कहानी - मां का प्यार

निधि को पागलों के अस्पताल में भरती कराने की सलाह जब भी कोई संगीता को देता, उस की आंखों से आंसुओं की जलधारा झरने लगती. वह हर किसी से एक ही बात कहती, ‘‘जब मां हो कर मैं अपनी बेटी की देखभाल और सेवा नहीं कर सकती तो अस्पताल वालों को उस की क्या चिंता होगी. निधि को अस्पताल में भरती कराने का मतलब किसी बूढ़े जानवर को कांजीहाउस में डाल देने जैसी बात होगी.’’ जन्म से पागल और गूंगी बेटी की देखभाल संगीता स्वयं ही कर  रही थी. निधि के अलावा संगीता की 3 संतानें और थीं-दो बेटे और एक बेटी. बेटे पढ़लिख कर शहर में कामध्ांधे में लग गए थे. बेटी ब्याह कर ससुराल चली गई थी. घर में संगीता और निधि ही बची थीं. संगीता निधि में इस तरह खो गई थी कि अपनी उन तीनों संतानों को भूल सी गई थी. अब वह अपना समग्र मातृत्व निधि पर ही लुटा रही थी. छुट्टियों में जब बेटे और बेटी परिवार के साथ घर आते तो उस का घर बच्चों की किलकारी से गूंज उठता. लेकिन संगीता एक दादीनानी की तरह अपने उन पौत्रपौत्रियों को प्यार नहीं दे पाती थी.

मां के इस व्यवहार पर बेटों को तो जरा भी बुरा नहीं लगता, लेकिन बहुएं ताना मार ही देती थीं. दोनों बहुएं अकसर अपनेअपने पतियों से शिकायत करतीं,  ‘मांजी को हमारे बच्चे जरा भी नहीं सुहाते. जब देखो तब अपनी उस पागल बेटी को छाती से लगाए रहती हैं. इस पागल की वजह से ही हमारे बच्चों की उपेक्षा होती है.’ मातृत्व की डोर में बंधी संगीता के साथ कभीकभी बहुएं अन्याय भी कर बैठतीं. संगीता का व्यवहार बेटों के बच्चों के प्रति ही नहीं, बेटी के बच्चों के प्रति भी वैसा ही था. बहुएं तो पति के सामने अपना क्षोभ प्रकट कर शांत हो जातीं लेकिन बेटी तो मुंह पर ही कह देती थी,  ‘निधि को इतना प्यार कर के आप ने उसे और पागल बना दिया है. यदि आप ने उसे आदत डाली होती तो कम से कम उसे शौच आदि का तो भान हो गया होता. 18 साल की लड़की कितनी भी पागल हो, उसे कुछ न कुछ तो भान होना ही चाहिए. निधि गूंगी है, बहरी तो नहीं. कुछ कह नहीं सकती, पर सुन तो सकती है. एक बार गलती करने पर थप्पड़ लगा दिया होता तो दोबारा वह गलती न करती.’

बेटी और आगे कुछ कहती, संगीता की आंखें बरसने लगतीं. मां की हालत देख कर बेटी का भी दिल भर आता. फिर भी वह कलेजा कड़ा  कर के कहती,  ‘मां, तुम सोचती हो कि बेटी को इतना प्यार कर के उसे खुशी और आराम दे रही हो जबकि सचाई यह है कि तुम्हीं उस की असली दुश्मन हो. तुम हमेशा तो बैठी नहीं रहने वाली. जब वह भाभियों के जिम्मे पडे़गी तब इस की क्या हालत होगी, तुम ने कभी सोचा है.’ संगीता अन्य लोगों को तो चुप करा देती थी, लेकिन बेटी पलट कर जवाब दे देती थी, ‘अस्पताल तुम्हें कांजीहाउस लगता है, ज्यादा से ज्यादा वह वहां मर जाएगी. उस के लिए तो मर जाना ही ठीक है. कम से कम चौबीसों घंटों की परेशानी से तो वह छुटकारा पाएगी. वही क्यों, परिवार भी उस से छुटकारा पा जाएगा.’

निधि की मौत को संगीता भी छुटकारा मानती थी. लेकिन वह कुदरती हो जाए तो…बेदरकारी के साथ जानबूझ कर मौत के मुंह में निधि को धकेलना संगीता के लिए असह्य था. इसीलिए बेटों एवं बेटी के लाख कहने पर भी संगीता निधि को अस्पताल भेज कर मौत के मुंह में झोंकने को तैयार नहीं थी. बेटे मां की सोच को समझ कर चुप हो गए थे. उन्होंने इस विषय पर बात करना भी छोड़ दिया था. निधि का कोई उपचार भी नहीं था क्योंकि लगभग सभी डाक्टरों ने स्पष्ट कह दिया था कि वह किसी भी तरह ठीक नहीं हो सकती. संगीता से जो हो सकता था, वह निधि के लिए करती रहती थी. अचानक एक घटना यह घटी कि कन्या विद्यालय में पढ़ने वाली एक लड़की कुसुम पागल हो गई. निधि की तरह उसे भी न शौच आदि का भान रह गया था, न कपड़ों का. यह जान कर संगीता को दुख तो बहुत हुआ लेकिन इस के साथ ही उसे इस बात का संतोष भी हुआ कि जब एक अच्छीभली लड़की पागल हो कर होश गंवा सकती है तो जन्म से पागल निधि को इन बातों का होश नहीं रहता तो इस में आश्चर्य की कौनसी बात है.

कुसुम के घर वालों ने सलाहमशवरा कर के उसे पागलों के अस्पताल में ले जाने का निर्णय लिया. जब यह जानकारी संगीता को हुई तो उसे लगा कि आज कुसुम की मां होती, तो ऐसा कतई न होता. ‘मां बिन सून,’ गलत नहीं कहा गया है. यह सोचते हुए उस ने आंखें बंद कीं, तो उसे दिखाई दिया कि उस के मरने के बाद बेटे भी निधि को पागलों के अस्पताल में छोड़ आए हैं. उस का कलेजा कांप उठा और उस की आंखें खुल गईं. कुसुम के अस्पताल जाने के बाद अस्पताल से खबर आई कि उसे वहां फायदा हुआ है. उसे पहले रस्सी से बांध कर रखना पड़ता था, अब वह खुली घूम रही है. अब वह कोई उपद्रव भी नहीं करती. शौच और कपड़ों का भी उसे होश रहने लगा है. अब उस में एक यही कमी है कि वह दिनभर गाती रहती है. पागलपन का बस यही एक लक्षण उस में बचा है. डाक्टरों ने कहा था कि एकाध महीने में वह एकदम ठीक हो जाएगी. और अगले महीने सचमुच वह ठीक हो गई थी. लेकिन डाक्टरों ने सलाह दी थी कि अभी उसे एकाध महीने यहां और रहने दें, जिस से उन्हें पूर्ण संतोष हो जाए.

3 महीने बाद जब कुसुम घर आई तो उसे देखने पूरा गांव उमड़ पड़ा था. जैसे ही कुसुम के आने की जानकारी संगीता को हुई, वह भी कुसुम के घर जा पहुंची थी. उस के मन में जो भावना थी कि मां अगर अपनी पागल बेटी की सेवा नहीं कर सकती तो डाक्टर या नर्स क्या करेंगे, कुसुम से बातचीत होने के बाद यह भावना बदल गई थी. कुसुम ने बताया था कि कोई पागल अगर डाक्टर या नर्स को थप्पड़ भी मार देता है तो पलट कर मारने की कौन कहे, वे खीझते तक नहीं हैं. यह जानने के बाद संगीता के मन में अस्पताल के प्रति विश्वास उपजा था. शायद निधि अस्पताल जा कर ही ठीक हो जाए. आखिरकार, निधि को अस्पताल भेजने का निर्णय संगीता ने कर लिया. इस के बाद उस ने बड़े बेटे को फोन कर के घर बुलाया. लेकिन जिस दिन से उस ने निधि को अस्पताल भेजने का निर्णय लिया था उसी दिन से उस की नींद उड़ गई थी. उसे लग रहा था कि उस ने यह निर्णय हार कर लिया है. इस से उस के दिमाग पर एक तरह का बोझ सा लद गया. अस्पताल पर उसे विश्वास हो गया था, यही उस के लिए बहुत बड़ी बात थी. निधि सयानी होती जा रही थी, तो संगीता बूढ़ी. बहुएं निधि के लिए कुछ कर नहीं सकतीं, यह बात संगीता अच्छी तरह जानती थी क्योंकि दोनों में से एक भी बहू ने आज तक कभी उसे अपने घर आने के लिए नहीं कहा था. बहुओं का ही क्या, बेटों से भी किसी तरह की उम्मीद नहीं रह गई थी. इस स्थिति में उसे अस्पताल में ही भरती करा देना ठीक है. इस से वह निश्ंिचत हो कर मर तो सकेगी कि निधि की सेवा कोई अपना नहीं, पराया तो कर ही रहा है.

यह सब सोचते हुए संगीता की आंखों से इतने आंसू बह जाते कि तकिया गीला हो जाता. हृदय चीत्कार उठता. भले ही वह कोई बहाना करे, लेकिन सही बात यह है कि वह स्वयं बेटी से थक गई है. लेकिन अब संगीता को लगता कि उस ने बेटे को फोन कर के बहुत बड़ी गलती कर दी है. इतनी भी क्या जल्दी थी कि इस ठंड के मौसम में ही निधि को अस्पताल भेजने लगी. रात में कितनी बार उठ कर वह निधि को रजाई ओढ़ाती है क्योंकि उसे तो पता ही नहीं चलता कि वह कैसी पड़ी है. अस्पताल में इस तरह बारबार उसे कौन रजाई ओढ़ाएगा. गरमी में भेजती तो ठीक रहता. वह चाहे जैसी भी पड़ी रहती. फोन करने के तीसरे दिन ही संगीता का बड़ा बेटा आ गया था. अस्पताल में निधि को भरती कराने के लिए मजिस्ट्रेट से आदेश भी करा कर वह साथ लाया था. भाई पागल बहन को अस्पताल में जल्दी से भरती करा कर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहता था. संगीता चाहती थी कि निधि को इस ठंड के मौसम में अस्पताल भेजने के बजाय गरमी में भेजे. लेकिन अब बेटे के सामने मुंह खोलने की उस में हिम्मत नहीं थी क्योंकि वह मात्र इसी काम के लिए छुट्टी ले कर घर आया था. सुबह जब वह निधि को ले कर घर से निकलने लगी तो जैसे सारे ब्रह्मांड का बोझ संगीता के ऊपर आ लदा था. आंखों से आंसू बरस रहे थे. नजरें निधि पर ही टिकी थीं. निधि मां द्वारा पहनाए गए नए कपड़ों को घूरघूर कर देख रही थी. नए कपड़े देख कर वह खुश हुई और संगीता की ओर देख कर हंसी. पार्वती का कलेजा कांप उठा. उसे लगा, उस की बेटी का इस दुनिया में कोई नहीं है. जब सगी मां ही उस की नहीं हुई तो दूसरा कौन होगा?

घर के सामने खड़ा आटो भर्रभर्र कर रहा था. बेटे ने मां की ओर देखे बगैर लड़खड़ाते कदमों से बाहर निकलते हुए कहा,  ‘‘मां, देर हो रही है, अब निकलना चाहिए.’’ पड़ोसिन ने निधि का हाथ थाम कर आटो में बैठाया. दूसरी पड़ोसिन संगीता को थामे थी. निधि के बैठने के बाद उस ने भी संगीता को आटो में बैठा दिया. सब से बाद में बेटा बैठा. आटो चलने लगा तो संगीता ने पहले घर की ओर देखा, फिर निधि को. वह अपनी रुलाई रोक नहीं सकी और फफक कर रो पड़ी. निधि पागल है, यह जान कर गाड़ी के मुसाफिरों को बातें बनाने का मुद्दा मिल गया. किसी ने कहा, ‘‘इस तरह खातेपीते घर की सुखी लड़की को अस्पताल में भरती करा दोगे तो यह वहां महीनेभर में ही सूख कर कांटा हो जाएगी. वहां तो जानवरों से भी बदतर जिंदगी जीते हैं लोग.’’ ‘‘हमारे गांव की एक बुढि़या को 5 साल पहले उस का बेटा वहां छोड़ आया था. फिर पलट कर कभी देखने तक नहीं गया. गांव का कोई भी आदमी उस से मिलने जाता है तो वह उसे देखते ही रोने लगती है. पैर पकड़ कर कहती है, ‘मुझे यहां से ले चलो.’ लेकिन उस का बेटा आता ही नहीं है,’’ बगल में बैठे एक अन्य व्यक्ति ने कहा. यह सुन कर संगीता का कलेजा छलनी हो गया. उस की आंखों में आंसू भर आए. गला रुंध गया. मारे शर्म के उस ने सिर झुका लिया.

संगीता अकेली होती और बेटे को बुरी लगने वाली बात न होती तो वह लौटती गाड़ी से निधि को ले घर आ जाती. लेकिन अब कोई दूसरा उपाय नहीं था. इसलिए मजबूरी में भारी कदमों से संगीता अस्पताल में दाखिल हुई. थोड़ी देर में डाक्टर और महिला वार्ड की वार्डन आ गई थीं. संगीता के बेटे ने साथ लाया कागज डाक्टर को थमा दिया. डाक्टर से निधि की अच्छी तरह देखभाल के लिए संगीता के बेटे ने इस तरह जोर से कहा कि मां भी सुन ले, जिस से उस के मन को संतोष रहे. जवाब में मैट्रन ने कहा,  ‘‘इस बारे में आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है…’  संगीता उस की बात बीच में ही काट कर बोली, ‘‘बहन, चिंता इसलिए हो रही है क्योंकि यह एकदम पागल है. अपने हाथ से खाना भी नहीं खा सकती.’’ यह कहतेकहते संगीता का गला रुंध गया और उस की बात अधूरी रह गई. दूर खड़ी नर्सें दौड़ी आईं. उन में से एक बोली,  ‘‘मांजी, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए. हम इस के मुंह में कौर डाल कर खाना खिलाएंगे.’’

भारी आवाज में संगीता बोली,  ‘‘इसे शौच का भी भान नहीं रहता. इसलिए यह बारबार कपड़ा खराब कर दे तो जरा ध्यान रखिएगा, वरना गीले में ही पड़ी रहेगी.’’ दूसरी नर्स बोली,  ‘‘मांजी, हम रात में 4-5 बार उठ कर आदमी को देखते हैं.’’ ‘‘रात में लाइट में इसे नींद नहीं आती,’’ संगीता ने कहा. ‘‘जिसे नींद नहीं आती, उसे नींद की दवा दी जाती है.’’ ‘‘कोई शरारती इसे मारेगा तो नहीं?’’ ‘‘शरारती पागलों को अलग रखा जाता है. रात में सभी को अलगअलग सुलाया जाता है.’’ उस ने कहा, ‘‘मेरी बेटी को जिस कमरे में रखा जाएगा, जरा मुझे वह कमरा दिखा दीजिए.’’ ‘‘किसी भी बाहरी आदमी को कमरे के अंदर नहीं जाने दिया जाता है,’’ मैट्रन ने स्पष्ट कहा. आंखें फाड़ कर चकरमकर इस नई दुनिया को देख रही निधि ने संगीता की गोद में अपना सिर रख दिया, तो संगीता का हाथ अपनेआप उस के सिर पर चला गया. आदत के अनुसार उस के मुंह से निकल गया, 

‘‘बेटा….’’

‘बेटा’ शब्द मुंह से निकलते ही संगीता की आंखों से जलधारा बह निकली. संगीता इस तरह रो रही थी जैसे कोई अपने के मरने पर रोता है. बेटा भी मां को सांत्वना देने के बजाय रोने लगा. इस तरह रोनेगाने के आदी डाक्टर, मैट्रन और नर्सों का भी दिल संगीता के रोने से भर आया था. एक नर्स ने हाथ का रूमाल हिला कर निधि का ध्यान अपनी ओर खींचा. निधि ने उस की ओर देखा तो वह बोली,  ‘‘आप को चाहिए?’’ रूमाल पकड़ने के लिए निधि मां की गोद से एकदम से खड़ी हो गई और हाथ बढ़ाया, तो नर्स उस का हाथ पकड़ कर प्रेम से बोली, ‘‘तुम मेरे पास रहोगी? मैं तुम्हें अच्छाअच्छा खाना दूंगी, नएनए कपड़े पहनाऊंगी.’’ निधि नर्स का मुंह एकटक ताक रही थी. नर्स ने इस का फायदा उठाया. उसे अधखुले दरवाजे के अंदर कर दिया. संगीता  ‘निधि, निधि’ कह कर चीख पड़ी.

डाक्टर ने संगीता के बगल में खड़े बेटे की ओर इशारा करते हुए कहा,  ‘‘मांजी, अपने इस बेटे की तरह मुझे भी अपना बेटा समझिए. आप बेटी को अस्पताल में नहीं, बेटे के घर छोड़ कर जा रही हैं.’’ बचपन में ही विधवा हो चुकी अधेड़ उम्र की मैट्रन ने संगीता को आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘आप क्यों परेशान होती हैं बहन, आज तक आप इस की मां थीं, आज से मैं इस की मां हूं.’’ संगीता ने सिसकते हुए कहा,  ‘‘इसे तो जानवरों जितना भी ज्ञान नहीं है. आज के पहले मैं ने इसे कभी पलभर के लिए अपने से अलग नहीं किया. मेरे ही गांव की कुसुम आप के अस्पताल आ कर ठीक हो गई थी, इसलिए कलेजा कड़ा कर के इसे यहां लाई हूं.’’ ‘‘यह भी कुछ दिनों में कुसुम की तरह ठीक हो जाएगी,’’ मैट्रन ने कहा. 

संगीता का रोना तो बंद हो गया लेकिन उस की नजरें अभी भी उस कमरे पर इस तरह टिकी थीं, जैसे वह निधि को देख रही हो. तभी वह अचानक बोली,  ‘‘बहन, मेरी निधि रोटी नहीं खाती. शाम को दूध में रोटी सान कर दीजिएगा. दूध न हो तो दाल में.’’ मैट्रन संगीता की करुणाभरी आंखों से आंखें नहीं मिला पा रही थी. वह सिर झुकाए हुए बोली,  ‘‘ठीक है, जैसा आप कह रही हैं, वैसा ही करूंगी.’’ ‘‘बहन, उसे दही बहुत पसंद है. अगर रोजाना न हो सके तो दूसरेतीसरे दिन उसे दही जरूर दीजिएगा. इस के लिए जो खर्च आएगा, वह मैं मिलने आऊंगी तो दे दूंगी. उस की सेवा करने वाले को भी मैं खुश रखूंगी,’’ संगीता ने बड़े ही दीनभाव से कहा. संगीता ने देख लिया था कि अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारी बड़े ही दयालु और भले आदमी हैं. लेकिन अंदर न जाने देने वाली बात उसे अच्छी नहीं लगी थी. पता नहीं नियम क्यों बनाया गया था. उस ने अंदर अस्तव्यस्त कपड़ों में बाल फैलाए भूतनी जैसी 2 औरतों को देखा था. उस के मन में आया कि निधि उन्हीं के पास बैठी रो रही है. यह बात मन में आते ही उस की आंखों में आंसू आ गए. संगीता को रोते देख, उस की बगल में बैठी महिला ने पूछा,  ‘‘क्या बात है मांजी, आप रो क्यों रही हैं?’’

संगीता ने कोई जवाब नहीं दिया था. रात 11 बजे संगीता घर पहुंची. उस की रिश्ते की देवरानी ने उस के लिए खाना भी बना रखा था. लेकिन मांबेटे ने खाने से इनकार कर दिया. देवरानी ने कई बार कहा, लेकिन खाना खाने की संगीता की हिम्मत नहीं हुई. संगीता के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी, निधि इस समय न जाने क्या कर रही होगी? ठंड बहुत है, उसे कुछ ओढ़ाया गया होगा या नहीं? उस ने कपड़े कहीं गीले न कर दिए हों? वह इस तरह बड़बड़ाई, जैसे निधि उन की बातें सुन रही हो,  ‘बेटा, बिस्तर पर पेशाब मत करना. रजाई ओढ़े रहना. हटाना मत. ठंड बहुत है.’ ये बातें सोते समय संगीता हमेशा निधि से कहती थी. लेकिन निधि ने कभी इन बातों पर अमल नहीं किया. रात में वह पेशाब कर देती, तो संगीता रात में ही उस के कपडे़ और बिस्तर बदलती. निधि इतनी बड़ी हो गई थी, फिर भी संगीता उसे अपने पास ही सुलाती थी, जिस से वह बिस्तर गीला करे तो उसे तुरंत पता चल जाए और उसे गीले में न पड़ी रहना पड़े. उस रात संगीता को निधि के बिना बिस्तर सूनासूना लग रहा था. उसे नींद ही नहीं आ रही थी, तो उस के बिना निधि को ही भला कहां नींद आई होगी? उस ने महसूस किया कि निधि उसे खोज रही है. 

संगीता ने अपना सिर पीटते हुए रो कर कहा, ‘‘मैं भी कैसी मां हूं जो बेटी को अस्पताल में फेंक आई.’’ बगल के कमरे में लेटे बेटे को भी नींद नहीं आ रही थी. मां की तरह उसे निधि से उतना प्यार तो नहीं था, फिर भी उस के सीने पर दुख का बोझ जरूर था. मन इतना भारी हो गया था कि आंखों से आंसू बह निकले थे. उस ने सोचा, जब उसे इतना दुख है तो मां का क्या हाल होगा? यह दुख मां को किस तरह परेशान कर रहा होगा, जीवन में पहली बार बेटे को पता चला था. उस के हृदय से आवाज आई,  ‘मां के इस दुख को उसे किसी भी तरह दूर करना चाहिए. बेटा हो कर मां के लिए इतना भी नहीं कर सकता तो उस का पैदा होना ही बेकार है. वह निधि को ले आएगा. पत्नी भले ही निधि का शौच न धोए, वह धोएगा.’ इस के साथ वेदना का जो बोझ उस के सीने पर था, वह गायब हो गया. संगीता अगर दोबारा रोई होती, तो शायद बेटा उसी समय मां के पास जा कर अपनी सोच के बारे में बता कर उसे शांत कर देता. लेकिन मां शांत हो गईं तो उसे लगा कि मां सो गई हैं. 

अब वह मां से सुबह बात करेगा. फिर उस ने सोने के लिए आंखें बंद कर लीं, तो थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई. सुबह मुरगे की बांग पर गांव वालों की आंखें खुलीं. उसी के साथ गांव वालों को एक आवाज और सुनाई दी. वह आवाज थी संगीता के चीखने की. वह चीखचीख कर कह रही थी,  ‘‘बाप रे बाप. मैं ने निधि को मार डाला.’’ मां की चीख सुन कर बेटा चारपाई से उछल पड़ा. इस आवाज को जिस ने भी सुना, भागा आया. और फिर जो देखा उस से सभी सहम कर रह गए. संगीता भी निधि की बिरादरी में शामिल हो गई थी.

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