज खाएंगे.’’

‘‘तुम अपनी बीवी से डरते हो न?’’ अचानक उस ने कहा.

‘‘वैसे तो कौन नहीं डरता. पर, मेरी बीवी ऐसी नहीं है.’’

‘‘वो तो मैं जानती हूं. वह तुम्हें खूब खुश रखती होगी. अच्छा एक बात बताओ, अगर तुम 20 साल बाद पैदा हुए होते तो?’’

‘‘तो मेरी उम्र 90 साल होती अगर मैं जिंदा होता तो.’’

‘‘नहींनहीं, अगर मैं 20 साल पहले पैदा हुई होती तो?’’

‘‘तो तुम्हारी उम्र 54 साल की होती.’’

‘‘अरे नहीं यार, उम्र का सही कौम्बिनेशन मिलाओ न.’’

‘‘मतलब, अगर हम दोनों एकाध साल के अंतर से पैदा हुए होते तो क्या होेता, यही न?’’

‘‘हां, हां. मेरा यही मतलब था. तो क्या होता?’’

‘‘होता क्या, तब हमारी मुलाकात लाइब्रेरी में नहीं होती. शायद हौस्पिटल में हो जाती.’’

वह खिलखिला कर हंस पड़ी, पर हंस न पाई. उस ने अपना पेट कस कर पकड़ लिया जैसे दर्द हो रहा हो.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, तुम्हें क्या हुआ है नीरजा?’’

‘‘कुछ नहीं. थोड़ा फीवर है. कमजोरी लग रही है?’’

‘‘चलो, आज मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं,’’ उन्होंने इशारे से वेटर को बुलाया. आज नीरजा कौफी भी आधा कप ही पी पाई थी. पकौड़े तो छुए भी न थे. लड़का बरतन ले गया.

‘‘नहीं, मैं आप को घर नहीं ले जा सकती,’’ उस ने सख्ती से कहा, ‘‘आगे ले लीजिए, अगले चौराहे से मैं औटो ले लूंगी.’’

उन्होंने बहस नहीं की व गाड़ी आगे बढ़ा ली. आगे एक पार्क का पिछला हिस्सा था जो ऊंची बाउंड्री से घिरा हुआ था. वहां कुछ अंधेरा था.

‘‘उस पेड़ के पास गाड़ी रोकिए न, प्लीज.’’

उन्होंने पार्क के पीछे स्थित पेड़ के पास गाड़ी रोक दी. वह एकटक उन के चेहरे की तरफ देख रही थी.

‘‘क्या हुआ,’’ उन्होंने धीरे से पूछा.

वह कुछ न बोली. सिर्फ उन के चेहरे पर देखती रही.

‘‘आर यू औलराइट, तुम ठीक तो हो न.’’

‘‘यू वांट टू किस मी,’’ उस ने अचानक कहा.

‘‘व्हाट?’’ उन का चेहरा भक से उड़ गया, ‘‘व्हाट रबिश यू आर टौकिंग?’’

‘‘आई नो. यू वांट टू. क्या मुझे किस करना चाहते हो?’’

‘‘नो, नैवर, हाऊ कैन यू…’’

‘‘बट, आईर् वांट टू,’’ उस ने घूम कर अपनी दोनों बांहें उन के गले में डाल दीं व अपने होंठ उन के होंठों पर रख दिए.

‘‘किस मी, किस मी, प्लीज, होल्ड मी.’’

उस ने उन्हें जोर से पकड़ रखा था. उन के हाथ अपनेआप उस की पीठ पर पहुंच गए. नीरजा ने उन का एक लंबा सा किस लिया. गाड़ी के अंदर अंधेरा था पर इंजन स्टार्ट था.

गाड़ी के बैक पर ठकठक खटखटाने की आवाज आई.

‘‘कौन है अंदर, बाहर निकलो.’’

नीरजा छिटक कर उन से अलग हो गई. उन्होंने घूम कर पीछे देखा. एक पुलिसवाला अपने डंडे से बैक पोर्शन खटखटा रहा था, ‘‘बाहर निकलो.’’

उन्होंने तुरंत गाड़ी बढ़ा दी व स्पीड ले ली. पुलिसवाला पीछे चिल्लाता ही रह गया. चौराहा पार हो गया.

‘‘यह तुम ने क्या किया?’’ आगे आ कर उन्होंने कहा, ‘‘अभी तो हम शायद बच गए. पर कितनी बड़ी मुसीबत हो जाती हम दोनों के लिए.’’

‘‘आप मैनेज कर लेते. आप पावरफुल हैं. पर आप को अच्छा नहीं लगा क्या. मुझे तो बड़ा अच्छा लगा.’’

‘‘मुझे भी अच्छा लगा, नीरजा,’’ वे यह कहने से अपने को न रोक सके, ‘‘यू आर रियली ब्यूटीफुल.’’

नीरजा के चेहरे पर बड़ी प्यारी सी मुसकराहट आई.‘‘बस, इस चौराहे पर रोक लीजिए. मैं यहीं से औटो कर लूंगी.’’

‘‘पर…’’

‘‘रोकिए न प्लीज.’’

उन्होंने गाड़ी रोक ली. नीरजा तुरंत उतर गई. ‘‘फिर मिलते हैं,’’ कहते हुए उस ने दरवाजा बंद किया व सामने ही खड़े औटो में जा बैठी. औटो आगे बढ़ गया. उन्होंने भी गाड़ी घर की तरफ घुमा ली.

अगले 10 दिनों तक उन की लाइब्रेरी जाने की हिम्मत नहीं हुई. फिर उन का एक बाहर का प्रोग्राम बन गया. उन के कार्यकाल के समय में हुई 2 अनियमितताओं की जांच चल रही थी. यह जांच उन के खिलाफ नहीं थी पर जांच अधिकारी ने उन्हें विटनैस बनाया था. जांच का कार्य मुंबई में हो रहा था. सो, उन्हें 15 दिनों के लिए मुंबई जाना था. जाने से पहले उन्हें एक बार लाइब्रेरी जाना था. किताबें वापस करनी थीं वरना देर हो जाती.

वे लाइब्रेरी पहुंचे पर नीरजा नहीं आई थी. वे निराश हो गए व किताबें वापस कर के चले आए. फिर वे मुंबई चले गए. दोनों जांच कमेटियों में अपना विटनैस का काम खत्म करने में उन्हें 20 दिन लग गए. आने के दूसरे दिन ही शाम को 4 बजे लाइब्रेरी पहुंचे.

आज भी नीरजा वहां नहीं थी. वे परेशान हो गए. उस दिन ही उस की तबीयत ठीक नहीं थी. दोएक लोगों से पूछताछ की, पर कुछ पता न चला. तब वे सीधे लाइब्रेरियन के पास पहुंच गए.

‘‘एक्सक्यूज मी,’’ उन्होंने पूछा, ‘‘मुझे आप की नीरजा नाम की ट्रेनी से कुछ काम था. मुझे पता चला है कि वह आज नहीं आई है, वह छुट्टी पर है. क्या आप बता सकती हैं कि वह कब तक छुट्टी पर है?’’

लाइब्रेरियन ने उन्हें ध्यान से देखा, ‘‘आप नीरजा के क्या लगते हैं? किस रिलेशन में हैं?’’

‘‘नहीं, रिलेशन में तो नहीं हूं पर दे आर वेल नोन टू मी.’’

‘‘आप कैसे परिचित हैं, आप को नीरजा से क्या काम है?’’

‘‘दरअसल, नीरजा ने ही अपने एक पर्सनल काम के लिए मुझ से कहा था. उसी की जानकारी उसे देनी है. नीरजा कहां है और कैसी है, मैडम?’’

‘‘नीरजा इज नौट वैल. वह बीमार है. करीब 20 दिनों से वह छुट्टी पर है. उस की एप्लीकेशन आई थी.’’

‘‘क्या, 20 दिनों से छुट्टी पर है. तब तो सीरियस बात लगती है. क्या आप ने उसे देखा है?’’

‘‘नहीं, मैं तो नहीं गई थी. पर स्टाफ  के लोग गए थे. शी इज रियली सीरियसली सिक.’’

‘‘क्या आप मुझे उस के घर का ऐड्रैस दे सकती हैं, प्लीज,’’ वे बेचैन हो गए.

‘‘मुझे मालूम नहीं है. आप औफिस से ले लें. मैं स्लिप लिख देती हूं.’’

उन्होंने स्लिप लिख कर दे दी. उन का धन्यवाद कर के वे औफिस में गए व नीरजा का पता ले लिया. हाउस नंबर 144, मीरापट्टी रोड. उन्होंने बाहर आ कर गाड़ी दौड़ा दी. मीरापट्टी रोड ज्यादा दूर नहीं थी. वे एड्रैस पर पहुंच गए. उसी के बगल में पार्किंग की जगह मिल गई. उन्होंने गाड़ी वहीं खड़ी कर दी. घर ढूंढ़ते हुए 2-3 लोगों से पूछना पड़ा. आखिरकार वे पहुंच गए. वह एक मंजिला मकान था. मकान साधारण था. उन्होंने कुंडी खटखटाई.

एक उम्रदराज महिला ने दरवाजा खोला.

‘‘कहिए?’’ उन्होंने पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘जी, क्या नीरजाजी का यही मकान है?’’

‘‘जी हां, यही मकान है, कहिए?’’

‘‘दरअसल मुझे उन से मिलना है.’’

‘‘उस की तबीयत ठीक नहीं है. आप कौन हैं?’’

‘‘जी, मैं लाइब्रेरी से आया हूं. उन की तबीयत के बारे में ही जानने आया हूं.’’

‘‘आइए, अंदर आ जाइए.’’

अंदर का कमरा ड्राइंगरूम था. कमरा बड़ा नहीं था. फर्नीचर थोड़े से ही थे पर ढंग से लगे थे. वे एक कुरसी पर बैठ गए. महिला को चलने में परेशानी हो रही थी. उन महिला ने दरवाजा खुला रहने दिया, पर परदा खींच दिया. फिर आ कर दूसरी कुरसी पर बैठ गईं.

‘‘मैं नीरजा की मां हूं. नीरजा का भाई दवा लाने गया है.’’

‘‘अब कैसा हाल है नीरजा का?’’

‘‘हालत ठीक नहीं है. लाइब्रेरी से सुमनजी आईर् थीं. तब तो नीरजा ने उन से बात भी की थी. अब वह सो रही है. सुमन ने तो उस के बारे में बताया ही होगा.’’

‘‘मैं बाहर गया हुआ था. आज ही लौटा, तो लाइब्रेरियन मैडम ने नीरजा के बारे में बताया. मैं ने सोचा, मैं भी नीरजा को देख आऊं. क्या हुआ है नीरजा को?’’

‘‘नीरजा को कैंसर है, ब्लडकैंसर.’’

‘‘क्या?’’ उन का सिर घूम गया. उन्हें लगा कि जैसे पूरा कमरा घूम रहा है, ‘‘पा…पानी…पानी मिलेगा क्या?’’

नीरजा की मां ने उन्हें पानी दिया. पानी पी कर वे जरा संभले.

‘‘क्या कह रही हैं आप, कैंसर क्या ऐसे होता है. अभी कुछ दिनों पहले ही तो मैं उन से मिला था. एकदम ठीकठाक थीं. कहीं कोई गलती तो नहीं हुई है?’’

‘‘गलती कैसी साहब. इस का पता तो 6 महीने पहले ही चल गया था. कितना रुपया इस के इलाज में खर्चा हो गया. अब तो यही लगता है कि किसी तरह से इसे आराम मिले. बड़ी तकलीफ है इसे. नींद की गोली दे कर सुलाया जाता है,’’ वे रो पड़ीं.

‘‘डाक्टर क्या कह रहा है?’’

‘‘अब डाक्टर कुछ नहीं कह रहे हैं. कहते हैं कभी भी कुछ भी हो सकता है.’’

‘पर इस में तो बोनमैरो वगैरह…

‘‘हो चुका है. 2 बार हुआ है. तभी तो लाइब्रेरी वालों ने मदद की थी. अब नहीं हो सकता है.’’

नीरजा की मां चुप हो गईं. वे भी चुप रहे. उन की समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या कहें. आखिर वे बोले, ‘‘क्या मैं एक बार नीरजा को देख सकता हूं? मैं उसे बिलकुल भी डिस्टर्ब नहीं करूंगा.’’

2 लमहे वे उन्हें देखती रहीं, फिर बोलीं, ‘‘आइए.’’

वे उन्हें ले कर अंदर के कमरे में गईं. उन का जी धक से रह गया. सीने तक चादर ओढ़े नीरजा सो रही थी. पर यह जैसे वह वाली नीरजा नहीं थी. उस का गोरा गुलाबी चेहरा सांवला लग रहा था. चादर से निकले उस के हाथ स्किनी लग रहे थे. माथा उभरा हुआ व काफी चौड़ा लग रहा था.

‘‘बहुत कमजोर हो गई है साहब.’’ उस की मां ने फुसफुसा कर कहा. वे ज्यादा देर तक खड़े न रह सके, बाहर आ गए. पर्स निकाल कर देखा. करीब 10 हजार रुपए थे. निकाल कर नीरजा की मां की तरफ बढ़ाए. उन्होंने सवालिया निगाहों से उन्हें देखा.

‘‘लाइब्रेरी से हैं. मैं कल सुबह फिर आऊंगा. तब और रुपयों का इंतजाम हो जाएगा. सरकारी मदद है. उस का अच्छे से अच्छा इलाज होगा. वह बच जाएगी. अब मैं चलता हूं, कल फिर आऊंगा,’’ वे किसी तरह से अपनेआप को जब्त किए रहे.

बाहर निकल कर किस तरह से वे अपनी कार तक पहुंचे, उन्हें नहीं मालूम. कार में बैठते ही स्टियरिंग पर सिर टिका कर वे बेआवाज फफक पड़े. उन की नीरजा खो गई थी. इन बीते दिनों की उन की गैरहाजिरी ने उन से उन की नीरजा छीन ली थी. पर वे ऐसे हार नहीं मानेंगे. शहर के बड़े से बड़े डाक्टर को ला कर खड़ा कर देंगे. वे नीरजा को ऐसे नहीं मरने देंगे. डाक्टर मित्रा शहर के सब से बड़े कैंसर स्पैशलिस्ट हैं. उन को ले कर आएंगे. कोई तो रास्ता होगा, कोई तो रास्ता निकलेगा.

उन्होंने झटके से सिर उठाया व आंसुओं को पोंछ डाला. दूसरे दिन वे पहले बैंक गए, 50 हजार रुपए निकाले. फिर वे डाक्टर मित्रा के पास खुद गए. उन्होंने दिन में एक बजे विजिट का वादा किया. उस के बाद वे 144, मीरा?पट्टी रोड चले गए.

घर पर ताला लटक रहा था. वे सन्न रह गए. अगलबगल से पता करने पर पता चला कि सब नीरजा को ले कर ज्यूड हौस्पिटल गए हुए हैं. वे बदहवास गाड़ी चला कर ज्यूड हौस्पिटल पहुंचे. काउंटर पर पता चला नीरजा आईसीयू में है. आईसीयू के बाहर ही नीरजा की मां बैठी धीरेधीरे रो रही थीं. उन की बगल में ही एक 13-14 वर्ष का नीरजा की शक्ल जैसा लड़का बैठा था. वह नीरजा का भाई होगा. वे जा कर नीरजा की मां की बगल में खड़े हो गए. उन्हें देखते ही नीरजा की मां जोर से रो पड़ीं.

‘‘आप के जाने के बाद जब नीरजा जागी तो मैं ने उसे बताया कि विशाल आए थे. आप का नाम सुनते ही जैसे वह खिल गई, मुसकराई भी थी. मुझे लगा कि वह कुछ ठीक हो रही है. पर उस के बाद उस की तबीयत बिगड़ गई. थोड़ीथोड़ी देर में 2 उलटियां हुईं. उलटी में खून था साहब. बगल के डाक्टर प्रकाश को मेरा बेटा बुला लाया. नीरजा बेहोश हो गई थी. उन्होंने उसे तुरंत अस्पताल ले जाने को कहा. उन्होंने ही एंबुलैंस भी बुला दिया. यहां डाक्टरों ने जवाब दे दिया है.’’

तभी अंदर से नर्स आई, ‘‘यहां मिस्टर विशाल कौन हैं?’’

‘‘जी, मैं हूं,’’ उन्होंने कहा.

‘‘पेशेंट को होश आ गया है. बट शी इज वैरी क्रिटिकल ऐंड वीक. कई बार आप का नाम ले चुकी है. आइए, पर ज्यादा बात नहीं कीजिएगा. शी विल नौट होल्ड. आइए, इधर से आ जाइए.’’

वे आईसीयू के अंदर आ गए. नर्स उन्हें नीरजा के बैड तक ले गई. नीरजा गले तक सफेद चादर ओढ़े लेटी थी. उस की हिरनी जैसी बड़ीबड़ी आंखें पूरी खुली थीं. उन्हें देखते ही उस के होंठों पर मुसकराइट व आंखों में चमक आ गई. नर्स ने अपने होेंठों पर उंगली रख कर उन्हें इशारा किया.

‘‘हैलो स्मार्टी,’’ उस ने चादर से अपना हाथ निकाल कर उन का हाथ पकड़ लिया. उस की आवाज साफ थी, ‘‘बड़ी देर कर दी आतेआते?’’

वे खड़े, उसे चुपचाप देखते रहे.

‘‘मुझ से बेहद नाराज हैं न मेरे दोस्त. इसीलिए न कि मैं ने पहले क्यों नहीं बताया. पर अगर मैं पहले बता देती तो मुझे मेरा स्मार्टी बौयफ्रैंड शायद नहीं मिलता. सही है न.’’

इतना बोलने में ही उस के माथे पर पसीने की एकदो बूंदें आ गईं. उन्होंने पास पड़ा स्टूल खींच लिया व उस के पास ही बैठ गए, जिस से उसे बोलने में जोर न लगाना पड़े.

‘‘नहीं,’’ मैं तुम से नाराज नहीं हूं,’’ उन्होंने धीरे से कहा, ‘‘पर मैं तुम से बहुतबहुत नाराज हूं. अगर तुम समय से मुझे बता देतीं तो मैं हिंदुस्तान के बडे़ से बड़े डाक्टर से तुम्हारा इलाज करा कर तुम्हें बचा लेता.’’

‘‘नहीं विशाल, मैं जानती थी इस का कोई इलाज नहीं था. आप नाराज मत होइए, मैं जानती हूं मैं आप को

मना लूंगी माई डियर फ्रैंड. पर मुझे आप से माफी मांगनी है, मुझे माफ कर दीजिए प्लीज.’’

‘‘पर किसलिए? तुम किसलिए माफी मांग रही हो नीरजा?’’

‘‘मैं जीना चाहती थी. इसलिए मेरे पास जितना भी वक्त था मैं उसे जीना चाहती थी. खुशीखुशी जीना चाहतीथी. इसीलिए मैं ने आप का कुछ चुरा लिया था.’’

‘‘चुरा लिया था, पर तुम ने मेरा क्या चुरा लिया था?’’

‘‘मैं ने आप के शांत जीवन से अपने लिए कुछ खुशियों के पल चुरा लिए थे, मिस्टर विशाल. आप के पूरे जीवन के लिए एक बड़ा सा शून्य छोड़ दिया है. आई एम सौरी सर. मुझे माफ कर दीजिए सर.’’

‘‘माफी की कोई बात है ही नहीं नीरजा, क्योंकि मैं कभी भी तुम से नाराज हो ही नहीं सकता. अब मैं समझ गया. मेरी नीरजा बहुतबहुत बहादुर है, वैरी ब्रेव.’’

‘‘इसीलिए मैं आप को अपने घर नहीं ले जा सकती थी. अगर आप मम्मी से मिलते, तो मम्मी आप को सबकुछ सचसच बता देतीं. अच्छा, एक बात बताइए?’’

‘‘पूछो नीरजा, कुछ भी पूछो?’’

‘‘मैं ने बीसियों बार आप को माई स्मार्ट बौयफ्रैंड कहा है. कहा है न, बताइए?’’

‘‘बिलकुल कहा है.’’

‘‘पर आप ने एक बार भी मुझे माई गर्लफ्रैंड नहीं कहा है. कहा है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो कहिए न प्लीज. मैं सुन रही हूं. मैं इस पल को भी जीना चाहती हूं.’’

उन्होंने उस की हथेली अपने हाथों में ले ली व भरे गले से कहा, ‘‘दिस इज फैक्ट नीरजा. यू आर माई

स्वीट लिटिल गर्लफ्रैंड ऐंड आई लव यू वैरीवैरी मच.’’उस ने उन की हथेली को चूम लिया.

नीरजा की आंखें मुंदने लगीं. जबान लड़खड़ाने लगी. नर्स जो नर्सिंग काउंटर से देख रही थी, तुरंत आई.‘‘आप प्लीज तुरंत बाहर जाइए. सिस्टर डाक्टर को कौल करो, अर्जेंट.’’

वे धीरेधीरे बाहर आ कर किनारे पड़ी बैंच पर बैठ गए.

डाक्टर मित्रा के आने की नौबत नहीं आने पाई. उस के पहले ही नीरजा ने आखिरी सांस ले ली.

नीरजा का जिस्म पहले घर लाया गया. वे अंतिम संस्कार तक रुके. गाड़ी घर की तरफ मोड़ते समय उन के कानों में नीरजा के आखिरी शब्द गूंजते रहे, ‘मैं ने आप के शांत जीवन से अपने लिए खुशियों के कुछ पल चुरा लिए हैं.’

‘तुम ने मेरे जीवन में शून्य नहीं छोड़ा है नीरजा,’ वे बुदबुदा पड़े, ‘मेरे जीवन के किसी खाली कोने में अपनी मुसकराहटों व खिलखिलाहटों के रंग भी भरे हैं. मैं तुम्हें माफ नहीं कर सकता, कभी नहीं.

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