कहानी: दिये से रंगों तक

हम दोनों चेन्नई में 2 महीने पहले ही आए थे. मेरे पति साहिल का यहां ट्रांसफर हुआ था. मेरे पास एमबीए की डिगरी थी. सो, मुझे भी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत न आई. हमारे दोस्त अभी कम थे. यही सोच कर दीवाली के दूसरे दिन घर में ही पार्टी रख ली. अपने और साहिल के औफिस के कुछ दोस्तों को घर पर बुलाया था. दीवाली के अगले दिन जब मैं शाम को दिये और फूलों से घर सजा रही थी तो साहिल बोले, ‘‘शैली, कितने दिये लगाओगी? घर सुंदर लग रहा है. तुम सुबह से काम कर रही हो, थक जाओगी. अभी तुम्हें तैयार भी तो होना है.’’

मैं ने साहिल की तरफ  प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘मैं क्यों, तुम भी तो मेरे साथ बराबरी से काम कर रहे हो. बस,
10 मिनट और, फिर तैयार होते हैं.’’ हम तैयार हुए कि दोस्तों का आना शुरू हो गया. पहली बार घर में इतनी चहलपहल अच्छी लग रही थी. जब टेबल पर सूप, समोसे, पकौड़े रखे तो सब खुश हो कर बोले, ‘‘वाह, चेन्नई में ये सब खाने को मिल जाए तो बहुत मजा आ जाता है.’’ फिर दौर चला बातों का, मिठाइयों का और नाचगाने का. सब ने पार्टी को खूब एंजौय किया.

पार्टी में हमारे साथ थे साहिल के बौस और उन की पत्नी छाया. रात के 2 बजे पार्टी खत्म हुई. सभी दोस्तों ने हमें इस पार्टी के लिए धन्यवाद दिया. दिनभर की थकान के बाद भी आंखों में नींद नहीं थी. मैं और साहिल बालकनी में बैठ गए बातें करने के लिए. खामोश रात और रंगीन जुगनुओं की चमक से चमकता शहर बहुत सुंदर लग रहा था. ‘‘साहिल, एक बात गौर की तुम ने कि तुम्हारे बौस की बीवी कितनी चुप थीं. न तो वे खाना खाते समय कुछ बोलीं और न खेलते समय. ऐसा लग रहा था जैसे एक मशीन की तरह सबकुछ कर रही हैं. वे सुंदर तो थीं पर खुश नहीं लग रही थीं.’’

‘‘तुम भी न शैली, यार वे बौस की बीवी हैं. इतनी उछलकूद नहीं मचाएंगी. बड़े लोग जूनियर सहकर्मियों से एक दूरी बना कर चलते हैं.’’

‘‘तुम्हारे बौस तो बड़े जिंदादिल हैं. तुम ने देखा नहीं, वे डांस के समय अपनी बीवी को बड़े प्यार से देख रहे थे. पर मैडम का ध्यान उन की तरफ नहीं था.’’

साहिल ने हंसते हुए कहा, ‘‘अच्छा, तो तुम मेरे साथ डांस कर रही थीं पर तुम्हारी नजर…तुम उन को इतने गौर से क्यों देख रही थीं?’’

साहिल के मजाक से अनजान मैं ने कहा, ‘‘साहिल, मुझे कुछ टूटा सा लग रहा है.’’

‘‘छोड़ो शैली, यदि तुम सही हो, तो भी हमें क्या करना?’’

अपनी धुन में मैं कह गई, ‘‘नहीं साहिल, इसे नहीं छोड़ पाऊंगी. अब मुझे याद आया, छाया कालेज में मेरे साथ थी. वह मुझे बहुत पहचानी सी लग रही थी.’’

साहिल को मनाते हुए मैं ने आगे कहा, ‘‘मुझे छाया से दोस्ती करनी है.’’

‘‘यार, बौस से दोस्ती बढ़ाने का एक ही मतलब होता है, चमचागीरी. छोड़ दो उस गुमसुम सी छाया को.’’

‘‘प्लीज, बस एक बार मिलवा दो. मैं वादा करती हूं, अगली बार छाया खुद मुझ से मिलना चाहेगी.’’

‘‘तुम अपनी बात मनवाना जानती हो. चलो, देखते हैं. सुबह के 4 बज गए हैं. उठो, सुबह औफिस भी जाना है.’’

अगले शनिवार जब साहिल औफिस से आया तो बोला, ‘‘मैडम, आप का काम हो गया. बौस तैयार हो गए हैं. 

रविवार को पहले फिल्म और फिर डिनर, ठीक है.’’ ‘‘ठीक नहीं, सुपर प्लान है. साहिल तुम बहुत अच्छे हो.’’

साहिल ने मुसकरा कर मेरा हाथ थाम लिया, बोला, ‘‘मैं जानता हूं असली खिलाड़ी कभी हारते नहीं.’’ दुख का एक पल मेरे अंदर आया, पर मैं ने उसे झटक कर दूर किया और साहिल के लिए चाय बनाने चली गई. मैं शादी से पहले हमेशा बैडमिंटन खेलने की शौकीन रही हूं. खेल के बाद तैराकी मुझे बहुत सुकून देती है. सूरत में तो वीकैंड में क्लब में जाती थी. यहां चेन्नई में ऐसी जगह अभी तक मिल नहीं पाई. अधिकतर क्लबों की मैंबरशिप बहुत महंगी है. अभी तो मुझे रविवार का इंतजार था. रविवार की शाम हम चारों मिले. आज मैं ने मिलते ही सब से पहले छाया को याद दिलाया, ‘‘आप को याद नहीं, हम एक ही कालेज में पढ़े हैं. उस दिन मुझे आप का चेहरा बहुत पहचाना सा लग रहा था. फिर बाद में याद आया.’’

छाया ने खुश होते हुए कहा, ‘‘जब पुराने दोस्त मिल गए हैं तो ‘आप’ नहीं शैली, ‘तुम’ ही अच्छा लगेगा.’’

हम साथ में हंस दिए. जब तरुण ने ये सब सुना तो बोले, ‘‘शैली, आप छाया से दोस्ती कर ही लो. उस का भी मन लग जाएगा यहां.’’ साहिल मेरी ओर देख कर मुसकरा पड़े, उन की निगाहों ने कहा, ‘जीत गई न तुम.’

सिनेमाहौल में मैं और छाया पासपास बैठे थे. एक समय आया जब स्क्रीन पर बलात्कार का सीन चल रहा था. नायिका चीखचिल्ला रही थी, रो रही थी, भाग रही थी, उस जगह से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ रही थी. उस सीन ने मुझे दहला दिया. साहिल ने मेरे हाथ को अपने दोनों हाथों से थाम लिया था. अचानक मेरी निगाह छाया की तरफ गई, उस ने कस कर आंखें बंद की हुई थीं. बस, यही बात थी जो मुझे छाया के करीब लाई थी. इसीलिए मैं उस से दोस्ती करना चाहती थी.

फिल्म के मध्यांतर में खाने के लिए स्नैक्स ‘हम दोनों ही लाएंगे’ कह कर मैं छाया को अपने साथ बाहर ले आई. एक कोने में जा कर हम खड़े हुए, मैं ने उस से कहा, ‘‘जिस सीन को देख कर तुम ने आंखें बंद की थीं, उस काले, घिनौने वक्त से मैं भी गुजर चुकी हूं. बस, फर्क इतना है तुम उस वक्त अकेली थी और साहिल ने अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ थामा था. मैं ने उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया था.’’ छाया की आंखें भय से फैल गईं. वह बोली, ‘‘क्या बोल रही हो? तुम्हें देख कर तो कोई सपने में भी नहीं सोच सकता है कि तुम दर्द के उस दरिया से निकल कर आई हो.’’

‘‘दर्द के दरिया को पार कर मैं भी आई हूं, छाया. पर उस के पानी से मेरे कपड़े आज भीगे नहीं हैं. तुम आज भी भीगी हो और कांप रही हो.’’

हम दोनों भूल चुके थे कि हम कहां खड़े हैं और क्या लेने आए हैं. हमारे सामने साहिल खड़ा था. हाथ में स्नैक्स की ट्रे लिए. वह जानता था उस समय यहां क्या बात हो रही है. वह सिर्फ इतना बोला, ‘‘चलो, फिल्म शुरू हो गई है.’’
तांकझांक तो बुरी आदत है पर क्या करूं, आज तो मैं ने भी वही किया. देख कर अच्छा लगा, छाया तरुण का हाथ थामें बैठी थी. इस से ज्यादा ध्यान देना तो ठीक नहीं था. मैं ने अपना ध्यान फिल्म में लगा दिया.

फिल्म खत्म होने के बाद रेस्तरां में खाना खाते समय तरुण बोले, ‘‘साहिल, औफिस के बाहर, सर और आप कुछ नहीं चलेगा. यहां हम भी दोस्त हैं छाया और शैली की तरह.’’

खाना खा कर हम बाहर निकले. एकदूसरे से विदा ली. हम चारों खुश थे. हां, सब की खुशी के कारण अलगअलग थे. अब मैं और छाया एकदो दिनों में हलकीफुलकी बातें कर लिया करते थे.

तरुण ने आज एकसाथ 2 अच्छी खबरें दीं. पहली, मुझे एक क्लब की सदस्यता तरुण ने दिलवा दी जहां मेरे दोनों शौक पूरे हो जाएंगे. दूसरी, तो इस से भी बड़ी थी, तरुण 2 दिनों के लिए सिंगापुर जा रहे हैं तो छाया हमारे साथ रहना चाहती है. अगले दिन, तरुण को साहिल ने एयरपोर्ट छोड़ा और छाया हमारे साथ घर आ गई. घर आते ही मैं ने छाया से पूछा, ‘‘कौफी के साथ पौपकौर्न लोगी या भेल?’’

उस ने बच्चों की तरह कहा, ‘‘दोनों.’’ उस का ऐसे बोलना मुझे बहुत अच्छा लगा. वह बोली, ‘‘रुको, मैं भी आती हूं, मिल कर बनाएंगे.’’

साहिल अपने औफिस के काम में व्यस्त थे. वे जानते थे स्वयं को हमें व्यस्त दिखाना ही सही होगा. छाया और मेरे हाथ में कौफी थी. मैं ने टीवी चला दिया. पर मैं जानती थी यहां चलना तो कुछ और ही है. बात मैं ने शुरू की, ‘‘क्या हुआ था?’’

‘‘पहले तुम बोलो, शैली, मुझ में बोलने की हिम्मत शायद तुम्हारे बाद ही आ पाए.’’ अपनी दोस्त को उस अंधेरे से बाहर निकालने के लिए मुझे उस गहरी खाई में फिर से जाना पड़ेगा. मन पक्का किया और मैं ने बताना शुरू किया, ‘‘उस शाम मैं हमेशा की तरह बैडमिंटन खेल कर ड्रैसिंगरूम में गई. वहां से मुझे पूल में जाना था. सबकुछ शायद पहले से ही सैट था. 2 लड़के बाहर घूम रहे थे, जिन को देख कर मैं ने अनदेखा कर दिया.

मैं रुक कर आगे बोली, ‘‘अंदर एक लड़का था जिसे ड्रैसिंगरूम में देख कर मैं चौंक गई. ‘महिलाओं के चेंजिंगरूम में लड़का कैसे?’ यह खयाल आया. मुझे देखते ही उस ने मेरे पास आ कर मुझे छूना चाहा. मैं बहुत घबरा गई, जोर से चिल्लाई और बाहर निकलने के लिए मुड़ी. उस जानवर ने मेरे मुंह में कपड़ा डाल दिया. बहुत छीनाझपटी हुई.

‘‘मैं घसीटतेघसीटते दरवाजे तक आ भी गई. काश, उस दिन दरवाजा खुल गया होता, जो बाहर से बंद था. एक को मारपीट कर मैं शायद भाग जाती मगर वक्त और इंसानियत सब शायद दरवाजे के बाहर ही छूट गए थे. बाहर वाले भी बारीबारी से अंदर आए. मेरे शरीर में संघर्ष की ताकत व होश सबकुछ खत्म हो गया था. उसी बेहोशी की हालत और रात के अंधेरे में वे मुझे मेरे घर के बाहर फेंक गए.

‘‘उन दर्दनाक पलों को मैं फिर से भुगत रही हूं किसी को जीना सिखाने के लिए. मम्मीपापा रात तक मेरे घर न आने पर और फोन बंद होने पर बहुत परेशान थे. वे दोनों मुझे ढूंढ़ने बाहर निकले तो देखा घर के दरवाजे पर मैं बेहोश पड़ी थी.

‘‘मुझे देख कर मां भी बेहोश हो गईं. 3 दिनों तक डाक्टर आंटी हमारे घर में रहीं.’’

वे 3 जानवर जिन को मैं जानती ही नहीं थी, उन्हें ढूंढ़ना, मीडिया को मसाले के साथ सबकुछ परोसना मेरे भविष्य को बरबाद करने जैसा ही था. मम्मीपापा और आंटी ने निर्णय लिया कि सबकुछ भुला कर जीना ही बेहतर है.

‘‘मगर इतना सब होने के बाद जीना इतना आसान भी नहीं, उन दर्दनाक यादों से खुद को अलग करना बहुत मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं.’’ कहते हुए मैं ने अपने आंसू पोंछे. छाया भी आंसुओं से भीग चुकी थी.

सामने देखा दरवाजे पर साहिल खड़े थे. हमें देखते हुए बोले, ‘‘अब सो जाओ, रात के 3 बज रहे हैं. सुबह काम पर जाना है.’’ उन्होंने कमरे की लाइट व टीवी बंद कर दिया.

सोतेसोते छाया बोली, ‘‘इतना समझदार पति, शैली, तुम्हारे पति की जितनी तारीफ की जाए, कम है.’’

‘‘छाया, तरुण भी बहुत अच्छे हैं. बस, इतना याद रखना कि यदि तुम उस सब से बाहर नहीं निकली तो जिंदगी का अतीत वर्तमान को भी काला कर देगा. तरुण महीने में 10 दिन बाहर रहते हैं. बहुत लोगों से मिलते भी होंगे. दोस्ती और प्रेम के बीच एक महीन सी दीवार ही होती है. पता नहीं कब वह दीवार टूट जाए, उस से पहले अपनी पीठ से अतीत की लाश को फेंक देना.’’

सुबह नींद खुली 9 बजे किचन की खटपट की आवाज से. छाया, हम तीनों के लिए नाश्ता बना रही थी और साहिल वहीं बैठे उस से बातें कर रहे थे. छाया मुझे सहज और खुश लगी. हम तीनों अपने काम पर चले गए. रात का खाना हम दोनों ने मिल कर बनाया. खाना खा कर कमरे में आते ही छाया बोली, ‘‘इस सब के बाद तुम्हारे मातापिता ने क्या कहा?’’ ‘‘मैं ने बोला तो था मां बेहोश हो गई थीं. एक दिन मैं पलंग पर सो रही थी, पापा भी मेरे पास बैठे थे. मां कुरसी पर बैठी मेरे बाल सहला रही थीं कि अचानक मैं रोने लगी और मेरे मुंह से निकला, ‘मैं मैली हो गई, सचमुच मेरी इज्जत चली गई.’ ‘‘सुन कर मां को जैसे करंट लगा, ‘शरीर को अपमानित करने के लिए किसी ने तुम पर जुल्म और ज्यादती की, उस को तुम अपना गुनाह कैसे मान सकती हो? तुम पर जुल्म हुआ वह भी अनजाने में, धोखे से. औरत के मन और शरीर को तारतार करने वाले किस जालिम ने अपने गुनाह को औरत की इज्जत से जोड़ा? हम आज भी इन शब्दों को अपने पैरों की बेडि़यां बना कर जी रहे हैं.’ मां बोलतेबोलते खड़ी हो गईं. वे गुस्से से कांप रही थीं और रो रही थीं.

‘‘पापा की आंखों में भी आंसू थे. वे बोले, ‘बेटा, तुम हमारी बहादुर बेटी हो, शरीर के घाव तो भर जाएंगे पर उन को अपने मन में जगह मत देना. हम दोनों की जिंदगी और खुशी तेरे ही दिल में रहती है.’’’ कहतेकहते मेरी आंखों में भी आंसू आ गए. न जाने कितनी बार हम तीनों साथसाथ रोए थे. मैं ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘2 महीने के लिए मैं मौसी के पास गई थी. जब वापस आई तो पापा के साथ खेलने भी जाती थी. धीरेधीरे सब सामान्य हो गया.’’ गुस्से और नफरत से छाया बोली, ‘‘मेरी तो मां ने ही कहा था, यह क्या कर आई? खानदान के नाम पर कलंक. खुद की नहीं, छोटी की भी सोचो. यह रोनाधोना बंद करो. चुपचाप काम पर जाना शुरू करो. किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है. तब से आज तक मेरे घाव खुले ही हैं और टीसते हैं. उन्हें भरने वाला कोई नहीं मिला. तरुण से भी यह सब छिपा कर शादी हुई जो मुझे बहुत ग्लानि से भर देती है. क्या करती, मां के आगे कुछ नहीं बोल पाई.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पिता तो कालेज में प्रोफैसर हैं. उन की प्रतिक्रिया कैसी थी?’’

‘‘‘यह अपवित्र हो गई है,’ पापा ने मेरे सामने मां को डांटते हुए कहा, ‘इस से कह देना, आज के बाद मंदिर में हाथ न लगाए.’’’

मैं छाया के पास आ गई. मेरे कंधे पर सिर रख कर वह सिसकने लगी. उस का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘पढ़ेलिखे मातापिता ऐसे कैसे हो सकते हैं?’’ उस ने जो कहा वह बहुत सही बात थी. वह बोली, ‘‘बच्चे को पालने के लिए दिल में प्रेम चाहिए, दिमाग के किताबी ज्ञान से कुछ नहीं होता है.’’ ‘‘छाया, खुद को इतना परेशान मत कर. सुबह तरुण आ रहे हैं. तुम मुझ से एक वादा करो, वीकैंड में तुम मेरे साथ बैडमिंटन जरूर खेलोगी.’’ उस की आंखों ने मुझ से वादा किया और अगले दिन वह अपने घर चली गई. जब साहिल को मैं ने उस के बारे में बताया तो साहिल बोले, ‘‘शैली, तुम छाया से कुछ मत पूछना. वह आज भी सदमे में है जिस दिन वह खुद बात करे उस दिन उसे समझाना.’’ रविवार की शाम छाया क्लब आई तो बोली, ‘‘आज खेलना नहीं है. चलो न, बातें करते हैं.’’

हम वहीं सीढि़यों पर बैठ गए. छाया ने सीधे ही मुझ से सवाल किया, ‘‘क्या साहिल यह सब जानते हैं? तुम ने उन्हें यह सब कब बताया?’’

‘‘शादी से पहले यह सब साहिल को मां ने बताया था. साहिल ने मुझे हमारे किसी रिश्तेदार के घर देखा था. जब साहिल अपने मातापिता के साथ आए तो उन की मां ने कहा, ‘हमें तो शैली पसंद है. आप चाहें, तो हम अभी बात पक्की कर लेते हैं.’’’

‘‘मां तैयार थीं इस के लिए. मां ने कहा, ‘पहले मैं साहिल से अकेले में बात करना चाहती हूं.’

‘‘मां साहिल को अपनेसाथ अंदर कमरे में ले गईं और उन्होंने मेरे साथ जो हुआ उन्हें सब बताया. फिर बोलीं, ‘बेटा, शादी करो या न करो पर यह बात अपने तक ही रखना. वरना हमारी बेटी की शादी होनी मुश्किल हो जाएगी.’

‘‘उस दिन साहिल ने मां के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘मां, मेरी शिक्षा बेकार है, यदि मैं उस दर्द को नहीं समझ पाया. मुझे शैली से ही शादी करनी है. यह बात मेरे अलावा किसी और तक कभी नहीं जाएगी.’

‘‘साहिल मुझ से मिलने कमरे में आए. कमरे का माहौल बहुत गमगीन हो गया था. वे, बस, इतना ही कह पाए, ‘शैली, मेरा हाथ थाम कर आज से जिंदगी शुरू करना, पीछे कुछ था ही नहीं. इसलिए कभी मुड़ कर मत देखना.’’’

मेरी बात पूरी हुई और छाया बोल पड़ी, ‘‘यही तो बात है, तरुण कुछ नहीं जानते हैं. उन से सबकुछ छिपा कर शादी तो करनी पड़ी पर मेरा अपराधबोध मुझे कचोटता है.’’

‘‘पर अब देर हो चुकी है, छाया.’’ यदि तरुण ने साथ रहने से मना कर दिया तो?’’

‘‘कोई बात नहीं, अपनी रिसर्च के लिए, एक जिंदगी भी कम है. मैं फिर से उसी में जुट जाऊंगी. शैली, आज बताती हूं उस दिन क्या हुआ था.’’

उस ने बहुत सहजता से कहना शुरू किया, ‘‘मैं बौटनी में रिसर्चस्कौलर थी. सब से ज्यादा फैलोशिप भी मुझे ही मिलती थी. विपिन राय, जो नंबर दो पर था, मुझ से बहुत चिढ़ता था. वह शादीशुदा था.

‘‘मुझ से पीछे रहने के अपमान का बदला उस ने मुझे चोट पहुंचा कर लिया. एक दिन उस ने मुझे फोन किया, ‘कुछ जरूरी काम है.’

‘‘छुट्टी का दिन था. वह अकेला मेरा इंतजार कर रहा था. जब मैं वहां पहुंची तो अकेलेपन का फायदा उठा कर उस ने मुझे बहुत मारा, गालियां दीं और कहा, ‘आज के बाद तू उस लैब में नहीं आ पाएगी. यहां आने की सोच भी तेरे ख्वाब में नहीं आएगी. मेरे खिलाफ पुलिस केस करने की गलती मत करना. 10 साल कोर्ट के चक्कर लगाएगी, फिर भी हो सकता है मैं यह साबित कर दूं कि तूने मेरा बलात्कार किया है.’

‘‘वह दरिंदा जीत गया. मेरे परिवार की नजर में मेरी इज्जत चली गई थी. 2 महीने के अंदर तरुण से मेरी शादी हो गई.

‘‘वह दिन, पिता की नफरत, मां का मुझ से ज्यादा समाज और छोटी बहन की चिंता करना मुझे आज तक रुलाता है. घाव पर मरहम लगाने वाला कोई तो चाहिए. यहां तो घाव नासूर बन गया जो आज तक…’’

आज हम दोनों की आंखों में आंसू नहीं थे. शैली उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘चलो, घर चलते हैं, तरुण को आज सबकुछ बताना है.’’

मुझे छाया की चिंता हो रही थी. मैं ने कहा, ‘‘तरुण का जवाब जो भी हो, मैं और साहिल अब तुम्हारा परिवार हैं. तुम तरुण को अपनी बात बताने से पहले मेरे और साहिल के बारे में बता देना. तुम चाहो तो साहिल भी…’’

‘‘तू चिंता मत कर. जो भी होगा उस का सामना करने की हिम्मत है मुझ में.’’

मैं घर तो आ गई पर मेरा मन बहुत बेचैन था. सुबह भी उस का फोन नहीं आया. साहिल काम पर चला गया. मैं घर में अकेली बैठी छाया के फोन का इंतजार करने लगी. दीवाली के अगले दिन शुरू हुआ दोस्ती का यह सफर 5 महीने का रास्ता तय कर चुका था. क्या होगा? कहीं मेरे कारण छाया हमेशा के लिए अकेली न हो जाए. वह चाहे जो कहे, अब तनहा जीना आसान नहीं होगा. उसे भी तरुण के साथ की आदत पड़ चुकी थी. शाम के 5 बज गए. फोन की घंटी बजी. देखा, तरुण का फोन है. मैं ने डरते हुए फोन उठाया. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो, शैली, तुम्हारा बहुतबहुत शुक्रिया.’’ उस के बाद छाया से जो बात हुई उस का एक शब्द भी याद नहीं. वैसे भी, अब शब्दों का कोई महत्त्व नहीं था. एक खुशी का एहसास. लगा मेरा पूरा शरीर रोशनी से भर गया हो. मेरे कमजोर पलों में मेरा साथ मेरे परिवार व साहिल ने दिया था. आज किसी को मैं ने हिम्मत दी और वह भी जिंदगी की दौड़ में जीत गया. छाया की जीत का एहसास मेरे लिए कुछ ऐसा था जैसे मां को अपने बच्चे की जीत के लिए होता है. अगले दिन छाया और तरुण 2 दिनों के लिए सिंगापुर जा रहे हैं. जाते समय तरुण ने साहिल से कहा, 
‘‘साहिल, मंगलवार को होली की पार्टी का इंतजाम कर लेना, पार्टी हमारे घर पर होगी.’’

साहिल ने कहा, ‘‘तुम थके हुए आओगे, पार्टी हमारे घर पर रख लेते हैं. मैं और शैली सारा इंतजाम कर लेंगे.’’

छाया ने कहा, ‘‘नहीं साहिल, इस बार पार्टी हमारे घर होने दो. दीपक की रोशनी से उस रात तुम्हारा घर जगमगाया था, इस बार रंगों को हमारे घरआंगन में छिटकने दो.’’

होली की पार्टी से घर लौटते समय मेरे और साहिल के मोबाइल पर एक संदेश आया, ‘शैली, तुम्हारे मातापिता जैसा साहस और प्रेम हर मातापिता में हो तो तुम जैसी बेटियां न जाने कितनी छाया को अंधेरों से खींच लाएंगी. और हर दर्दभरे दिल को अपना साहिल मिल ही जाएगा…’       

कोई टिप्पणी नहीं:

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();
Blogger द्वारा संचालित.