कहानी: अम्मा जी की भैरव पूजा
हमारी अम्मा हर समस्या का समाधान ज्योतिष से ही निकलती थीं. उनका अटूट विश्वास था ज्योतिष में. उनका इकलौता पोता मुन्ना साइकिल चलाते समय गिर पड़ा, अपनी असावधानी से. चोट लग गई. मैं दफ़्तर में था. पत्नी बच्चे को लेकर अस्पताल भागी. मलहम पट्टी करवाई. दो दिन में मुन्ना ठीक हो गया. लेकिन अम्मा अपने लाड़ले की दादी जो ठहरीं. मुन्ना को गोद में लिए बैठी रहतीं. मुन्ना भी दादी से चिपका रहता, ताकि मां-बाप की डांट से बच सके. मैं कुछ कहूं या मेरी पत्नी यानी मुन्ने की मां, तुरंत टोक देतीं,‘‘सब ग्रहों का चक्कर है. मुन्ना को डांटने से कुछ नहीं होगा. अब दादी और पोते के बीच बोलने की हम पति-पत्नी की भला क्या औकात?
मैंने कहा भी,‘‘अम्मा लापरवाही ये ख़ुद करे और ग्रहों को इसका दोष मढ़ा जाए. ये क्या बात हुई?’’
अम्मा ने पलटकर जवाब दिया,‘‘तुम नए लोग तो विज्ञान में भरोसा करते हो. ज्योतिष और तंत्र-मंत्र की शक्ति के बारे में क्याजानो. तुमने इलाज करवा लिया. अब हमें हमारे ढंग से अपने पोते की सुरक्षा का उपाय करने दो.’’
पत्नी ने कहा,‘‘लेकिन अम्माजी, अब सुरक्षा के उपाय की क्या ज़रूरत? ये तो ठीक है.’’
अम्मा ने कहा,‘‘अभी ठीक है. मलहम पट्टी तुरंत के लिए सही है. भविष्य के लिए क्या करना है ये तो ज्योतिषी ही बताएगा.’’
मैंने अपनी पत्नी को इशारे से चुप रहने को कहा. उसे अंदर बुलाकर बोला,‘‘अम्मा को जो अच्छा लगे करने दो. 70 वर्ष की उम्र में हम उन्हें बदल नहीं सकते. उल्टा हमारे समझाने को वो रोक-टोक समझकर दुखी होंगी.’’
पंडितजी महाराज को घर बुलाया अम्मा ने. चाय-पानी का प्रबंध किया गया. फिर मुन्ना की जन्म-पत्री देखी. फिर हाथ की रेखाएं. फिर उनके चेहरे पर इस तरह के भाव आए कि अम्मा घबरा गईं.
‘‘क्या हुआ पंडितजी?’’
‘‘समस्या विकट है माता.’’
‘‘कुछ उपाय भी तो होगा!’’
‘‘बच्चे की राशि पर केतुकी छाया है. जाप, हवन तो मैं कर दूंगा, लेकिन दान आपको स्वयं करना होगा. काले कुत्तेकोहर दिन तेल से चुपड़ी रोटी खिलानी होगी. शनिवार को विशेष रूप से.’’
‘‘काला कुत्ता हम कहां तलाशेंगे महाराज जी?’’
‘‘वो आपका काम है. काले कुत्तेमेंभैरो बाबा वास करते हैं, वही सब ठीक करेंगे. कुत्ता पूरा काला होना चाहिए. जय भैरो बाबा.’’
पंडित जी ने हवन अनुष्ठान के नाम पर 1,100 रुपए लिए और उपाय बताकर चलते बने. मोहल्ले भर में कुत्तों को तलाशा गया अलग-अलग रंग के कुत्तों के बीच एक-दो कुत्ते काले दिखे भी तो वो पूरे काले नहीं थे. बीच में उनके शरीर का कुछ हिस्सा सफ़ेद था. पर अम्माजी भी कहां मानने वाली थीं? इस मोहल्ले से उस मोहल्ले घूम-घूमकर गली-गली में उन्होंने काले कुत्ते की तलाश आरंभ कर दी. अपने भैरो बाबा की तलाश में उन्हें अंत में सफलता मिल ही गई. हनुमान मंदिर के पीछे, पीपल वृक्ष के नीचे, एक काला कुत्ता उन्हें दिखा. वे रुकीं, उन्होंने उसे प्रणाम किया. कुत्ता घबरा गया. अम्माजी कुत्ते के पास पहुंचीं. कुत्ता डरकर दो क़दम पीछे हटा, अम्माजी समझ गईं कि कुत्ता डर रहा है. उन्होंने रोटी निकालकर उसकी तरफ फेंकी. कुत्ता डरते-डरते रोटी की तरफ़ बढ़ा. कुत्ते ने रोटी खाई. अम्माजी की आत्मा प्रसन्न हो गई. लेकिन ये काले रंग का कुत्ता मरियल और कमज़ोर था. जब भी वे उसे रोटी डालतीं, दूसरे कुत्ते उसपर हमला करके रोटी छीन लेते. काला कुत्ता दुम दबाकर भाग जाता.
निराश होकर उन्होंने पंडितजी से कहा,‘‘आप ही काले कुत्ते का प्रबंध करें. हम दक्षिणा देने को तैयार हैं.’’ पंडितजी के घर के पास एक काला कुत्ता घूमता था. वह कई लोगों को काट भी चुका था. पंडितजी ने एक-दो ग़रीब मज़दूरों को लोभ देकर कहा,‘‘उस कुत्ते को पकड़कर फलां घर के सामने रोज़ पांच मिनट के लिए ले जाना है. दस रुपए मिलेंगे. दस रुपये के लोभ में एक-दो लोगों ने कुत्ते को पकड़कर बांधने, पालतू बनाने की कोशिश की. उसे खिलाया-पिलाया और घुमाने के बहाने अम्माजी के घर तक रोज़ ले जाते. कुत्ते का क्रोधीला चेहरा, लाल आंखें और गुर्राने की आवाज़ से अम्माजी की कंपकंपी छूट गई. कुछ दिन तो अम्माजी ने दूर से ही रोटी फेंक दी. फिर धीरे-धीरे कुत्ता समझ गया कि बुढ़िया माई की उस पर निष्ठा है तो वह आराम से खड़ा रहता. अम्माजी को देखकर पूंछ हिलाता. अम्माजी का डर भी दूर हो गया. वे अब पास आकर उसे पुचकारतीं-दुलारतीं, सहलातीं उसके पैर पड़तीं. जय बाबा भैरो का मंत्रोच्चार करतीं. कुत्ते को बांधकर लानेवाले को रोज़ दस रुपए मिलते थे. वह दस रुपए लेकर, गांजा पीकर पड़ा रहता. एक दिन गांजे की नशे में कुत्ते को पट्टा डालनेवाले व्यक्ति ने कुत्ते की पूंछ पर लात रख दी. कुत्ते का दिमाग़ वैसे भी ख़राब था. उसने ग़ुस्से में आकर हमला बोल दिया. उसे काटा और भाग खड़ा हुआ.
आख़िरी शनिवार था. कुत्ता भूखा था, उसे अम्माजी का घर ध्यान था. वह अम्माजी के घर के सामने खड़ा होकर भौंकने लगा. कुत्ते को स्वयं आया देखकर अम्माजी प्रसन्न हो गईं.
वे ख़ुश होकर स्वयं पूजा की थाल सजाकर लाईं. आज अंतिम शनिवार को वे विधिवत भैरो पूजन की इच्छुक थीं. वे पूजा की थाली लेकर कुत्ते के सामने पहुंचीं. कुत्ते ने थाली को सूंघा, उसमें कुछ नहीं था. अम्माजी ने कहा,‘‘सब्र करो भैरो जी. भोजन भी मिलेगा. पहले पूजा तो कर लेने दो. उन्होंने उसे सिंदूर का तिलक लगाया उसके बाद उसकी आरती उतारने लगी. थाली को अपने चेहरे के चारों ओर घूमते देख कुत्ता चकराया. उसमें जलते दिये और कपूर की आग से कुत्ते को लपट-सी लगी. कुत्ते को लगा उसे मारने की चाल तो नहीं है, यह क्या तमाशा हो रहा है? उसके साथ खाने को कुछ नहीं है. कुत्ते का दिमाग़ घूमने लगा. जब अम्माजी ने कुत्ते के समीप नारियल फोड़ा, कुत्ता डरकर चमक गया. उसे लगा उस पर हमले की योजना हो रही है. नारियल फूटने की आवाज़ उसे धमाके-सी लगी. वह कुछ क़दमपीछे हुआ. अम्माजी ने अगरबत्ती जलायी और उसके पास गई. जलती अगरबत्ती को अपने पास आते देख कुत्तेनेअपने बचाव में अम्माजी पर हमला बोल दिया. अम्माजी के हाथों से अगरबत्ती छूट गई. कुत्ते ने उनकी कलाई पर काट लिया. अम्माजी जोर से चिल्लाईं,‘‘बचाओ मर गई. हाय कुत्ते ने काट लिया.’’ अम्माजी की चीख सुनकर हम दोनों पति-पत्नी डंडा लेकर दौड़े आए. कुत्ता भाग खड़ा हुआ.
जब पता चला कि कुत्ता पागल था तो अम्माजी को पूरे 14 इंजेक्शन लगे. कड़े प्रयासों और लिखा-पढ़ी के बाद कुत्ते को नगरपालिका कर्मचारी पकड़कर ले गए.
अम्माजी ने पंडितजी को बुलवाया और ख़ूब खरी-खोटी सुनाई,‘‘पागल कुत्ता था, बताया क्यों नहीं?’’
पंडित ने बात को संभालते हुए कहा,‘‘अरे, अम्मा काले कुत्ते में भैरो का वास होता है. ऐसे कुत्ते कुछ सनकी तो होते ही हैं. अघोरियों की तरह. उसने तुम्हें नहीं काटा, तुम्हारे दुर्भाग्य को काटा है. अब भैरव उपासना पूर्ण. लाओ मेरी दक्षिणा.’’
अम्माजी ने कहा,‘‘ठहर अभी देती हूं तेरी दक्षिणा.’’ उन्होंने पास रखी झाड़ू उठाई और पंडित पर बरसाते हुए कहा,‘‘इस उम्र में चौदह इंजेक्शन लग गए तेरी वजह से. पागल कुत्ते को भगवान बताकर पूजा करवाता है. लूटता है अम्मा को. हमारी श्रद्धा से खिलवाड़...’’ अम्मा की झाड़ू तब तक चलती रही, जब तक कि पंडित जान बचाकर नहीं भाग गया.
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